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November 2, 2025

हिमाचल के इस गांव में पहली बार जला बल्ब- लालटेन के सहारे 3 पीढ़ियां गुजारती रही जीवन

गांव में रहते हैं 4 परिवार

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Himachal News

कुल्लू। आज के समय में अगर आपसे कोई कहे कि हिमाचल में एक ऐसा गांव है जहां बिजली नहीं है तो क्या आप इस पर विश्वास करेंगे ? शायद नहीं लेकिन यकीन मानिए ऐसा है। हिमाचल का एक गांव ऐसा है जहां बिजली की सुविधा नहीं थी और अब जब इस गांव में बिजली पहुंची तो ये चर्चा का विषय बन गया।

सूरज की रोशनी का ही था सहारा

सैंज घाटी का धारा पोरिए गांव- जहां तीन पीढ़ियां मोमबत्ती, लालटेन व सूरज की रोशनी के सहारे काम चला रहीं थीं। बिजली नहीं होने की वजह से गांव के बच्चों की पढ़ाई से लेकर बुजुर्गों की सुरक्षा, सारी चीजें असुरक्षा में थीं।

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पहली बार गांव में जला बिजली बल्ब

अब गांव की तस्वीर बदलने वाली है। अब धारा पोरिए गांव में बिजली का पहल बल्ब जला है। जब गांव में रोशनी आई तो बच्चों की तालियां दूर तक गूंज उठी। वहीं बुजुर्गों की आंखों से आंसू छलक पड़े। गौरतलब है कि गांव तक आज भी सड़क नहीं है।

गांव में इंटरनेट भी पहुंचा पहली बार  

गांव में बिजली ही पहली बार नहीं आई है बल्कि मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट भी पहली बार पहुंचा है। वहीं युवाओं ने वीडियो कॉल की कोशिश की तो बुजुर्गों ने कहा कि अगर ये पहले होता तो हमारी जिंदगी की मुश्किलें कम हो जातीं। 

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अब भी 20 गांवों में नहीं है बिजली

कुल्लू जिले के चार उपमंडल- कुल्लू, मनाली, बंजार व आनी- अभी भी इनमें 20 से ज्यादा गांव व उपगांव ऐसे हैं जिनमें अब तक बिजली नहीं पहुंची है। दुख की बात है कि इस डिजिटल युग में भी यहां के ग्रामीण अंधेरे में जिंदगी गुजार रहे हैं।

बदलेगी गांव के लोगों की जिंदगियां

ग्रामीणों का कहना है कि बिजली आने के बाद गांव बदलेगा, जिंदगी बदलेगी, बच्चे रात में पढ़ सकेंगे, महिलाएं सुरक्षित रूप से काम कर पाएंगी। गौरतलब है कि सैंज घाटी के ही दुर्गम गांव शाक्टी, मरौड व शुगाड़ तीन ऐसे गांव हैं जिनमें बिजली नहीं है।

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मशीनी युग में मोमबत्ती का सहारा

एक महिला कहती हैं कि बिना बिजली के हर काम सूरज की गति पर निर्भर था। अगर कोई काम शाम तक रह जाए तो अगले दिन का इंतजार करना पड़ता था। वहीं एक पुरुष कहते हैं कि देश मशीनों के युग में था और हम मोमबत्ती में जिंदगी खोज रहे थे।

बच्चों का पढ़ना हो जाता नामुमकिन

वो आगे कहते हैं कि अगर कोई बीमार हो जाए तो बस भगवान ही मालिक था। परीक्षाओं के दौरान दिक्कत और बढ़ जाती थी। बच्चे अंधेरा होने तक घर पहुंचते थे और फिर दोबारा अंधेरे में पढ़ना नामुमकिन था। 

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