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April 13, 2025
हिमाचल : घर पहुंची शहीद कुलदीप की पार्थिव देह, लाडले को बार-बार पुकार रही आंगन में बैठी बूढ़ी मां
दो महीने पहले ही छुट्टी पर घर आया था शहीद कुलदीप चंद
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हमीरपुर। हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले का कोहलवीं गांव में बैसाखी वाले दिन चीख-पुकार मची हुई है। पूरा गांव उस समय शोक और गर्व के बीच झूलता दिखाई दिया, जब गांव के वीर सपूत और भारतीय सेना के बहादुर जूनियर कमीशंड ऑफिसर (JCO) शहीद कुलदीप चंद का पार्थिव शरीर सेना के वाहन से गांव पहुंचा। जम्मू-कश्मीर के सुंदरबनी सेक्टर के केरी बट्टल इलाके में आतंकियों से हुई मुठभेड़ में वह वीरगति को प्राप्त हो गए।
भारतीय सेना ने अपने आधिकारिक 'एक्स' (पूर्व ट्विटर) अकाउंट के माध्यम से शहीद को श्रद्धांजलि दी। व्हाइट नाइट कोर के जीओसी और तमाम रैंक ने कुलदीप चंद के बलिदान को सलाम किया। सेना ने कहा कि "जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्र में आतंकियों की घुसपैठ को नाकाम करने में शहीद कुलदीप चंद ने अपने प्राणों की आहुति दी, उनका बलिदान सदैव याद रखा जाएगा।"
आपको बता दें कि गुरुवार देर रात आतंकवादियों की घुसपैठ की सूचना मिलते ही सेना की टीम हरकत में आई। 9 पंजाब रेजीमेंट में सेवारत कुलदीप चंद अन्य जवानों के साथ अभियान में शामिल हुए। जैसे ही ऑपरेशन तेज हुआ, आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी, जिसका सेना ने डटकर मुकाबला किया। इसी दौरान कुलदीप चंद को गोली लगी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आखिरी सांस तक मोर्चा संभाले रखा। उनकी बहादुरी की बदौलत आतंकियों की घुसपैठ की कोशिश को सेना ने पूरी तरह नाकाम कर दिया।
शहीद के घर जैसे ही ये दुखद समाचार पहुंचा, गांव के लोगों के साथ-साथ पूरा हमीरपुर जिला शोक में डूब गया। गांव में भारी भीड़ उमड़ पड़ी, हर आंख नम थी, हर चेहरा गमगीन। शहीद कुलदीप चंद अपने पीछे बूढ़े मां-बाप, पत्नी, एक बेटा और एक बेटी छोड़ गए हैं। उनका छोटा भाई विदेश में नौकरी करता है, जिसे इस दुखद समाचार की सूचना दे दी गई है। बेटे की मौत के बाद बूढ़े माता-पिता पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है।
उनके घर में सांत्वना देने वालों की भीड़ जुट रही है। घर के बरामदे में बैठी मां एक ही बात कह रही है कि मेरे दीपू तू कुथो चली गया, यानी मेरा बेटा दीपू तू कहां चला गया। बेटे की शहादत पर मां का यह विलाप हर किसी की आंख में आंसू ला दे रहा है। मां के अलावा शहीद की पत्नी और बच्चों के आंसू भी थम नहीं रहे हैं। जैसे ही कुलदीप की पार्थिव देह घर पहुंची तो उनको तिरंगे में लिपटा देख बूढ़ी मां बेसुध हो गई।
वहीं, घर के आंगन में कुर्सी पर बैठे बूढ़े पिता को जहां अपने बेटे की शहादत पर गर्व है। वहीं देश प्रदेश की सरकारों से वह खासे नाराज भी हैं। उनका कहना है कि सरकारों को इस आतंकवाद को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए, ताकि किसी और के परिवार से उनका जवान बेटा ना बिछड़े। सरकार को जवानों और उनके परिवारों की तकलीफ के बारे में सोचना चाहिए।
शहीद कुलदीप के पिता ने बताया कि अभी दो माह पहले ही उनका बेटा छुट्टी पर घर आया था। चार से पांच दिन पहले उनकी उससे बात भी हुई थी। जिसमें उसने कहा था कि वह जल्द ही दोबारा छुट्टी लेकर घर आएगा। लेकिन उससे पहले ही उसके शहीद होने की खबर सामने आ गई।
इसी तरह से शहीद की बेटी ने भी अपने पिता पर गर्व जताया है। शहीद कुलदीप की बेटी ने कहा कि अपने पिता की शहादत पर उन्हें गर्व है। लेकिन एक सत्य यह भी है कि उसके पिता अब हमेशा के लिए उन्हें छोड़ कर चले गए हैं। बेटी ने बताया कि उसकी पिता से अकसर बात होती थी, लेकिन उन्होंने कभी नहीं बताया कि वह वहां इतनी मुसिबत में हैं। हमेशा हंस कर बात करते थे।
जवान की शहादत से उसके घर में बूढ़ी मां और पत्नी का रो रोक कर बुरा हाल है। वहीं उनके पिता रिटायर फौजी एक तरफ जहां बेटे की बहादुरी पर गर्व कर रहे हैं, वहीं बेटे की शहादत ने उन्हें गहरे जख्म दिए हैं। जवान कुलदीप के दो छोटे छोटे बच्चे भी हैं। जिसमें एक बेटा और एक बेटी है, जो अभी स्कूल में पढ़ते हैं।
सेना के हवाले से कहा गया है कि 11 अप्रैल की देर शाम को जम्मू के अखनूर सेक्टर में नियंत्रण रेखा पर सीमा पार से आतंकियों ने घुसपैठ की कोशिश की। कुलदीप के नेतृत्व में सेना के तीन जवानों की टीम ने उन्हें चुनौती दी। कुलदीप कुमार ने अपनी टीम के साथ सुंदरबनी के केरी बट्टल क्षेत्र में नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ विरोधी अभियान का बहादुरी से सामना किया और तीन आतंकियों को मार गिराया। जवान कुलदीप ने अपने प्राणों की आहूति दे दी, लेकिन आतंकवादियों को अंदर नहीं घुसने दिया और उनकी घुसपैठ को नाकाम कर दिया।
कुलदीप चंद ने वर्ष 1996 में भारतीय सेना की वर्दी पहनी थी। वह एक अनुशासित, साहसी और समर्पित सैनिक के रूप में हमेशा अपनी ड्यूटी के लिए तत्पर रहते थे। वर्तमान में वह जम्मू के अखनूर सेक्टर में तैनात थे, जहां हाल ही में उनकी यूनिट को सुंदरबनी क्षेत्र में आतंकियों की हलचल की सूचना मिली थी।
शहीद कुलदीप चंद का बलिदान केवल उनके परिवार का ही नहीं, बल्कि पूरे हिमाचल प्रदेश का गर्व है। उनकी शहादत आने वाली पीढ़ियों को न सिर्फ प्रेरणा देगी, बल्कि यह भी बताएगी कि देश की सरहद पर खड़े जवान कैसे अपने जीवन को राष्ट्रहित में न्योछावर कर देते हैं।