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December 10, 2025
हिमाचल में पहली बार डिपो में मिलेगा सेहतमंद आटा : कितने चुकाने होंगे दाम, यहां जानें
कुछ दिन बाद शुरू हो जाएगी सेहतमंद आटे की सप्लाई
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शिमला। हिमाचल प्रदेश के गांवों में सदियों से जौ और मक्की पारंपरिक फसलें रही हैं। प्राकृतिक खेती के इन उत्पादों का अब डिपुओं के जरिए घर-घर पहुंचना न केवल परंपरा के पुनर्जीवन की दिशा में कदम है, बल्कि उपभोक्ता की स्वास्थ्य जरूरतों से भी मेल खाता है।
आपको बता दें कि हिमाचल प्रदेश में राशन कार्ड उपभोक्ताओं के लिए इस सर्दी एक बड़ा बदलाव आने वाला है। प्रदेश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) अब उपभोक्ताओं को बाजार से सस्ते और रासायनिक मुक्त प्राकृतिक उत्पाद उपलब्ध कराने जा रही है।
पहली बार डिपुओं में प्राकृतिक खेती से तैयार जौ का आटा उतरेगा, जो स्वास्थ्य, स्वाद और पारंपरिक कृषि की असली पहचान को एक साथ लेकर आएगा। मंगलवार को कृषि विभाग के सचिव सी. पॉलरासु की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में जौ व मक्की के प्राकृतिक उत्पादों को डिपुओं और कृषि विभाग के आउटलेट्स के माध्यम से उपलब्ध कराने का अहम फैसला लिया गया।
हिमाचल सरकार पिछले कुछ साल से प्राकृतिक खेती को ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मजबूती देने और रासायनिक कृषि पर निर्भरता कम करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इस दिशा में उठाया गया यह नया कदम न सिर्फ किसानों के लिए बड़े बाजार का दरवाजा खोलेगा बल्कि उपभोक्ताओं को भी रसायन-मुक्त, उच्च गुणवत्ता वाले अनाज का सीधा लाभ देगा।
बैठक में तय किया गया कि पांगी क्षेत्र से खरीदे गए प्राकृतिक खेती वाले जौ की पिसाई कर 120 रुपये प्रति किलो की दर से डिपुओं और कृषि विभाग के आउटलेट में उपलब्ध कराया जाएगा। जौ का आटा सामान्य गेहूं की तुलना में अधिक फाइबर, बेहतर पाचन क्षमता और कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स के लिए जाना जाता है। खासकर डायबिटीज और वजन नियंत्रण के लिए यह बेहतर माना जाता है।
कृषि विभाग ने इस बार प्राकृतिक खेती के दायरे को विस्तारित करते हुए मक्की की खरीद भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर की है। पहले 30 रुपये प्रति किलो मिलने वाला MSP बढ़ाकर 40 रुपये किलो कर दिया गया, जिससे किसानों को सीधा फायदा मिला। पिसाई के बाद अब मक्की का आटा डिपुओं में 55 रुपये प्रति किलो उपलब्ध कराया जाएगा। पिछले वर्ष यह दर 50 रुपये किलो थी।
कृषि विभाग ने राज्यभर में इन दोनों उत्पादों की सप्लाई को लेकर तैयारियां पूरी कर ली हैं। 20 दिसंबर के बाद सभी जिलों के डिपो प्राकृतिक जौ के आटे और मक्की के आटे से भरने शुरू हो जाएंगे। यानी सर्दियों में पहाड़ी घरों में बने मक्की की रोटी और जौ के सूप जैसी पारंपरिक डिशें अब बेहतर गुणवत्ता और सस्ती कीमतों पर उपलब्ध सामग्री से तैयार होंगी।
विभाग का मानना है कि यह कदम प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के साथ ग्रामीण किसानों की आय में भी बढ़ोतरी करेगा। इसके अलावा उपभोक्ताओं को बाजार की तुलना में बेहतर गुणवत्ता सस्ती दरों पर मिल सकेगी।
प्राकृतिक खेती पर आधारित जौ और मक्की की सप्लाई से किसानों को अपनी फसल का सीधा और सुरक्षित बाजार मिलेगा। उपभोक्ताओं को रासायनिक मुक्त, पौष्टिक और स्थानीय उत्पाद उपलब्ध होंगे। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देकर राज्य रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है।