#विविध
November 4, 2025
बिजली महादेव रोपवे को लेकर मीटिंग पूरी- अब PM मोदी के फैसले पर टिकी लोगों की निगाहें
देवी-देवताओं की “जगती” में आया आदेश- नहीं बनेगा रोपवे
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कुल्लू। देवभूमि हिमाचल की धार्मिक विरासत और आधुनिक विकास के बीच अब एक बड़ा टकराव उभर आया है। कुल्लू घाटी के प्राचीन आस्था केंद्र बिजली महादेव मंदिर से जुड़ा प्रस्तावित रोपवे प्रोजेक्ट अब सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) की मेज पर पहुंच गया है।
यह मामला अब केवल एक परियोजना का नहीं रहा, बल्कि हिमाचल की देव संस्कृति, पर्यावरणीय संतुलन और स्थानीय आस्था का प्रतीक बन चुका है। बिजली महादेव रोपवे का विचार शुरू में पर्यटन को बढ़ावा देने और स्थानीय रोजगार सृजन के उद्देश्य से लाया गया था।
परियोजना के तहत कुल्लू घाटी से लगभग 2.5 किलोमीटर लंबा रोपवे बनना प्रस्तावित है, जिससे श्रद्धालुओं को कठिन पैदल चढ़ाई से राहत मिल सके। लेकिन जैसे-जैसे परियोजना के सर्वे और प्रारंभिक कार्य आगे बढ़े, स्थानीय देव समितियों और ग्रामीणों ने इसका विरोध तेज कर दिया। विरोध करने वालों का कहना है कि बिजली महादेव कोई पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था का केंद्र है और यहां किसी भी प्रकार का निर्माण देव आदेशों का उल्लंघन होगा।
31 अक्तूबर को बिजली महादेव में आयोजित जगती (देव संवाद) के दौरान देवता स्वयंभू रूप में प्रकट हुए माने जाते हैं। इस जगती में स्पष्ट भविष्यवाणी आई- देव स्थल में किसी प्रकार की छेड़छाड़ न की जाए; यह स्थान केवल पूजा के लिए है, न कि व्यापार के लिए। देव आदेश के बाद से ही विरोध संघर्ष समिति ने आंदोलन तेज किया और इस पूरे मामले को केंद्र सरकार तक पहुंचाने की ठान ली।
इसी सिलसिले में सोमवार को पूर्व सांसद एवं भगवान रघुनाथ जी के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल ने दिल्ली में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की। करीब एक घंटे चली बैठक में प्रतिनिधिमंडल ने रोपवे परियोजना से जुड़ी तमाम जानकारी और स्थानीय आपत्तियां नड्डा के समक्ष रखीं।
महेश्वर सिंह ने बताया कि उन्होंने स्पष्ट कहा कि बिजली महादेव घाटी के देवता स्वयं इस परियोजना के विरोध में हैं। जब देव आज्ञा नहीं है, तो कोई भी विकास योजना वहां शुभ फल नहीं दे सकती।
जेपी नड्डा ने इस विषय को गंभीरता से सुना और आश्वासन दिया कि वे PM नरेंद्र मोदी को स्थिति से अवगत करवाएंगे। सूत्रों के अनुसार, PMO ने पहले ही पर्यावरण, धार्मिक भावना और स्थानीय विरोध को देखते हुए परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट तलब कर ली है। सरकारी सूत्रों का यह भी कहना है कि केंद्र सरकार अब इस प्रोजेक्ट पर पुनर्विचार की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है और यह संभावना प्रबल है कि इसे निरस्त किया जा सकता है।

जिया पंचायत के प्रधान संजू पंडित ने कहा कि बिजली महादेव के देवता ने आदेश दिए हैं कि धार्मिक स्थल को किसी भी रूप में व्यवसायिक न बनाया जाए। उन्होंने बताया हमने जेपी नड्डा जी को देव आज्ञा से अवगत करवाया है। हमें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री भी देव संस्कृति का सम्मान करते हुए इस प्रोजेक्ट को रद्द करने का निर्णय लेंगे।
दूसरी ओर, परियोजना समर्थक समूह का कहना है कि रोपवे से न केवल श्रद्धालुओं की सुविधा बढ़ेगी, बल्कि स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। उनका दावा है कि रोपवे मंदिर से काफी दूरी पर प्रस्तावित है और इससे मंदिर क्षेत्र में कोई छेड़छाड़ नहीं होगी।
हालांकि इन तर्कों के बावजूद कुल्लू घाटी के अधिकतर ग्रामीण, कारदार और देव समितियां परियोजना के खिलाफ एकजुट हैं। उनका कहना है कि जब देवताओं ने मना कर दिया, तो किसी भी सरकार को इसका उल्लंघन करने का अधिकार नहीं है। ग्रामीणों के अनुसार, अगर रोपवे लग गया तो धीरे-धीरे बिजली महादेव एक “पर्यटन केंद्र” बन जाएगा और उसकी पवित्रता समाप्त हो जाएगी।
जैसे कि यह प्रोजेक्ट केंद्रीय स्तर का है, इसलिए अब इसका अंतिम निर्णय भी प्रधानमंत्री कार्यालय को ही लेना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक मामला पहुंचने के बाद अब सबकी निगाहें उनके निर्णय पर टिक गई हैं।
जेपी नड्डा स्वयं हिमाचल के निवासी हैं और कुल्लू देव संस्कृति से उनका गहरा जुड़ाव रहा है। ऐसे में यह उम्मीद की जा रही है कि वे प्रदेश की भावनाओं और धार्मिक परंपराओं को समझते हुए जन भावना के अनुरूप निर्णय करवाने की दिशा में कदम उठाएंगे।
अब सवाल यही है कि क्या विकास की रफ्तार देव संस्कृति की मर्यादा से ऊपर रखी जाएगी, या फिर परंपरा, प्रकृति और आस्था की जीत होगी? अगर प्रधानमंत्री कार्यालय से परियोजना निरस्त करने का फैसला आता है, तो यह न केवल बिजली महादेव के लिए, बल्कि कुल्लू घाटी की धार्मिक धरोहरों के संरक्षण के लिए एक ऐतिहासिक निर्णय साबित होगा।