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April 13, 2025
हिमाचल : बौद्ध मठ से लापता हुए दोनों भिक्षु बालक बरामद, जानें किस हालत में मिले
दोनों बच्चों के पास नहीं था मोबाइल फोन
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शिमला। हिमाचल प्रदेश में शिमला के संजौली इलाके से गायब हुए दो बौद्ध भिक्षु बालक सकुशल मिल गए हैं। उनकी गुमशुदगी के बाद शिमला पुलिस ने तलाशी के लिए चौतरफा अभियान चलाया और 12 घंटों के अंदर दोनों को सुरक्षित ढूंढ निकाला है।
बता दें कि बीती 10 अप्रैल को दोपहर के समय दोनों बालक संजौली में बने 63 साल पुराने जोनांग बौद्ध मठ से अचानक गायब हो गए थे। जिसके बाद मठ प्रशासन ने ढली थाने में दोनों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी।
मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस टीम ने तुरंत तलाशी अभियान चलाया। ऐसे में शिकायत मिलने के महज 12 घंटे के अंदर पुलिस टीम ने दोनों बालकों को ढली क्षेत्र से सुरक्षित ढूंढ निकाला।
बताया जा रहा है कि पुलिस टीम को दोनों बच्चे ढली चौक से मिले हैं। पुलिस टीम ने दोनों बच्चों मठ प्रशासन को सौंप दिए हैं। शुरुआती जांच में पाया गया है कि दोनों बच्चे घूमने के लिए मठ से बाहर निकले थे। मगर वो रास्ता भटक गए और वापस मठ नहीं लौट पाए। दोनों बच्चों के पास मोबाइलन फोन भी नहीं था। ऐसे में वो किसी से संपर्क भी नहीं कर पा रहे थे।
मामले की पुष्टि करते हुए पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बच्चों को ढूंढने के लिए पुलिस टीम ने आसपास के कई क्षेत्रों में तलाशी अभियान चलाया था। साथ ही पुलिस टीम द्वारा बाजार और दुकानों में लगे CCTV की फुटेज को भी खंगाला गया। इसके अलावा मठ के अन्य बौद्ध भिक्षुओं और स्टाफ से भी पूछताछ की।
इस दौरान सूचना मिली कि दो बौद्ध भिक्षु बालकों को ढली चौक पर देखा गया है। ऐसे में पुलिस टीम आनन-फानन में ढली चौक पर पहुंची और महज 12 घंटे के अंदर दोनों बच्चों को सही-सलामत खोज कर पुलिस टीम अपने साथ ले आई। दोनों बच्चे पूरी तरह सुरक्षित हैं और मठ प्रशासन को सौंप दिए गए हैं।
दोनों बच्चों में से एक की उम्र 12 साल है और वो अरुणाचल प्रदेश के ईटानगर का रहने वाला है। जबकि, दूसरे बच्चे की उम्र 13 साल है और वो पश्चिम बंगाल का निवासी है। दोनों बच्चे घर से दूर यहां संजोली के जोनांग मठ में तिब्बती बौद्ध परंपरा के अंतर्गत धार्मिक शिक्षा और साधना का प्रशिक्षण ले रहे हैं।
यह मठ जोनांग परंपरा का अनुसरण करता है, जो तिब्बती बौद्ध धर्म की चार प्रमुख शाखाओं में से एक है। जोनांग परंपरा विशेष रूप से अपनी "शेंटोंग" (खालीपन की दूसरों से भिन्न व्याख्या) दार्शनिक विचारधारा और कालचक्र तंत्र के अभ्यास के लिए जानी जाती है। जोनांग परंपरा की उत्पत्ति 12वीं शताब्दी में तिब्बत में हुई थी। इसके संस्थापक युमो मिक्यो दोर्जे थे। हालांकि, 17वीं शताब्दी में जोनांग परंपरा को तिब्बत में कुछ समय के लिए दबा दिया गया था, लेकिन यह बाद में पुनर्जनन के साथ फिर से उभरी।
संजौली का जोनांग मठ भारत में इस तिब्बती बौद्ध परंपरा का एकमात्र मठ है। इसकी स्थापना वर्ष 1963 में अमदो लामा जिनपा ने की थी। इसे पहले 'सांगे चोलिंग' के नाम से जाना जाता था। मठ में फिलहल 100 से अधिक भिक्षु रहते हैं।