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December 10, 2025
हिमाचल : नीचता करने वाले के साथ नहीं होगा कोई समझौता, लड़की के घरवालों ने अगर पैसे लिए तो...
महिलाओं की सुरक्षा के लिए अहम फैसला हिमाचल हाईकोर्ट का अहम फैसला
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शिमला। हिमाचल प्रदेश में आए दिन बच्चियां, युवतियां और महिलाएं अपराधिक गतिविधियों का शिकार हो रही हैं। अदालतों में कई ऐसे मामले लंबित पड़े हुए हैं- जिनके फैसलों का पीड़िता कई साल से इंतजार कर रही है। वहीं, अब महिलाओं की सुरक्षा के हित में हिमाचल हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के अनुसार, दुष्कर्म व यौन उत्पीड़न के मामले में अब पीड़िता का आरोपी से कोई समझौता नहीं होगा। ऐसे मामलों में समझौता होना मानो आरोपी को इनाम देने के बराबर हुआ।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने दुष्कर्म, यौन शोषण और SC/ST अत्याचार अधिनियम के तहत दर्ज एक गंभीर आपराधिक मामले में आरोपी की वह याचिका खारिज कर दी है। जिसमें उसने शिकायतकर्ता के साथ सौहार्दपूर्ण समझौते के आधार पर FIR रद्द करने की मांग की थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसे जघन्य अपराधों में समझौते का हवाला देकर मामला खत्म नहीं किया जा सकता, विशेष रूप से तब जब समझौते की शर्तें अस्पष्ट, असत्यापित और संदिग्ध हों।
न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की एकल पीठ ने कहा कि यदि दुष्कर्म जैसे अपराधों में आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच किसी अस्पष्ट समझौते को वैध मान लिया गया, तो यह न्याय व्यवस्था की मूल भावना और कानून के शासन को कमजोर करेगा। अदालत ने टिप्पणी की कि ऐसा करना आरोपी को उसके कथित अपराधों के लिए एक तरह का इनाम देने जैसा होगा।
याचिकाकर्ता ने BNS की धारा 528 के तहत FIR और उससे संबंधित कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी। उसका दावा था कि वह और शिकायतकर्ता अब सौहार्दपूर्ण तरीके से विवाद निपटा चुके हैं। लेकिन अदालत ने पाया कि समझौते की शर्तें स्पष्ट नहीं थी।
समझौते की पृष्ठभूमि और परिस्थितियां संदिग्ध थीं। शिकायतकर्ता ने गंभीर आरोप लगाए थे, जिन्हें एक हस्ताक्षरित कागज से समाप्त नहीं किया जा सकता। दबाव, भय या भावनात्मक मजबूरी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इस आधार पर कोर्ट ने समझौते को अविश्वसनीय और कानूनी रूप से अमान्य माना।
शिकायतकर्ता ने 24 जुलाई 2023 को थाना शाहपुर में आरोपी के खिलाफ कई गंभीर धाराओं के तहत मामला दर्ज करवाया था। मामला प्रकृति में अत्यंत गंभीर माना गया, जिससे अदालत का रुख पहले से ही कठोर था। इनमें शामिल थीं-
राज्य सरकार की स्थिति रिपोर्ट में यह सामने आया कि शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था-
हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट के 2014 और 2019 के महत्वपूर्ण फैसलों का उल्लेख किया, जिनमें साफ कहा गया है कि हत्या, दुष्कर्म, डकैती और अन्य जघन्य अपराध जैसे मामलों में पक्षों के बीच समझौता अभियोजन को समाप्त करने का आधार नहीं हो सकता।
न्यायालय ने कहा कि दुष्कर्म समाज के खिलाफ किया गया अपराध है, न कि केवल दो व्यक्तियों के बीच का निजी विवाद। इसलिए इसे मर्जी से निपटाया जाने वाला सिविल मामला नहीं माना जा सकता।
न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में सार्वजनिक हित सर्वोपरि है> आरोपी के खिलाफ गंभीर आरोप हैं- ऐसे में समझौता विश्वसनीय नहीं। शिकायतकर्ता ने पहले विस्तृत आरोप लगाए, लेकिन अचानक पीछे हटना संदेह पैदा करता है।इसलिए अदालत संतुष्ट नहीं हुई कि शिकायतकर्ता स्वेच्छा से समझौता करके मामला समाप्त करना चाहती है। अंततः अदालत ने आरोपी की याचिका को पूरी तरह खारिज कर दिया।
इस फैसले को न्यायिक विशेषज्ञ महिलाओं के अधिकार और यौन अपराधों पर कोर्ट की सख्त दृष्टिकोण की निरंतरता के रूप में देख रहे हैं। उनका कहना है कि इस तरह के फैसले-
पीड़ितों को सुरक्षा का भरोसा देते हैं
दबाव में करवाए गए समझौतों को रोकते हैं
कानून के शासन को मजबूत करते हैं।