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July 26, 2025
वीरभूमि हिमाचल के 52 बेटों से थर-थर कांपे थे दुश्मन, रणभूमि में छोड़ी अमिट छाप- नहीं झुकने दिया तिरंगा
हिमाचल के 52 वीर सपूतों की अमर गाथा
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शिमला। हर साल 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह केवल एक सैन्य जीत नहीं, बल्कि भारत माता के उन वीर सपूतों की गौरवगाथा है जिन्होंने सर्वोच्च बलिदान देकर तिरंगे को शान से लहराया। इस युद्ध में हिमाचल प्रदेश की वीरभूमि ने 52 बेटों को खोया, जिन्होंने अपने पराक्रम से दुश्मन को करारी शिकस्त दी।
जिला कांगड़ा के पालमपुर के रहने वाले कैप्टन विक्रम बत्रा, करगिल युद्ध के अमर नायक बने। पॉइंट 5140 और 4875 की कठिन चोटियों पर दुश्मनों के छक्के छुड़ाते हुए उन्होंने वीरगति पाई और परमवीर चक्र से सम्मानित हुए। उनका नारा "ये दिल मांगे मोर" आज भी भारतवासियों को जोश से भर देता है।
बिलासपुर के बकैण गांव के संजय कुमार ने पॉइंट 4875 पर अकेले पाकिस्तानी सैनिकों की मशीनगन चौकी ध्वस्त की। निहत्थे होकर भी उन्होंने जबरदस्त साहस दिखाया और परमवीर चक्र के पात्र बने। उनका अदम्य साहस भारतीय सेना की शौर्यगाथा में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है।
करगिल युद्ध में हिमाचल के कांगड़ा, मंडी, हमीरपुर, बिलासपुर, शिमला, सोलन, ऊना, सिरमौर, कुल्लू, और चंबा जैसे लगभग हर जिले के जवान शामिल रहे। कोई ग्रेनेडियर बना तो कोई लांसनायक, किसी ने आखिरी गोली तक लड़ा तो किसी ने अंतिम सांस तक तिरंगे को थामा।
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शिमला के यशवंत सिंह करगिल युद्ध के पहले बलिदानी थे। उनके नाम पर आत्मा रंजन की प्रसिद्ध कविता की पंक्तियां इस बलिदान को भावनात्मक ऊंचाई देती हैं- "अब समझा कि साहूकार के फाट भर इधर आने पर क्यों उठती थी बूढ़ी ईजी दराट लेकर"। ये पंक्तियां भारत माता की रक्षा के लिए हर आम नागरिक की सजगता को दर्शाती हैं।
हिमाचल प्रदेश का हर गांव, हर घाटी करगिल के शूरवीरों की कहानियां समेटे हुए है। युवाओं को प्रेरणा देने वाली ये गाथाएं सिर्फ इतिहास नहीं, एक जीवंत भावना हैं जो हर साल करगिल विजय दिवस पर फिर से जीवंत होती हैं।
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करगिल विजय दिवस पर हिमाचल के 52 वीरों को कृतज्ञ राष्ट्र बारंबार नमन करता है। यह दिन सिर्फ स्मरण का नहीं, संकल्प का है—कि हम उन बलिदानों को कभी न भूलें, और नई पीढ़ी को शौर्य, समर्पण और देशप्रेम की शिक्षा दें।