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July 28, 2025

हिमाचल : जन्म के बाद चल बसी मां, ब्रेन ट्यूमर से जूझा- अब NET क्वालीफाई कर बढ़ाया गरीब पिता का मान

पिता के साथ खेतीबाड़ी में बहाया खूब पसीना

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Saurabh Sharma

सिरमौर। मिट्टी से उठकर आसमां को छू गया, कठिन राहों से चलकर मंजिल को ढूंढ गया। न कोचिंग थी, न सहारे किसी किताब के, हौसलों से खुद अपना रास्ता बुन गया। जन्म के 16 दिन बाद छिन गई मां, गरीब पिता ने पाला। ब्रेन ट्यूमर की आंधियों से वो ना डगमगाया, खेतों में हल चलाया, गोशाला में समय बिताया, उसी हाथ ने ज्ञान का दीप भी जलाया।

छोटे से गांव के बेटे का कमाल

ये शब्द बखूबी चरितार्थ करते हैं सिरमौ जिले के श्री रेणुका जी के बेटे सौरभ शर्मा के जीवन को। छोटे से गांव से निकलकर सौरभ शर्मा ने वो कर दिखाया है, जो अक्सर बड़े शहरों में रहकर भी कई युवा नहीं कर पाते।

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NET क्वालीफाई कर बढ़ाया मान

छछेती पंचायत के खाली अच्छोन गांव का यह बेटा आज पूरे क्षेत्र में प्रेरणा का प्रतीक बन चुका है। आर्थिक तंगी, पारिवारिक दुख और शारीरिक कष्टों से जूझते हुए, सौरभ ने बिना किसी कोचिंग या ट्यूशन के NET क्वालीफाई किया है।

संघर्षों भरा रहा जीवन

उनकी सफलता इस बात का सशक्त उदाहरण है कि इच्छाशक्ति और मेहनत अगर सच्ची हो, तो कोई भी कठिनाई आपको आपके लक्ष्य तक पहुंचने से नहीं रोक सकती। सौरभ का जीवन बचपन से ही संघर्षों की किताब रहा है।

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जन्म के 16 दिन बाद मां की मौत

जब वह केवल 16 दिन के थे, तब उनकी मां मीरा देवी का निधन हो गया। उनके बाद दादी ने उन्हें संभाला, लेकिन छह महीने में उनका भी निधन हो गया। पिता ब्रह्मानंद शर्मा, जो स्वयं एक साधारण किसान हैं, ने बेटे को पालने-पोसने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

ब्रेन ट्यूमर से जंग

सौरभ की विपत्तियों का दौर यहीं खत्म नहीं हुआ। 15 साल की उम्र में सौरभ को ब्रेन ट्यूमर हो गया। इलाज के लिए उन्हें PGI चंडीगढ़ ले जाया गया, जहां बड़ा ऑपरेशन हुआ। इस घातक बीमारी से लड़ते हुए उन्होंने न केवल जीवन को हराया, बल्कि अपनी पढ़ाई को भी कभी नहीं छोड़ा।

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बिना कोचिंग के पाई सफलता

ग्रेजुएशन के दिनों में सौरभ को रोजाना 30 किलोमीटर का सफर तय कर पांवटा साहिब कॉलेज जाना पड़ता था। कड़ी धूप, बरसात या सर्दी- कोई भी मौसम उनकी राह का रोड़ा नहीं बन सका। न ही उन्होंने किसी महंगी कोचिंग या ऑनलाइन क्लास का सहारा लिया। उनका आत्मविश्वास और स्व-अध्ययन ही उनके सबसे बड़े शिक्षक रहे।

 

उन्होंने पॉलिटिकल साइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई अच्छे अंकों से पूरी की और फिर NET परीक्षा दी। इस प्रतिष्ठित परीक्षा को पास कर अब सौरभ असिस्टेंट प्रोफेसर, जूनियर रिसर्च फेलो और PHD के लिए पात्र हो गए हैं।

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खेतों से किताबों तक

सौरभ न केवल पढ़ाई में अव्वल रहे, बल्कि खेती-बाड़ी और पशुपालन में भी उनकी गहरी रुचि रही है। पिता के साथ खेतों में काम करना, गाय-बैल की सेवा करना और गोशाला में समय बिताना उनकी दिनचर्या का हिस्सा रहा है। गांव के लोगों ने कई बार उन्हें हल चलाते, गोबर उठाते और मवेशियों की सेवा करते देखा है।

खेतीबाड़ी में बहाया खूब पसीना

उनकी बुआ जागृति शर्मा बताती हैं कि सौरभ को हर रोज खेतों में पसीना बहाते हुए देखना सामान्य बात थी, लेकिन उसके इरादे असामान्य थे। वह किताबों के साथ खेत को भी उतनी ही प्राथमिकता देता था।

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युवाओं के लिए मिसाल सौरभ

सौरभ की इस ऐतिहासिक सफलता से न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे क्षेत्र में खुशी और गर्व का माहौल है। गांव के बुजुर्गों से लेकर युवा तक, सभी उन्हें ‘संकल्प और साहस का प्रतीक’ मानते हैं। जहां आज के युवा अक्सर संसाधनों की कमी का रोना रोते हैं, वहीं सौरभ बिना किसी संसाधन के एक बड़ी परीक्षा पास कर बता गए हैं कि जिद हो तो रास्ता खुद बन जाता है।

कठिनाइयों से नहीं घबराएं

सौरभ की कहानी उन सभी युवाओं के लिए एक आईना है, जो कठिनाइयों के सामने घुटने टेक देते हैं। उनकी सफलता यह बताती है कि अगर हालात विपरीत हों, तो भी उम्मीद और मेहनत के साथ रास्ता निकाला जा सकता है।

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