#विविध
April 13, 2025
हिमाचल : पंचतत्व में विलीन हुए शहीद कुलदीप, पिता से लिपटकर खूब रोई बेटी
बूढ़े माता-पिता से छिन गया उनका लाडला बेटा
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शिमला। जम्मू-कश्मीर के सुंदरबनी सेक्टर में आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए शहीद कुलदीप चंद का पार्थिव शरीर जब रविवार को उनके पैतृक गांव कोहलवीं पहुंचा, तो माहौल पूरी तरह गम में डूब गया। जहां एक ओर परिवार का दर्द छलक उठा, वहीं पूरे गांव की आंखें नम हो गईं। जैसे ही तिरंगे में लिपटा पार्थिव शरीर सेना के वाहन से घर पहुंचा, वहां चीख-पुकार का आलम पैदा हो गया।
शहीद की बेटी जब अपने पिता के पार्थिव शरीर के पास पहुंची, तो खुद को संभाल नहीं सकी। वह लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगी। कुछ क्षणों के बाद उसने खुद को संयमित किया और आंसुओं के बीच "जय हिंद" की गूंज के साथ अपने पिता को अंतिम सलामी दी। इस दृश्य को देखकर वहां मौजूद हर व्यक्ति की आंखों से आंसू बह निकले। सन्नाटा छा गया, लेकिन साथ ही शहीद के प्रति सम्मान और गर्व का माहौल भी महसूस हो रहा था।
भारतीय सेना के जवानों ने पूरे सैन्य सम्मान के साथ शहीद कुलदीप चंद को अंतिम सलामी दी। तिरंगे में लिपटे इस वीर सपूत को जब गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया, तो हर आंख नम और हर दिल भावुक हो उठा। शहीद की अंतिम यात्रा में न केवल परिवार और गांववाले, बल्कि आस-पास के क्षेत्रों से भी लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए। “शहीद कुलदीप अमर रहें” के नारों से पूरा गांव गूंज उठा।
शहीद कुलदीप चंद हाल ही में छुट्टी से घर वापस गए थे और परिवार के साथ कुछ पल बिताने के बाद ड्यूटी पर लौटे थे। उन्हें क्या पता था कि यह आखिरी मुलाकात होगी। सेना में 1996 से सेवा दे रहे कुलदीप चंद वर्तमान में 9 पंजाब रेजीमेंट में तैनात थे और सुंदरबनी सेक्टर में आतंकियों की घुसपैठ रोकने के लिए चलाए गए अभियान का हिस्सा बने। दुश्मनों से लड़ते हुए उन्होंने अंतिम सांस तक देश की रक्षा की।
शहीद के पिता और परिवारजन भले ही आंसुओं में डूबे थे, लेकिन उनके शब्दों में गर्व साफ झलक रहा था। शहीद की पत्नी, बेटे और बेटी के अलावा उनकी बुजुर्ग माता-पिता का कहना है कि उन्हें बेटे के बलिदान पर फक्र है, लेकिन यह जख्म जीवन भर नहीं भर पाएगा। गांववालों ने भी कुलदीप को “गांव का गौरव” बताते हुए उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी।
आपको बता दें कि गुरुवार देर रात आतंकवादियों की घुसपैठ की सूचना मिलते ही सेना की टीम हरकत में आई। 9 पंजाब रेजीमेंट में सेवारत कुलदीप चंद अन्य जवानों के साथ अभियान में शामिल हुए। जैसे ही ऑपरेशन तेज हुआ, आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी, जिसका सेना ने डटकर मुकाबला किया। इसी दौरान कुलदीप चंद को गोली लगी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आखिरी सांस तक मोर्चा संभाले रखा। उनकी बहादुरी की बदौलत आतंकियों की घुसपैठ की कोशिश को सेना ने पूरी तरह नाकाम कर दिया।
शहीद के घर जैसे ही ये दुखद समाचार पहुंचा, गांव के लोगों के साथ-साथ पूरा हमीरपुर जिला शोक में डूब गया। गांव में भारी भीड़ उमड़ पड़ी, हर आंख नम थी, हर चेहरा गमगीन। शहीद कुलदीप चंद अपने पीछे बूढ़े मां-बाप, पत्नी, एक बेटा और एक बेटी छोड़ गए हैं। उनका छोटा भाई विदेश में नौकरी करता है, जिसे इस दुखद समाचार की सूचना दे दी गई है। बेटे की मौत के बाद बूढ़े माता-पिता पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है।
उनके घर में सांत्वना देने वालों की भीड़ जुट रही है। घर के बरामदे में बैठी मां एक ही बात कह रही है कि मेरे दीपू तू कुथो चली गया, यानी मेरा बेटा दीपू तू कहां चला गया। बेटे की शहादत पर मां का यह विलाप हर किसी की आंख में आंसू ला दे रहा है। मां के अलावा शहीद की पत्नी और बच्चों के आंसू भी थम नहीं रहे हैं।
इसी तरह से शहीद की बेटी ने भी अपने पिता पर गर्व जताया है। शहीद कुलदीप की बेटी ने कहा कि अपने पिता की शहादत पर उन्हें गर्व है। लेकिन एक सत्य यह भी है कि उसके पिता अब हमेशा के लिए उन्हें छोड़ कर चले गए हैं। बेटी ने बताया कि उसकी पिता से अकसर बात होती थी, लेकिन उन्होंने कभी नहीं बताया कि वह वहां इतनी मुसिबत में हैं। हमेशा हंस कर बात करते थे।
जवान की शहादत से उसके घर में बूढ़ी मां और पत्नी का रो-रो कर बुरा हाल है। वहीं उनके पिता रिटायर फौजी एक तरफ जहां बेटे की बहादुरी पर गर्व कर रहे हैं, वहीं बेटे की शहादत ने उन्हें गहरे जख्म दिए हैं। जवान कुलदीप के दो बच्चे भी हैं- जो कि अभी स्कूल में पढ़ते हैं।
सेना के हवाले से कहा गया है कि 11 अप्रैल की देर शाम को जम्मू के अखनूर सेक्टर में नियंत्रण रेखा पर सीमा पार से आतंकियों ने घुसपैठ की कोशिश की। कुलदीप के नेतृत्व में सेना के तीन जवानों की टीम ने उन्हें चुनौती दी। कुलदीप कुमार ने अपनी टीम के साथ सुंदरबनी के केरी बट्टल क्षेत्र में नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ विरोधी अभियान का बहादुरी से सामना किया और तीन आतंकियों को मार गिराया। जवान कुलदीप ने अपने प्राणों की आहूति दे दी, लेकिन आतंकवादियों को अंदर नहीं घुसने दिया और उनकी घुसपैठ को नाकाम कर दिया।