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December 10, 2025
चालदा महासू महाराज ने गांव से बाहर निकाल दिया था एक परिवार : 14 पीढ़ियों बाद टूटा वनवास
देवता महाराज ने परिवार के नए घर में किया प्रवेश
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सिरमौर। हिमालयी देव संस्कृति अपनी अनगिनत परंपराओं, अनुशासन और देव-आदेशों के लिए जानी जाती है। यहां माना जाता है कि देवता जब प्रसन्न होते हैं तो कृपा अमृत की तरह बरसती है, और जब कुपित होते हैं तो उनका निर्णय पूरी पीढ़ियों का भाग्य बदल देता है।
मंगलवार को उत्तराखंड के आराध्य देव छालदा महासू महाराज की यात्रा के दौरान ऐसा ही एक अद्भुत और भावुक क्षण सामने आया—जिसे देखकर हजारों श्रद्धालुओं की आंखें नम हो गईं।
मंगलवार सुबह जैसे ही चालदा महासू महाराज अपने छत्रधारी रूप में दसऊ गांव की ओर प्रस्थान करने निकले, मंदिर प्रांगण में मानो उत्सव जैसा आलम बन गया। ढोल-दमाऊं की धुन और जयकारों के बीच महाराज की झांकी दर्शन के लिए पलकें बिछाए हजारों श्रद्धालुओं के बीच से गुज़री। कड़ाके की ठंड में भी गांव की गलियां भक्ति-रंग में डूबी रहीं।
इस यात्रा का सबसे भावुक अध्याय तब खुला जब छत्राण परिवार, जिसे कभी महाराज का सबसे प्रिय माना जाता था, लगभग 14 पीढ़ियों बाद अपने मूल गांव दसऊ लौटा। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि सदियों पहले यह परिवार महाराज के इतना समीप था कि देवता और परिवार एक ही चूल्हे पर बना भोजन ग्रहण करते थे। इसी निकटता की पहचान ही बाद में छत्राण नाम का आधार बनी- परिवार जो देवता के ‘छत्र’ से जुड़ा माना जाता था।
समय की धारा के साथ परिवार में कुछ भूलें हुईं, और कहा जाता है कि बढ़ते अहंकार से महाराज अप्रसन्न हो गए। देवगुरु के माध्यम से आदेश आया कि यह परिवार गांव छोड़ देगा। यह निर्णय इतना कठोर था कि अगले कई जन्मों तक परिवार का कोई भी सदस्य महाराज की ओर देखने तक की हिम्मत नहीं करता था।
धीरे-धीरे पीढ़ियां बदलती गईं और परिवार अलग-अलग क्षेत्रों में बस गया। नई पीढ़ियां अपने गांव की कहानियां तो सुनती रहीं, पर अपने देवस्थान को केवल स्मृति में ही महसूस कर पाती थीं।
वर्तमान समय में यह परिवार उत्तराखंड के शम्बर–कवानू क्षेत्र में बस रहा था। कुछ सप्ताह पहले जब महाराज भावर क्षेत्र में पधारे, तो देवता ने स्वयं इस परिवार का स्मरण किया। गूर ने संदेश दिया महाराज अपने वनवासियों को वापस बुला रहे हैं। इस संकेत भर ने सदियों की दूरी पलक झपकते मिटा दी। परिवार ने तुरंत गांव लौटने की प्रक्रिया शुरू कर दी।
दसऊ गांव पहुंचकर महाराज पहले उस पुराने घर के स्थान पर गए, जिसकी दीवारें अब इतिहास में बदल चुकी थीं। अवशेषों को देखकर गांववालों ने भी बीते युग की कहानियां दोहरा दीं।
इसके बाद देव-आदेश भेजा गया कि अब छत्राण परिवार का वनवास समाप्त हो रहा है।
परिवार ने गांव में नया घर तो कुछ वर्ष पहले बनवाया था, लेकिन देव-अनुमति के बिना उसमें प्रवेश वर्जित था। मंगलवार को वह क्षण आया जब चालदा महासू महाराज स्वयं परिवार के घर के भीतर पधारे।
जैसे ही देवता ने देहरी पार की, परिवार रो पड़ा-14 पीढ़ियों की पीड़ा, पछतावा, आशा और प्रतीक्षा एक साथ बह निकली। गांव के लोग भी अपने बिछड़े परिवार को बाहें फैलाकर गले लगाते रहे। पूरा माहौल आध्यात्मिक ऊर्जा से भर उठा-सैकड़ों साल पुराना अध्याय एक झटके में पूरा हो गया।
मंगलवार से पहले की रात भी दसऊ गांव में अविस्मरणीय रही। महाराज रात के लिए गांव के बागड़ी खेत में रुके और अनुमानित 15 हजार से अधिक श्रद्धालु खुले आसमान में जमाने वाली ठंड के बावजूद उनके साथ ही रुके रहे।
लोगों का कहना था जहां देवता हों, वहां ठंड कैसी? यह तो उनका प्रसाद है। आज चालदा महासू महाराज सिरमौर जिले की ओर रवाना होंगे। गांवों में उनके स्वागत की तैयारियां पूरे चरम पर हैं। सड़क किनारे तोरणद्वार सजाए जा रहे हैं, और हर जगह उत्साह की गूंज सुनाई दे रही है।
छत्राण परिवार का लौटना और देवता का स्नेहपूर्ण बुलावा इस बात का सशक्त प्रमाण है कि हिमालयी संस्कृति केवल आस्था का आधार नहीं, बल्कि जीवित परंपरा है-जहां देव-निर्णय पीढ़ियों की कहानी बदल देता है। यह घटना आने वाली पीढ़ियों के लिए स्मरणीय रहेगी कि देवता नाराज़ हों या प्रसन्न उनका आदेश ही इस संस्कृति की आत्मा है।