#विविध

September 24, 2025

हिमाचल आपदा पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, सरकार से मांगा पिछले 20 साल का रिकॉर्ड

'पुष्पा स्टाइल' में बहकर आई सैकड़ों टन लकड़ियां

शेयर करें:

SUKHU GOVERNMENT

शिमला। हिमाचल प्रदेश में इस साल बारिश और फ्लैश फ्लड के कारण हुई भारी तबाही ने अब देश की सर्वोच्च अदालत को भी चिंता में डाल दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हुई सुनवाई में राज्य सरकार से कड़े शब्दों में जवाब तलब किया।

हिमाचल आपदा पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि हिमाचल में हुए इस विनाश के लिए केवल प्राकृतिक कारण जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि इंसानी गतिविधियों ने भी आपदा की रफ्तार और असर को कई गुना बढ़ा दिया है।

यह भी पढ़ें : हिमाचल : सड़क बहाली का काम कर रहा था ऑपरेटर, खाई में गिरी JCB- निकल गए प्राण

 हिमाचल में गंभीर संकट

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि हिमाचल समेत पूरा हिमालयी क्षेत्र “गंभीर अस्तित्व संकट” का सामना कर रहा है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि बार-बार होने वाले भूस्खलन, इमारतों का ध्वस्त होना और सड़कों का धंसना प्रकृति की गलती नहीं, बल्कि अव्यवस्थित विकास और पर्यावरणीय संतुलन के साथ खिलवाड़ का परिणाम है।

20 साल का मांगा रिकॉर्ड

सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार से 28 अक्टूबर तक विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है। इस रिपोर्ट में पिछले 20 वर्षों के दौरान गैर-वन उपयोग के लिए कितनी भूमि डायवर्ट की गई, कितने पेड़ों की कटाई की अनुमति दी गई और कौन-कौन सी प्रजातियां सबसे अधिक प्रभावित हुईं-इसका ब्योरा मांगा गया है।

यह भी पढ़ें : हिमाचल : यमुना में डूबे तीन युवकों का नहीं मिला कोई सुराग, परिजनों का रो-रो कर हो रहा बुरा हाल

आंकड़े जुटाने में लगी सरकार

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि बिना ठोस आंकड़ों के सरकार को राहत नहीं मिलेगी। बेंच ने यह सवाल भी उठाया कि क्या राज्य के पास जलवायु परिवर्तन से निपटने की कोई नीति है? अगर हां, तो उसकी प्रति अदालत को उपलब्ध कराई जाए। साथ ही अब तक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने के लिए सरकार ने कोई अध्ययन किया है या नहीं—यह जानकारी भी रिकॉर्ड पर लाई जाए।

विकास कार्यों पर उठे सवाल

कोर्ट ने साफ कहा कि हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स, फोर-लेन हाइवे निर्माण, वनों की अंधाधुंध कटाई और बहुमंजिला भवनों का दबाव पहाड़ों पर लगातार बढ़ रहा है और यही आपदाओं के पीछे की बड़ी वजह है। अदालत ने चेताया कि अगर इस पर काबू नहीं पाया गया तो भविष्य में हालात और भयावह हो सकते हैं।

यह भी पढ़ें : हिमाचल के युवा SDM ने शादी के झूठे सपने दिखा लूटी आबरू, थाने पहुंची युवती- बताया सच

पुष्पा स्टाइल में बही सैकड़ों टन लकड़ियां

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उन वीडियो का भी जिक्र किया, जिनमें हालिया बाढ़ के समय तेज धारा में लकड़ी के लट्ठे बहते दिखे। अदालत ने कहा कि ये दृश्य हिमाचल के जंगलों में बड़े पैमाने पर अवैध पेड़ कटाई की ओर इशारा करते हैं।

कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर को अमीकस क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त किया था। उन्हें अधिवक्ता आकांक्षा लोढ़ा सहयोग दे रही हैं। अमीकस ने राज्य सरकार की अंतरिम रिपोर्ट का गहन अध्ययन कर अदालत को बताया कि पर्यावरणीय नुकसान और विकास परियोजनाओं के बीच संतुलन को लेकर कई गंभीर सवाल अनुत्तरित हैं। उन्होंने इस संबंध में एक विस्तृत प्रश्नावली तैयार की, जिसके आधार पर कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है।

यह भी पढ़ें : हिमाचल की जनता को महंगाई का झटका, सीमेंट के बढ़े दाम- घर बनाना हुआ मुश्किल

कोर्ट ने किन-किन मुद्दों पर मांगी जानकारी?

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जिन बिंदुओं पर विस्तृत ब्योरा मांगा है, उनमें शामिल हैं-

  • पिछले 20 वर्षों में भूमि डायवर्जन और पेड़ों की कटाई का पूरा रिकॉर्ड।
  • प्रतिपूरक वनीकरण की स्थिति और उसकी सफलता का आकलन।
  • जलवायु परिवर्तन नीति और उससे जुड़े अध्ययनों का ब्योरा।
  • आपदा प्रबंधन योजनाएं और बीते दो दशकों में इस पर खर्च की गई राशि का हिसाब।
  • सड़क निर्माण, खासकर राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों का विवरण, जिसमें चार-लेन हाईवे की संख्या का विशेष उल्लेख।
  • जलविद्युत परियोजनाओं, खनन गतिविधियों और भारी मशीनरी के उपयोग से पर्यावरण पर पड़े असर की रिपोर्ट।
  • पर्यटन और निर्माण कार्यों की वास्तविक स्थिति और उनके नियंत्रण के उपाय।

यह भी पढ़ें : हिमाचल में जम्मू के दो युवक गिरफ्तार, कार के डैशबोर्ड में छुपाया था लाखों का चिट्टा

अदालत का सख्त संदेश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब वक्त आ गया है जब हिमालयी राज्यों को विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन साधना ही होगा। अदालत ने टिप्पणी की कि बार-बार की आपदाओं को केवल प्रकृति की मार कहकर टालना अब संभव नहीं। यह इंसानी हस्तक्षेप का नतीजा है और राज्य को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी।

नोट : ऐसी ही तेज़, सटीक और ज़मीनी खबरों से जुड़े रहने के लिए इस लिंक पर क्लिक कर हमारे फेसबुक पेज को फॉलो करें।

ट्रेंडिंग न्यूज़
LAUGH CLUB
संबंधित आलेख