#अव्यवस्था
July 28, 2025
सरकार भरोसे बैठा नगर निगम शिमला- कर्ज और मदद का हुआ मोहताज, सैलरी देने तक के पैसे नहीं
कमाई 35 करोड़, खर्च 75 करोड़, शिमला की नगर व्यवस्था पर मंडरा रहा वित्तीय संकट
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शिमला। कभी मुंबई जैसे नगर निगमों को कर्ज देने वाला MC शिमला अब खुद कर्मचारियों की सैलरी और पेंशन तक के लिए राज्य और केंद्र सरकार के अनुदान पर निर्भर है। नगर निगम शिमला जिसके कभी देश के सबसे समृद्ध नगर निगमों में गिना जाता था, आज अपने सबसे बदहाल दौर से गुजर रहा है।
नगर निगम की सालाना खुद की कमाई अब महज 35 करोड़ रुपये तक सिमट गई है। यह राशि भी प्रॉपर्टी टैक्स, पार्किंग शुल्क, किराया और NOC जैसी मदों से आती है। वहीं 500 कर्मचारियों और 780 पेंशनरों पर निगम हर साल करीब 75 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है।
इस भारी अंतर को पाटने के लिए निगम को केंद्र और राज्य से कुल 67 करोड़ रुपये का अनुदान मिल रहा है, जो पूरी तरह से विकास कार्यों के लिए होता है। लेकिन अब उसका बड़ा हिस्सा सैलरी और पेंशन में ही खत्म हो रहा है।
पहले वन, परिवहन और स्वास्थ्य विभाग नगर निगम के अधीन हुआ करते थे, जिससे बड़ी आमदनी होती थी। लेकिन समय के साथ ये विभाग निगम से छीन लिए गए। एक समय निगम को पेयजल से हर साल 16 करोड़ की आय होती थी, लेकिन अब यह पूरी रकम जल प्रबंधन कंपनी को मिल रही है। निगम कई बार अपना हिस्सा मांग चुका है, लेकिन कंपनी घाटा दिखाकर भुगतान से बच रही है।
शहर में दो सालों में 150 से ज्यादा नई पार्किंग, सड़कों, खेल मैदानों और पार्कों के प्रस्ताव आए हैं, लेकिन बजट न होने के कारण ये सभी अधर में लटके हैं। कुछ कार्य तो शुरू हुए लेकिन बजट खत्म होने से बीच में रुक गए। भारी बारिश से हुए नुकसान की भरपाई के लिए भी निगम को डेढ़-दो साल इंतजार करना पड़ रहा है।
मेयर सुरेंद्र चौहान का कहना है कि निगम की आमदनी बढ़ाने के कई प्रस्ताव तैयार हैं। स्मार्ट सिटी के तहत छह बड़ी पार्किंग और लिफ्ट संचालन से कमाई की उम्मीद है। निगम अपनी जमीनों पर व्यावसायिक परिसर भी बनाने की योजना में है। टैक्स रिकवरी सुधारने पर केंद्र से 10 करोड़ रुपये मिलने की संभावना है।