#राजनीति
September 8, 2025
हिमाचल के चुनावी अखाड़े में रिश्तों की भिड़ंत: चाचा को हरा MLA बना था भतीजा, आज है मंत्री
पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से चलता रहा शीत युद्ध
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बिलासपुर। हिमाचल की राजनीति में कई बार एक ही परिवार के सदस्य चुनावी मैदान में आमने-सामने आ जाते हैं और मुकाबला जंग जैसा बन जाता है। बिलासपुर जिले की घुमारवीं विधानसभा सीट भी ऐसे ही दिलचस्प चुनावी इतिहास की गवाह रही है, जहां मौजूदा विधायक और मंत्री राजेश धर्माणी ने कभी अपने ही चाचा को शिकस्त देकर जीत दर्ज की थी।
राजेश धर्माणी ने साल 2007 में पहली बार चुनाव लड़ा और विजेता भी हुए। खास बात ये थी कि इस चुनाव में उन्होंने अपने चाचा कर्मदेव धर्माणी को मात दी थी। चाचा कर्मदेव दो बार के विधायक थे। वहीं भतीजे ने अबतक तीन बार विधायकी का चुनाव जीता है।
2007 में पहली बार विधायक बनने के बाद धर्माणी 2012 के विधानसभा चुनाव में भी शामिल हुए और दूसरी बार भी विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे। हालांकि 2017 में वो हैट्रिक नहीं बना पाए और विधायकी का चुनाव हार गए।
साल 2022 में धर्माणी को एक बार फिर टिकट मिला। इस बार उन्होंने बीजेपी सरकार में मंत्री रहे राजेंद्र गर्ग को़ मात दी। इस बार धर्माणी को मंत्री पद मिलने की उम्मीदें थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस फैसले से नाराज उनके एक समर्थक ने अपना सिर मुंडवा लिया था।
2022 में हुई राजेश धर्माणी की जीत इसलिए खास थी क्योंकि पूरे बिलासपुर जिले की 4 विधानसभा सीटों में से सिर्फ एक सीट पर कांग्रेस जीत पाई थी। बाकी की 3 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी।
साल 2012 में जीत हासिल करने के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार में उन्हें मुख्य संसदीय सचिव का पद दिया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने उन्हें वन विभाग के साथ अटैच किया था। वीरभद्र सिंह और राजेश धर्माणी के बीच हमेशा सियासी शीत युद्ध चलता रहा।
दोनों नेताओं ने कभी एक-दूसरे के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया, लेकिन राजेश धर्माणी खुद को पद के साथ शक्तियां न दिए जाने को लेकर अक्सर नाराज रहते थे। धर्माणी को CM सुक्खू का भी खास माना जाता है क्योंकि ये दोनों पूर्व दिवंगत CM वीरभद्र सिंह के विरोधियों में शामिल रहे हैं।
राजेश धर्माणी ने नाराज होकर पहले 2 अक्टूबर 2013 को मुख्य संसदीय सचिव के पद से इस्तीफा दिया। CPS को मिलने वाली सभी सुविधाएं छोड़ दी थीं। इसके बाद साल 2014 के लोकसभा चुनाव में नुकसान के डर से उन्होंने 4 अक्टूबर के दिन इस्तीफा वापस भी ले लिया।
इसके बाद दोनों नेताओं के बीच चल रहे सियासी शीत युद्ध में जब खटपट बढ़ी, तो उन्होंने 10 मई 2014 को एक बार फिर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। राजेश धर्माणी की शिकायत थी कि सरकार में केवल उन्हें मुख्य संसदीय सचिव को मिलने वाली सुविधाएं दी गई हैं, शक्तियां नहीं।
धर्माणी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव, यूथ कांग्रेस के महासचिव और जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके हैं। वे कांग्रेस चार्जशीट कमेटी के अध्यक्ष भी रहे हैं। इतना ही नहीं धर्माणी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय सचिव का पद भी संभाल चुके हैं।
धर्माणी का जन्म 2 अप्रैल 1972 को घुमारवीं में हुआ। मंत्री राजेश धर्माणी ने अपने वक्त में NIT हमीरपुर से बी.टेक की पढ़ाई की है। इतना ही नहीं, इसके बाद उन्होंने इग्नू के जरिए MBA की डिग्री भी हासिल की।
विधायक राजेश धर्माणी संवेदना चैरिटेबल सोसायटी के फाउंडर मेंबर भी हैं। ये सोसाइटी गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए काम करती है। एक लंबे करियर के बावजूद धर्माणी एक साफ छवि के नेता के रूप में निकलकर आए हैं।