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July 12, 2025

हिमाचल में 45 साल पहले मिली वन भूमि से बेदखल होंगे हजारों लोग, तिब्बतियों पर भी गिरेगी गाज

45 साल पुरानी खुलेगी फाइल, हजारों परिवारों पर गाज गिरना तय

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sukhu Govt Forest Land

शिमला। हिमाचल प्रदेश में 45 साल से वन भूमि पर बसे लोगों पर अब बड़ी गाज गिरने वाली है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सुक्खू सरकार ने वन भूमि पर पिछले 45 साल से रह रहे लोगों को बेदखल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इन लोगों को साल 1980 से पहले राजस्व विभाग ने खुद ही वन भूमि अलॉट की थी। लेकिन अब 45 साल बाद उनसे यह वन भूमि वापस ली जाएगी और इसकी जद में तिब्बती भी आएंगे।

तिब्बतियों पर भी गिरेगी गाज

बता दें कि हिमाचल प्रदेश में 1970 और 80 के दशक में काफी संख्या में तिब्बती समुदाय के लोग भी हिमाचल में सेटल हुए हैं। 1980 से पहले इन तिब्बतीयों को सेटल करने के लिए राजस्व विभाग ने वन भूमि अलॉट की थी। ऐसे में अब वन भूमि पर रह रहे सैंकड़ों तिब्बतियों को भी वन भूमि से बेदखल किया जाएगा। उनसे वन भूमि वापस लेकर उसे वन विभाग को दी जाएगी। 

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हरकत में आई सुक्खू सरकार 

दरअसल सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार ने सभी जिलों में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम गठित करने के निर्देश जारी कर दिए हैं। ये टीमें अब जिला स्तर पर ऐसे सभी मामलों की जांच करेंगी, जहां राजस्व विभाग ने बिना उचित मंजूरी के वन भूमि का आवंटन कर दिया था। ऐसे सभी मामलों में जमीन को वापस लेकर वन विभाग को सौंपा जाएगा, और इसमें दशकों से रह रहे लोगों को बेदखल भी किया जा सकता है।

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1980 से पहले राजस्व विभाग द्वारा दी गई वन भूमि लेंगे वापस

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश गोडवर्मा बनाम भारत सरकार केस के तहत आया है, जिसके तहत कहा गया है कि किसी भी प्रकार की वन भूमि का गैर.वन कार्यों के लिए प्रयोग केवल फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट की मंजूरी के बाद ही संभव है। यह कानून वर्ष 1980 में लागू हुआ था, लेकिन उससे पहले कई जिलों में ऐसी भूमि तिब्बती शरणार्थियों या अन्य नागरिकों को राजस्व विभाग द्वारा दे दी गई थी। अब इन मामलों को खंगालने और कार्रवाई करने का आदेश दिया गया है।

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सैंकड़ों परिवारों पर मंडराया संकट

इस कार्रवाई से ऐसे हजारों लोग प्रभावित हो सकते हैं जो पिछले चार से पांच दशकों से वन भूमि पर बसे हुए हैं। एसआईटी यह जांच करेगी कि किन.किन मामलों में एफसीए की अनदेखी करते हुए वन भूमि पर लोगों को बसाया गया। अगर यह पाया गया कि यह भूमि वन विभाग की थी और उसे बिना अनुमति के किसी और को दी गई, तो उसे वन विभाग को लौटाना होगा, भले ही वहां अब बस्ती या संस्थान खड़ा हो।

 

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जनहित में छूट के लिए लगेगी कीमत

हालांकि, सरकार ने यह भी कहा है कि यदि किसी भूमि पर जनहित से जुड़ा कोई बड़ा सार्वजनिक प्रोजेक्ट संचालित हो रहा है, तो ऐसी स्थिति में उस भूमि को वापस न लेकर उसके बदले में तयशुदा राशि ली जाएगी। यह रकम वन विकास कार्यों में खर्च की जाएगी। हिमाचल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम का गठन किया है। यह टीम ही पुरानी फाइलों को खंगालेगी और वन भूमि को खाली करवाएगी।

 

इस टीम में तीन अधिकारियों को शामिल किया गया है। जिसमें :-

  • उपायुक्त (DC) – टीम के चेयरमैन
  • जिला राजस्व अधिकारी – सदस्य सचिव
  • जिला वन अधिकारी (DFO) – सदस्य

यह टीम पूरे जिले में पुराने भूमि रिकॉर्ड खंगालेगी और यह पता लगाएगी कि कहां-कहां पर नियमों को दरकिनार कर जमीनें बांटी गईं।

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