#राजनीति
November 2, 2025
सुक्खू सरकार के फैसले पर कांग्रेस में बगावत, बागी हुए कई कांग्रेस नेताओं ने खुलकर किया विरोध
सुक्खू कैबिनेट के रोस्टर फैसले से कांग्रेस में दरार, पार्षदों ने जताई नाराजगी
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शिमला। हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार के एक फैसले ने अब उसके अपने ही जनप्रतिनिधियों को उसके खिलाफ खड़ा कर दिया है। शिमला नगर निगम ;एमसीद्ध में कांग्रेस पार्षदों ने खुलकर अपने ही मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के कैबिनेट निर्णय के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मामला मेयर और डिप्टी मेयर के रोस्टर में बदलाव से जुड़ा है, जिसने शिमला की राजनीति में नया भूचाल ला दिया है।
सूत्रों के अनुसार सुक्खू कैबिनेट द्वारा नगर निगम शिमला में मेयर और डिप्टी मेयर का कार्यकाल 2.5 साल से बढ़ाकर 5 साल करने के फैसले से नगर निगम शिमला में कांग्रेस के 15 पार्षद नाराज़ हैं। इन पार्षदों का कहना है कि इस रोस्टर बदलाव से महिलाओं का अधिकार छीना गया है, क्योंकि मौजूदा व्यवस्था के तहत पहले ढाई साल के लिए महिला पार्षद को मेयर बनना था। कांग्रेस पार्षद कांता ने खुलकर कहा कि हम मुख्यमंत्री या मेयर के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन सरकार ने जो रोस्टर बदला है, वह महिलाओं के अधिकारों पर प्रहार है। इस बार महिलाओं की संख्या भी अधिक है, उन्हें मौका मिलना चाहिए था।
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शिमला नगर निगम की मासिक बैठक सरकार विरोधी नारों से गूंज उठी। जहां भाजपा पार्षद संविधान की प्रति लेकर सदन में विरोध जता रहे थे, वहीं कांग्रेस पार्षद भी सदन में खड़े होकर कैबिनेट के फैसले के खिलाफ प्रस्ताव लाने की मांग करने लगे। नतीजा पूरा सदन दो धड़ों में बंट गया। भाजपा पार्षद बिटू पाना ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री सुक्खू ने हिटलरशाही अंदाज में रोस्टर बदल दिया है। महिलाओं का हक मारा गया है और संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
भाजपा ने इसे महिला विरोधी फैसला करार दिया है। पार्षद कमलेश ने कहा कि 21 महिला पार्षद चुनी गई हैं, और फिर भी सरकार ने महिलाओं का हक छीन लिया। जो पार्टी महिला सशक्तिकरण की बात करती है, वही आज महिलाओं के अधिकारों से समझौता कर रही है। विपक्ष का कहना है कि सरकार ने चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता खत्म कर दी है और अब मेयर-डिप्टी मेयर का चयन मतदान से नहीं, बल्कि सीधे तौर पर किया जा रहा है। भाजपा ने इस पूरे प्रकरण को तुगलकी फरमान बताया है।
राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस के भीतर यह खुला विरोध पार्टी नेतृत्व के लिए परेशानी का सबब बन गया है। सुक्खू सरकार को जहां विपक्ष के हमलों से जूझना पड़ रहा था, अब अपने ही पार्षदों की नाराज़गी ने संकट गहरा दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला केवल शिमला नगर निगम तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि कांग्रेस के भीतर बढ़ते असंतोष का प्रतीक बन सकता है।
सुक्खू सरकार के लिए यह विरोध उस समय सामने आया है जब राज्य में पंचायत के साथ साथ स्थानीय निकायों के चुनाव की तैयारियां चल रही हैं। अपने ही पार्षदों का विरोध सार्वजनिक रूप से होना सरकार की छवि के लिए झटका माना जा रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री सुक्खू इस घर के भीतर के विद्रोह को कैसे संभालते हैं।