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November 12, 2025

हिमाचल को सीधी चेतावनी- देवस्थलों से छेड़छाड़ बंद करे, राजनीति से मंदिरों को रखें दूर; वरना.....

18 वर्ष बाद शुरू हुई नौ गढ़ों की परिक्रमा

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Devta Sahib Himachal Mandi

मंडी। हिमाचल प्रदेश में इस बार बरसात ने जमकर तबाही मचाई है। देवभूमि हिमाचल के देवी-देवताओं ने इस तबाही के लिए मनुष्य को जिम्मेदार ठहराया है। वहीं, अब मंडी जिले के बालीचौकी क्षेत्र की शांत घाटियों में भी एक अलौकिक अध्याय की शुरुआत हुई।

मर्यादा का करनें पालन

धबेहड (ढबोली) के अधिष्ठाता देव छांजणु ने अपने देववाणी में प्रदेशवासियों को गहन चेतावनी दी है-यदि समय रहते देवभूमि के पहाड़ों की प्राकृतिक संपदा, देव स्थलों की पवित्रता और देव नीति की मर्यादा का पालन नहीं हुआ, तो आने वाला समय विनाश का साक्षी बनेगा।

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नहीं तो होगा विनाश

देवता ने अपने संदेश में कहा कि आज मनुष्य ने खुद को देवी-देवताओं से भी बड़ा मान लिया है और यही अहंकार आने वाले संकटों की जड़ बन सकता है। उन्होंने कहा कि प्रकृति और देवता, दोनों संतुलन के प्रतीक हैं। अगर यह संतुलन बिगड़ा, तो परिणाम केवल आपदा नहीं बल्कि विनाश होगा।

मतभेद भूल जाएं इंसान

देवता ने सभी हरियानों (भक्तों) को आपसी मतभेद भूलकर एकता, संयम और सदाचार के मार्ग पर चलने का आह्वान किया है। देव छांजणु देवता 18 वर्ष बाद देवभूमि की नौ गढ़ों की परिक्रमा पर निकले हैं।

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18 वर्ष बाद शुरू हुई नौ गढ़ों की परिक्रमा

बताया जा रहा है कि यह परिक्रमा किसी साधारण अवसर पर नहीं, बल्कि प्रकृति और समाज में बढ़ रहे असंतुलन के संकेतों को देखते हुए आरंभ की गई है। देवता के प्रमुख नौ गढ़ इस प्रकार हैं- बागीथाच, कलीपर गढ़, तांदी गढ़, घाटलु गढ़, नीरु गढ़, थुज़री गढ़, वांश गढ़, मंगलौर गढ़ और नारायण गढ़।

सुरक्षा घेरा है ये परिक्रमा

देवता का कहना है कि यह परिक्रमा केवल आस्था की यात्रा नहीं, बल्कि एक “सुरक्षा घेरा” (संरक्षण कवच) है, जो देवभूमि को भविष्य में आने वाली किसी बड़ी विपदा से बचाने के लिए किया जा रहा है।

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कहां से शुरू हुई यात्रा?

देवता ने 10 नवंबर को अपने मूल कोट भाटकीहार से लाव-लश्कर सहित यात्रा का शुभारंभ किया। पहले दिन का रात्रि ठहराव हिड़ब (कांडा) में हुआ। इसके बाद दूसरे दिन देवता नाचनी, तीसरे दिन नेहरा, चौथे शलवाड़, पांचवे सुनास, छठे तांदी, सातवें मुराह, आठवें गुरान, नौवें नशयणी (भटवाड़ा), दसवें बुरना, ग्यारहवें घाट मुहाथ, बारहवें कांडीखहल, तेरहवें माणी, चौदहवें वसुंघी, पंद्रहवें कांडा, सोलहवें शिवाड़ी और अंत में सत्रहवें दिन शिवाड़ी से पुनः अपने मूलस्थान भाटकीहार लौटेंगे।

देववाणी में नीति और चेतावनी दोनों

देवता ने अपने वचनों में कहा अगर इंसान ने देव नीति, समाजनीति और प्रकृति नीति का पालन छोड़ दिया, तो देवता भी केवल विनाश को देखने के लिए विवश रह जाएंगे। देव छांजणु ने स्पष्ट किया कि देवभूमि में हो रहे अनुचित कार्य- जैसे प्राकृतिक दोहन, पवित्र स्थलों का अपमान और राजनीति में बढ़ती कलह- इन सभी से पर्वतीय समाज को तुरंत दूरी बनानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि लोग अब भी नहीं चेते, तो आने वाले वर्षों में देवभूमि ऐसी आपदाओं का सामना करेगी जिनसे उबरना कठिन होगा।

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देवता की परिक्रमा का उद्देश्य

प्रधान देवता कमेटी के प्रतिनिधि बीरबल ने बताया कि यह परिक्रमा केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक दैविक सुरक्षा चक्र है। हर गढ़ में देवता “सूत्र” (संरक्षण का प्रतीक धागा) बांध रहे हैं ताकि प्राकृतिक और सामाजिक असंतुलन से क्षेत्र की रक्षा की जा सके। उन्होंने बताया कि देव छांजणु की यह परिक्रमा तब होती है जब किसी बड़ी आपदा या संकट का पूर्वाभास होता है। इसलिए यह यात्रा देवभूमि की रक्षा और लोककल्याण की भावना से प्रेरित है।

लोगों में उमड़ा श्रद्धा और चेतना का संगम

देवता की इस ऐतिहासिक यात्रा को लेकर समूचे बालीचौकी क्षेत्र में श्रद्धा की लहर दौड़ पड़ी है। लोग अपने-अपने गांवों में देवता के आगमन पर पारंपरिक धाम, नृत्य और पूजा-अर्चना कर रहे हैं।

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साथ ही देववाणी की चेतावनी ने लोगों को आत्ममंथन के लिए भी प्रेरित किया है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि यह देवदौरा न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि समाज को अनुशासन और एकजुटता का संदेश देने के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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