#धर्म
December 18, 2025
देवता चालदा महासू के आगे चलता है न्याय का प्रतीक- पश्मी पहुंचे 70 बकरे, गांववासी करेंगे सेवा
पुजारी, ठाणी, भंडारी और बाजगी भी पहुंचे साथ
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सिरमौर। उत्तराखंड के जौनसार क्षेत्र के दसऊ गांव से पशमी तक पहुंची चालदा महासू महाराज की यात्रा ने इतिहास में अपनी अलग पहचान बना ली है। करीब एक सप्ताह तक चली इस पदयात्रा के प्रत्यक्ष साक्षी एक लाख से अधिक श्रद्धालु बने।
पहाड़ों के दुर्गम रास्तों, गांव-घाटियों और जंगलों से गुजरती यह यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं रही, बल्कि देव आस्था, परंपरा और लोक संस्कृति का अद्भुत संगम बन गई। इस यात्रा में सैकड़ों लोग शामिल हुए।
इस पूरी यात्रा में श्रद्धालुओं की नजरें सबसे आगे चल रहे विशाल काडका पर टिकी रहीं। स्थानीय भाषा में काडका तांबे का वह विशाल पात्र है, जो चालदा महासू महाराज के आगमन का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि जहां काडका चलता है, वहां देव शक्ति स्वयं मार्ग प्रशस्त करती है। यह रास्ते की बाधाओं को दूर करता है और न्याय के देवता के आने का संकेत देता है।
महाराज पालकी में विराजमान रहते हैं और उनके आगे-आगे काडका और छत्र चलते हैं, जो न्याय और सत्य के प्रतीक माने जाते हैं। कई श्रद्धालुओं ने पहली बार इस परंपरा को इतने करीब से देखा और समझा, जिससे उन्हें देव संस्कृति के अनछुए पहलुओं से रूबरू होने का अवसर मिला।
इस यात्रा की एक अनोखी विशेषता यह रही कि दसऊ गांव से चालदा महासू महाराज के साथ करीब 70 बकरे भी पशमी पहुंचे। इन्हें देव परंपरा का हिस्सा माना जाता है। पशमी मंदिर समिति के अनुसार, इन बकरों की सेवा और देखभाल का जिम्मा गांव के स्थानीय परिवारों को सौंपा गया है।
हर दिन अलग-अलग परिवार इन बकरों को गांव के चरागाहों और जंगलों में चराने ले जाएंगे। वहीं चार से पांच बकरे मंदिर परिसर के आसपास ही रहेंगे। साल भर तक इनकी देखरेख श्रद्धा और जिम्मेदारी के साथ की जाएगी, जिसे देव सेवा का ही एक रूप माना जाता है।
चालदा महासू महाराज की सेवा के लिए उत्तराखंड के जौनसार क्षेत्र से कई पारंपरिक सेवक भी पशमी पहुंचे हैं। मंदिर समिति सदस्य रघुवीर सिंह के अनुसार, ग्राम चातर से पुजारी हरिचंद, मेदरथ से प्यारे लाल, निनुस से लायक राम और पुटाड़े से संतराम पुजारी महाराज की सेवा में शामिल हैं।
इसके अलावा जौनसार से भंडारी के रूप में जगत सिंह, अनिल चौहान और सुरेंद्र सिंह पहुंचे हैं। ठाणी यानी तिलक लगाने वाले सेवकों में तरेपन सिंह, हैप्पी चौहान, विक्रम सिंह और हरदयाल सिंह भी महाराज के साथ पशमी गांव आए हैं। इन सभी की भूमिका देव परंपराओं को जीवित रखने में बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है।
यात्रा के पश्चात अब पशमी गांव में धार्मिक गतिविधियां और तेज हो गई हैं। मंदिर समिति ने निर्णय लिया है कि पशमी मंदिर में रोजाना भंडारे का आयोजन किया जाएगा। दूर-दराज से महाराज के दर्शन को पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए भोजन और सेवा की पूरी व्यवस्था की जा रही है। मंदिर समिति के भंडारी रघुवीर सिंह, दिनेश चौहान और प्रकाश चौधरी का कहना है कि श्रद्धालुओं की सेवा ही देव सेवा है और इसके लिए समिति हर संभव प्रयास कर रही है।
दसऊ से पशमी तक की यह यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि उत्तराखंड की समृद्ध देव संस्कृति और लोक परंपराओं का जीवंत उदाहरण बनकर उभरी है। पहली बार इतनी बड़ी संख्या में लोगों ने चालदा महासू महाराज की परंपराओं को इतने करीब से देखा, समझा और महसूस किया। यह यात्रा आने वाली पीढ़ियों के लिए भी आस्था, विश्वास और सांस्कृतिक विरासत की अमिट याद बनकर हमेशा जीवित रहेगी।