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July 15, 2025
सावन माह में बिजली महादेव के कपाट बंद, इतिहास में पहली बार हुए ऐसा; जानें देव आदेश की वजह
बिजली महादेव के कपाट बंद करने को देववाणी से मिले थे आदेश
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कुल्लू। श्रावण मास, जो भगवान शिव की भक्ति का सर्वश्रेष्ठ समय माना जाता है, उस पवित्र अवसर पर इस वर्ष हिमाचल प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध बिजली महादेव मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए बंद हो गए हैं। यह पहली बार हुआ है जब श्रावण माह में मंदिर के द्वार आम भक्तों के लिए बंद रहे। यह निर्णय स्वयं देव आदेश पर लिया गया है, जिसके पीछे बिजली महादेव की नाराजगी और रोपवे निर्माण को लेकर गहराते विवाद को कारण बताया जा रहा है।
मंदिर के कारदार विनेंद्र जंबाल के अनुसार गूरवाणी (देववाणी) के माध्यम से महादेव ने आदेश दिया है कि आगामी छह माह तक मंदिर परिसर में कोई धार्मिक या निर्माण कार्य नहीं होगा। श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाएंगे और उन्हें बाहर से ही दर्शन करने होंगे। यह देव आदेश सीधे तौर पर बिजली महादेव रोपवे परियोजना से जुड़ा माना जा रहा है, जिससे महादेव रुष्ट बताए जा रहे हैं। वर्षों से इस परियोजना को लेकर विवाद चल रहा है, लेकिन अब हालात इतने संवेदनशील हो गए हैं कि देव परंपरा के तहत मंदिर प्रशासन को कपाट बंद करने पड़े।
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बिजली महादेव की पहाड़ी पर हाल ही में कुछ नई दरारें देखी गई हैं, जिससे स्थानीय लोग इसे संभावित प्राकृतिक आपदा का संकेत मान रहे हैं। ऐसे में जहां एक ओर पर्यावरणीय खतरे मंडरा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर देव आस्था भी आहत होती दिख रही है। स्थानीय लोगों का मानना है कि रोपवे का निर्माण क्षेत्र की प्राकृतिक और धार्मिक संरचना को नुकसान पहुंचा सकता है।
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जानकारी के मुताबिक अब तक रोपवे परियोजना के दायरे में आने वाले 72 पेड़ों का कटान कर दिया गया है, जिनकी लकड़ी अभी भी उसी क्षेत्र में पड़ी है। ग्रामीणों ने स्पष्ट किया है कि जब तक देव आदेश के खिलाफ यह परियोजना नहीं रोकी जाती, लकड़ी को वहां से हटाने नहीं दिया जाएगा। रोपवे के विरोध में स्थानीय बुजुर्ग शिवनाथ ने आत्मदाह तक की चेतावनी दे दी है। उन्होंने कहा कि यदि रोपवे निर्माण नहीं रोका गया तो वे यह कदम उठाने को मजबूर होंगे। साथ ही 25 जुलाई को महाविरोध प्रदर्शन का आयोजन भी किया जा रहा है, जिसमें स्थानीय जनता, देव प्रतिनिधि और पर्यावरण प्रेमी एकजुट होकर विरोध दर्ज कराएंगे।
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शिवनाथ का कहना है कि 1988 में भी जब मंदिर परिसर में हेलीपैड बनाने की कोशिश हुई थीए तब भी प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ा था। आज फिर वही हालात बनते जा रहे हैं। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि कहीं सरकार और प्रशासन की यह मनमानी प्राकृतिक आपदा को न्यौता ना दे रही हो, क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो प्रदेश में बड़ी आपदा आ सकती है।
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यह पूरी स्थिति एक बार फिर विकास बनाम परंपरा की बहस को जन्म देती है। जहां एक ओर सरकार और निजी कंपनियां पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए रोपवे को ज़रूरी मान रही हैं, वहीं दूसरी ओर देव परंपरा पर्यावरण और स्थानीय लोगों की आस्था इस परियोजना के खिलाफ खड़ी है। बिजली महादेव केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, यह देव संस्कृति का जीवंत केंद्र है, जहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं। खासकर सावन में, जब भगवान शिव की विशेष पूजा होती है, मंदिर में भक्तों का तांता लगता है, लेकिन इस बार, देव आदेश ने स्वयं कपाट बंद करा दिए।