#अव्यवस्था
November 12, 2025
हिमाचल : अखाड़ों में खुद को "बेचने" के लिए नेशनल खिलाड़ी मजबूर, फीकी पड़ी मेडल की चमक
कल्याण सिंह ने पांच स्वर्ण समेत 7 पदक जीते
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चंबा। देवभूमि हिमाचल की पहाड़ियों से निकलने वाले खिलाड़ी हमेशा से अपने जज्बे और मेहनत से देश का नाम ऊंचा करते आए हैं। मगर कई बार हालात ऐसे बन जाते हैं कि प्रतिभा को पहचान मिलने से पहले ही संघर्ष की दीवारें खड़ी हो जाती हैं।
ऐसा ही दर्दभरा सच चंबा जिले के भटियात विधानसभा क्षेत्र की तारागढ़ पंचायत के युवा वेटलिफ्टर कल्याण सिंह की कहानी में झलकता है। 21 वर्षीय कल्याण सिंह के पास ताकत, जुनून और राष्ट्रीय स्तर की उपलब्धियां हैं, मगर हालात इतने कठिन हो गए हैं कि जिन हाथों में अब तक स्वर्ण पदकों की चमक होनी चाहिए थी, वे आज घर चलाने के लिए मेलों और अखाड़ों में कुश्ती लड़ने को मजबूर हैं।
कल्याण सिंह के पिता देवराज किसान हैं, और परिवार का गुजर-बसर खेती-बाड़ी से होता है। मगर पिछले कुछ वर्षों से परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। कल्याण की मां कौशल्या देवी की दोनों किडनियां फेल हो चुकी हैं।
उनका इलाज और नियमित डायलिसिस जालंधर में चल रहा है। इस बीमारी का खर्च, घर के रोजमर्रा के खर्चों के साथ मिलकर परिवार की आर्थिक स्थिति को बुरी तरह हिला गया है। कल्याण बताते हैं कि मां की हालत देखकर कई बार मन टूटता है, लेकिन उनका सपना अभी भी जिंदा है मैं देश के लिए पदक जीतना चाहता हूं, बस जरूरत है थोड़े सहारे की।
कल्याण सिंह ने बेहद सीमित संसाधनों में रहकर भी राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सात पदक जीते हैं, जिनमें पांच स्वर्ण पदक शामिल हैं। वे अपने दम पर ही प्रशिक्षण लेकर राज्य से बाहर प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे हैं।
इन उपलब्धियों के बावजूद, उन्हें न तो सरकार से आर्थिक सहयोग मिला और न ही खेल विभाग की ओर से डाइट या ट्रेनिंग का सहारा। कल्याण का कहना है कि प्रोफेशनल वेटलिफ्टिंग में आगे बढ़ने के लिए संतुलित डाइट, सप्लीमेंट्स और नियमित प्रशिक्षण जरूरी हैं। लेकिन वर्तमान हालात में वे यह सब वहन नहीं कर पा रहे।
उन्होंने बताया कि एक पेशेवर एथलीट के लिए हर महीने करीब 50 हजार रुपये का खर्च डाइट और ट्रेनिंग पर आता है, जो अब उनके लिए लगभग असंभव है। मेरे पास मेहनत और इच्छाशक्ति की कमी नहीं, बस एक मजबूत सहारा चाहिए- कल्याण कहते हैं। अगर सरकार या खेल विभाग थोड़ी मदद करे, तो मैं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए स्वर्ण ला सकता हूं।
कल्याण ने भावुक होकर बताया कि जिन प्रतियोगिताओं में उन्होंने राज्य और देश का नाम ऊंचा किया, उनके लिए की गई घोषणाओं का लाभ उन्हें आज तक नहीं मिला। उन्होंने कहा कि मैंने कई बार आवेदन दिए, अफसरों से मिला, लेकिन आज भी कोई मदद नहीं पहुंची। अब तो हालात ऐसे हैं कि अभ्यास छोड़कर मेलों में कुश्ती लड़नी पड़ रही है ताकि घर का खर्च चल सके।
भटियात क्षेत्र के युवाओं और ग्रामवासियों ने भी सरकार से मांग की है कि कल्याण जैसे प्रतिभाशाली खिलाड़ी की मदद की जाए। ग्रामीणों का कहना है कि यदि सरकार ने समय रहते सहयोग दिया, तो यह युवा अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का नाम रोशन कर सकता है। उनका कहना है कि चंबा जैसे दूरदराज इलाके से निकलने वाले खिलाड़ी अक्सर सुविधाओं की कमी के कारण पीछे रह जाते हैं।
चंबा जिले में विकास की बातें सड़कों, सुरंगों और योजनाओं तक सीमित हैं। लेकिन अगर सरकार खेल प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने के लिए आगे आए, तो कल्याण सिंह जैसे खिलाड़ी देश के गौरव बन सकते हैं। उनमें ताकत, जज्बा और जुनून सब है- बस जरूरत है सही मार्गदर्शन और सहयोग की।