#विविध
November 18, 2025
हिमाचल में चमत्कार : 45 साल पहले गई याददाश्त, अब बिछड़े परिवार से मिलने पहुंचा शख्स
1994 में उसकी शादी हुई- आज उसके दो बेटियां और एक बेटा हैं
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सिरमौर। जिंगी ने भटका दिया था पर अतीत ने पुकार लिया, एक सपने ने वो रास्ता दिखाया जहां अपना घर था। 44 साल बाद ही सही, किस्मत ने परिवार को वापस बेटा लौटा दिया। ये शब्द बखूबी चरितार्थ करते हैं सिरमौर जिले के सतौन क्षेत्र के बेटे रिखी राम के जीवन को।
सतौन क्षेत्र के छोटे से गांव नाड़ी में इन दिनों खुशियों का ऐसा माहौल है, जैसा दशकों से नहीं देखा गया था। गांव का बेटा रिखी राम, जो 1980 में महज 16 साल की उम्र में गायब हो गया था, करीब 45 साल बाद अचानक घर लौट आया। यह कहानी किसी फिल्म की पटकथा से कम नहीं, बल्कि हकीकत का वह रूप है जो चमत्कार जैसा महसूस होता है।
साल 1980 में रिखी राम रोजगार की तलाश में हरियाणा के यमुनानगर गया था। वहां वह एक होटल में काम करने लगा। एक दिन होटल के एक कर्मचारी के साथ वह अंबाला जा रहा था कि रास्ते में भीषण सड़क हादसा हो गया। सिर में गंभीर चोट लगी और उस हादसे ने उसकी पूरी याददाश्त छीन ली।

याददाशत जाने के बाद रिखी राम अपने घर का रास्ता भूल गया। अपना नाम तक याद नहीं रहा। परिवार और गांव से पूरी तरह कट गया। होटल कर्मचारी ने ही उसका नया नाम “रवि चौधरी” रख दिया। उसी पहचान के साथ उसने नई जिंदगी शुरू कर दी।
याददाश्त खोने के बाद रिखी राम मुंबई के दादर इलाके में चला गया, जहां उसने मजदूरी और छोटे-मोटे काम किए। कुछ समय बाद नांदेड़ के एक कॉलेज में उसे नौकरी मिल गई और वह वहीं बस गया।

1994 में उसकी शादी संतोषी से हुई। आज उसके दो बेटियां और एक बेटा हैं। परंतु अपनी असली पहचान या घर का कोई अंश तक याद नहीं था रिखी राम करीब 40 साल से नए नाम और नई जिंदगी के साथ सामान्य दिन गुजार रहा था। लेकिन कुछ माह पहले वह फिर एक हादसे का शिकार हुआ।
हादसा इतना गंभीर नहीं था, पर उसके बाद धीरे-धीरे उसकी खोई हुई यादें लौटने लगीं। रोजाना उसे सपनों में आम का बड़ा पेड़, सतौन क्षेत्र की पहाड़ियां, गांव के झूले और CCI के पास का इलाका बार-बार दिखाई देने लगा।
पहले उसने इन सपनों को अनदेखा किया, लेकिन जब ये यादें लगातार लौटने लगीं, तो उसने अपनी पत्नी को सब बताया। पत्नी ने उसे अपनी जड़ों की खोज करने के लिए प्रेरित किया।रिखी राम पढ़ा-लिखा नहीं था, इसलिए उसने कॉलेज में काम करने वाले एक छात्र से मदद मांगी।
छात्र ने इंटरनेट पर सतौन और नाड़ी गांव के बारे में खोज की। कुछ संपर्क नंबर ढूंढे। इस तरह रिखी राम को सतौन के एक कैफे का नंबर मिला। कैफे वालों ने उसे नाड़ी गांव के युवक रुद्र प्रकाश का संपर्क दिया।
जब रिखी राम ने पहली बार अपनी कहानी सुनाई, तो रुद्र प्रकाश को यह किसी धोखाधड़ी से कम नहीं लगा। उन्होंने कॉल को गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन रिखी राम रोज फोन करता रहा और अपने भाइयों–बहनों के नाम, गांव के रास्तों, खेतों और झूलों की पहचान और पुराने परिचितों के बारे में बातें बताने लगा। धीरे-धीरे रुद्र प्रकाश का शक यकीन में बदल गया।
रुद्र प्रकाश ने रिखी राम का संपर्क परिवार के बड़े जीजा एम.के. चौबे से करवाया। कुछ ही मिनटों की बातचीत में आवाज, पुरानी यादें, गांव की भाषा, रिश्तों की पहचान- सब सुनकर चौबे को यकीन हो गया कि वो रिखी राम है।

जब सारी पुष्टि हो गई तो रिखी राम अपनी पत्नी और बच्चों के साथ नाड़ी गांव पहुंचा। गांव के लोग वर्षों बाद उसे देखकर भावुक हो उठे। रिखी को देखते ही भाई दुर्गा राम, चंद्र मोहन, चंद्रमणि, बहनें कौशल्या देवी, कला देवी, सुमित्रा देवी की आंखें खुशी से नम हो गई। रिश्तेदार और परिचित लोगों ने फूल-मालाएं पहनाईं और बैंड-बाजे बजाकर रिखी का स्वागत किया।
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि यह घटना किसी चमत्कार से कम नहीं है। जहां 40 साल बाद लोग उम्मीद छोड़ देते हैं, वहां एक बेटा नई पहचान में जिंदगी जीता रहा। शादी की, परिवार बसाया और फिर किस्मत के एक पल में पुरानी दुनिया वापस आ गई।