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July 26, 2025
करगिल जंग के गुमनाम हीरो- पहली सैलरी लेने से पहले शहीद हो गए थे सौरभ कालिया
युद्ध में प्राणों की आहुति देने वाले देश के 527 वीर सपूतों में 52 देवभूमि हिमाचल के थे
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शिमला। देश में हर साल 26 जुलाई को कारगिल युद्ध में पाकिस्तान पर भारतीय सशस्त्र बलों की जीत के उपलक्ष्य में कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति देने वाले देश के 527 वीर सपूतों में 52 देवभूमि हिमाचल प्रदेश के थे। हिमाचल प्रदेश के वीर जवानों ने भी सरहद की रक्षा करते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया था। इन सभी वीर सपूतों की शौर्य गाथाएं आज भी हर जुबान पर हैं।
आज हम आपको हिमाचल प्रदेश के एक ऐसे वीर सपूत के बारे में बताएंगे- जिनकी कहानी के बगैर करगिल की जीत और जश्न भी अधूरा है। इस वीर जवान ने महज 22 साल की उम्र में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। इस शहीद का नाम है केप्टन सौरभ कालिया।
सौरभ कालिया करगिल जंग के गुमनाम हीरो हैं। केप्टन सौरभ कालिया को कारीगल युद्व का पहला शहीद माना जाता है। सौरभ कालिया का जन्म 29 जून, 1976 अमृतसर में हुआ था। सौरभ कालिया की माता का नाम विजया व पिता का नाम डॉ. एनके कालिया है। सौरभ मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के रहने वाले थे। सौरभ कालिया की प्रारंभिक शिक्षा DAV पब्लिक स्कूल पालमपुर से हुई थी।
सौरभ डॉक्टर बनना चाहते थे- जिसके लिए उन्होंने मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम दिया था। मगर उन्हें अच्छे कॉलेज में एडमिशन नहीं मिल पाया था। वहीं, प्राइवेट कॉलेजों की भारी भरकम फीस को देखते हुए सौरभ ने पालमपुर की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से BSC की पढ़ाई की। यहां ग्रेजुएशन करने के बाद सौरभ ने अगस्त 1997 में CDS का एग्जाम पास कर IMA ज्वाइन किया।
सौरभ कालिया 12 दिसंबर, 1998 को भारतीय थलसेना में कमीशन अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए। सौरभ की पहली तैनाती 4 जाट रेजिमेंट (इन्फेंट्री) में कारगिल सेक्टर में हुई। 31 दिसंबर, 1998 को 4 जाट रेजिमेंट सेंटर बरेली में प्रस्तुत होने के बाद सौरभ जनवरी 1999 में कारगिल पहुंचे। उस वक्त सीमा पर हालात ठीक नहीं थे।
बताया जाता है कि 3 मई, 1999 को कुछ चरवाहों ने करगिल की ऊंची पहाड़ियों पर हथियारबंद लोगों को देखा। इसके बाद उन्होंने इस बात की जानकारी भारतीय सेना के जवानों को दी। इसी के चलते कैप्टन सौरभ कालिया समेत 6 जवान पेट्रोलिंग के लिए गए। 5 मई, 1999 को बजरंग पोस्ट पर पेट्रोलिंग करते हुए पाकिस्तानी सेना ने सौरभ कालिया और उनके साथियों समेत बंदी बना लिया।
पाकिस्तानी सेना ने बिना भारत को सूचित किए 22 दिनों तक केप्टन सौरभ कालिया और उनके साथियों को बंदी बनाकर रखा और कई अमानवीय यातनाएं दीं। पाकिस्तान की नापाक हरकत ने नियमों, कायदों समेत इंसानियत को तार-तार कर दिया।
इस बात का खुलासा तब हुआ जब 7 जून, 1999 को सौरभ कालिया और उनकी टीम के शव वापस लौटाए। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि जवानों के शरीर को जगह-जगह गर्म सरिये और सिगरेट से दागा गया था। सौरभ कालिया की पार्थिव देह जब उनके पैतृक गांव पालमपुर पहुंची थी तो उसे देखकर परिजनों की रूह कांप गई थी।
ऐसे हालात थे कि सौरभ के माता-पिता ने बेटे को आखिरी बार देखने से भी इनकार कर दिया था। दरअसल, सौरभ के शव को पहचानना बहुत मुश्किल था। उनकी आंखें फोड़ दी गई थी और दांत तोड़ दिए गए थे। चेहरे पर सिर्फ भौहें बची हुई थी। इतना ही नहीं उनके निजी अंगों के साथ भी छेड़छाड़ की गई थी।
बताया जाता है कि जब सौरभ कालिया ने आर्मी ज्वाइन की थी- उस वक्त सिर्फ चिट्ठियों से ही ज्यादा बातचीत होती थी। वह हमेशा अपनी चिट्ठियों में लिखा करते थे कि वह पोस्ट पर हैं और यहां बहुत बर्फ है। उन्होंने परिवार से आखिरी बार फोन पर बात अपने भाई के जन्मदिन 30 अप्रैल, 1999 पर की थी।
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सौरभ ने वादा किया था कि वह अपने जन्मदिन पर 29 जून को घर जरूर आएंगे। मगर इसके बाद परिवार से उनकी कभी बात नहीं हो पाई। एक तरफ परिवार जहां उनके घर आने की राह देख रहा था। वहीं, परिवार को सीधा सौरभ के शहीद होने की खबर मिली।
सौरभ कालिया अपनी पहली सैलरी लेने से पहले शहीद हो गए थे। शहादत के वक्त उनकी उम्र मात्र 22 साल थी। आज पूरा देश उन्हें इस शहादत के लिए याद कर रहा है।