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April 13, 2025

हिमाचल में बैसाखी मेलों की धूम- जानिए कहां-कहां पर सजी हैं दुकानें

परंपरा, उल्लास और सांस्कृतिक रंगों से सजे मेले

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Himachal Baisakhi

शिमला। हिमाचल प्रदेश में बैसाखी पर्व को पारंपरिक उत्सवों के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। साल 2025 में भी विभिन्न जिलों में बैसाखी मेले का आयोजन किया गया है- जहां स्थानीय संस्कृति, धार्मिक आस्था और लोक कलाओं का सुंदर संगम देखने को मिलता है।

हिमाचल में बैसाखी की धूम

बैसाखी, जो पंजाब और उत्तर भारत में फसल कटाई का पर्व माना जाता है, हिमाचल प्रदेश में भी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यहां के ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में यह पर्व न केवल धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है, बल्कि सामाजिक मेलजोल और पारंपरिक सांस्कृतिक गतिविधियों का भी प्रतीक बन गया है। वर्ष 2025 में हिमाचल प्रदेश के कई जिलों में बैसाखी मेले आयोजित हुए हैं, जिनमें स्थानीय संस्कृति, लोक संगीत, खेल-कूद और हस्तशिल्प की झलक देखने को मिल रही है।

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कहां-कहां लगा है बैसाखी मेला?

  • ऊना – होशियारपुर सीमा पर भरवां मेला

ऊना जिला के गगरेट उपमंडल के नजदीक भरवां में इस बार पारंपरिक बैसाखी मेले का आयोजन किया गया है। यह मेला दो राज्यों (हिमाचल और पंजाब) की संस्कृति का मिलाजुला रूप पेश करता है। यहां अखाड़े, गीत-संगीत, लोकनृत्य और ग्रामीण खेलों का आयोजन किया गया है।

  • हमीरपुर – सुजानपुर बैसाखी मेला

सुजानपुर टीहरा में हर साल की तरह इस बार भी भव्य बैसाखी मेले का आयोजन हुआ है, जहां पारंपरिक मेलों के साथ-साथ सरकारी प्रदर्शनी, स्टाल, लोक गायन और खेल प्रतियोगिताएं मुख्य आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। इस मेले को स्थानीय स्कूलों और कॉलेजों के छात्रों ने रंगारंग प्रस्तुतियों से और भी खास बना रही हैं।

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  • कांगड़ा – ज्वालामुखी बैसाखी उत्सव

ज्वालामुखी मंदिर के प्रांगण में भी बैसाखी पर भव्य धार्मिक मेला लगा। श्रद्धालुओं ने मां ज्वाला के दर्शन किए और क्षेत्र में कई जगह भजन-कीर्तन के आयोजन हुए हैं। इस मौके पर बाजार भी पूरी तरह सजे रहे और विभिन्न प्रकार की लोक दुकानों ने रौनक बढ़ा रही हैं। जवाली में स्थित प्रसिद्ध मिनी हरिद्वार एक बार फिर बैसाखी पर्व की रंगीनियों से सराबोर हुआ है। मिनी हरिद्वार के मैदान को लोक निर्माण विभाग की देखरेख में जेसीबी मशीनों से समतल किया गया है ताकि श्रद्धालुओं और दर्शकों को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो।

महा स्नान की परंपरा

13 अप्रैल को बैसाखी मेले का पहला दिन है, जिसे महा स्नान दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन हजारों श्रद्धालु मिनी हरिद्वार की पवित्र धारा में डुबकी लगाकर पुण्य अर्जित करेंगे। प्रशासन ने घाटों पर सुरक्षा व्यवस्था को विशेष रूप से दुरुस्त किया है ताकि कोई भी अनहोनी न हो।

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दंगल में दिखेगा दमखम

मेले के दूसरे दिन यानी 14 अप्रैल को पांरपरिक दंगल प्रतियोगिता का आयोजन होगा। देशभर से नामी पहलवान इसमें भाग लेंगे और अपने दांव-पेंच से दर्शकों का मन मोहेंगे। मेला कमेटी के अध्यक्ष एवं नपं जवाली के चेयरमैन राजिंदर राजू ने जानकारी दी कि इस वर्ष का दंगल पहले से अधिक रोमांचक और प्रतिष्ठित होने जा रहा है।

  • सोलन – नालागढ़ का बैसाखी मेला

सोलन जिले के औद्योगिक क्षेत्र नालागढ़ में बैसाखी मेला पारंपरिक और आधुनिकता का मिश्रण रहा। यहाँ पंजाबी व हिमाचली लोक संस्कृति के कार्यक्रमों के अलावा युवाओं के लिए बाइक स्टंट शो, डीजे नाइट और फैशन शो जैसे आधुनिक आयोजनों का आयोजन किया गया।

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  • बिलासपुर – घुमारवीं का ग्रामीण मेला

घुमारवीं क्षेत्र में लगे बैसाखी मेले में मुख्य रूप से पारंपरिक झांकियां, कबड्डी व कुश्ती मुकाबले और देसी खानपान का खास इंतजाम रहा। यह मेला ग्रामीण समुदाय के मेल-मिलाप का प्रतीक बनता जा रहा है।

  • शिमला – रामपुर और चौपाल क्षेत्र में स्थानीय आयोजन

शिमला जिले के रामपुर और चौपाल क्षेत्र में भी बैसाखी के मौके पर ग्रामीण स्तर पर पारंपरिक खेल, गायन, नृत्य और मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना के कार्यक्रम हुए। इन जगहों पर स्थानीय मेले धार्मिक उत्सव से अधिक सामुदायिक एकता का प्रतीक रहे।

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  • सिरमौर – राजगढ़ का शिरगुल देवता बैसाखी मेला

राजगढ़ में 13 से 15 अप्रैल तक तीन दिवसीय जिला स्तरीय बैसाखी मेला आयोजित किया गया है। इस मेले के दौरान तीनों दिनों में सांस्कृतिक संध्याओं और अंतिम दिन विशाल दंगल का आयोजन किया जाएगा- जिसमें उत्तरी भारत के नामी पहलवान भाग लेंगे। 

 

आपको बता दें कि इन मेले के सफल आयोजन और सुरक्षा व्यवस्था के लिए हिमाचल पुलिस के जवानों और गृह रक्षकों की तैनाती की गई है। साथ ही स्वास्थ्य, पार्किंग, पीने के पानी की सुविधा, शौचालय और आपदा प्रबंधन व सफाई व्यवस्था पर भी खास ध्यान दिया गया है। बहुत सारी जगहों पर महिलाओं के रहने के लिए अलग टेंट लगाए गए हैं।

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श्रद्धालुओं से अपील

प्रशासन ने मेले में आने वाले श्रद्धालुओं से विशेष अपील की है कि वे गहरे पानी में स्नान करने से बचें और बच्चों पर विशेष नजर रखें। यह मेला न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि सामाजिक सौहार्द और सांस्कृतिक समृद्धि का भी प्रतीक है।

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