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September 21, 2025
जमीन में समा रहा हिमाचल का यह पूरा गांव, 33 घर जमींदोज, तिरपाल में रहने को मजबूर 70 परिवार
बच्चों बूढ़ों के साथ तिरपाल में कट रही रातें
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कुल्लू। हिमाचल की हरी-भरी वादियों में बसे मातला गांव का नाम कभी उसके मीठे सेब, रसीले अनार और जापानी फलों के लिए लिया जाता था। पर आज वही गांव एक गहरी त्रासदी की चपेट में है। ज़मीन की गहराइयों से उठी तबाही ने यहां की ज़िंदगी को थाम लिया है। गांव का हर कोना, हर घर अब एक दर्दभरी दास्तान कह रहा है। भूस्खलन, धंसती ज़मीन और बढ़ती दरारें इस स्वर्ग जैसे गांव को धीरे.धीरे निगल रही हैं। जो गांव कभी प्रकृति की गोद में शांति से बसा था, आज वहां सिर्फ चीखें, आंसू और सिसकियां हैं।
मातला गांव के करीब 70 परिवारों के लिए यह मानसून सिर्फ बारिश नहीं, मौत का साया बनकर आया। अचानक हुए भूस्खलन और ज़मीन के धंसने से गांव के 33 मकान या तो पूरी तरह जमींदोज हो गए या रहने के काबिल नहीं बचे। जिन दीवारों पर कल तक बच्चों की किलकारियां गूंजती थीं, वहां आज गहराई तक फैली दरारें और मलबा पसरा है। लोगों को अपने पुश्तैनी घर छोड़ने पड़े हैं। जिन खेतों में कभी फसलें लहलहाती थीं, वहीं अब तिरपालें तन चुकी हैं। और जिन पशुशालाओं में मवेशी रहते थे, उनमें आज इंसान शरण लेने को मजबूर हैं।
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मातला से लेकर जाखला गांव तक धरती में डेढ़ किलोमीटर लंबी दरारें आ चुकी हैं, और ये हर दिन और चौड़ी होती जा रही हैं। गांव के नीचे की ज़मीन लगातार धंस रही है, जिससे एक बड़ा हिस्सा किसी भी पल पूरी तरह से ढह सकता है। लोग अब रात को आंखें बंद करने से डरते हैं। कोई नहीं जानता कि अगली सुबह उनका बचा.खुचा घर भी रहेगा या नहीं।
मातला गांव की पहचान ही नहीं, बल्कि उसकी आत्मा भी अब खत्म होती जा रही है। गांव का सदियों पुराना आदि ब्रह्मा मंदिर भी इस प्राकृतिक आपदा से धीरे धीरे जमीन में समा सकता है। यह सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, गांववासियों की आस्था, परंपरा और संस्कृति का केंद्र है। लेकिन आज यह मंदिर भी दरकती ज़मीन के कारण गंभीर खतरे में है। मंदिर के चारों ओर की ज़मीन तेजी से नीचे खिसक रही है। ग्रामीणों की आंखों में आंसू हैं, लेकिन दिल में सवाल भी क्या हमारी आस्था अब भी सुरक्षित रहेगी।
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गांव के लोग बेहद कठिन हालात में जी रहे हैं। खुले आसमान के नीचे, ठंड और लगातार हो रही बारिश के बीच रहना, वह भी बच्चों और बुजुर्गों के साथ ये सिर्फ संघर्ष नहीं, बल्कि अस्तित्व की लड़ाई है। एक महिला बताती है कि हमने अपने हाथों से घर बनाया था। अब हमारे पास सिर्फ तिरपाल है और भगवान की दया।
ग्रामीणों ने जिला प्रशासन और राज्य सरकार से केवल राहत नहीं, स्थायी समाधान की मांग की है। उनका कहना है कि अब मुआवजे से बात नहीं बनेगी। ज़मीन की अस्थिरता को देखते हुए उन्हें किसी सुरक्षित स्थान पर बसाया जाना चाहिए। वे चाहते हैं कि सिर्फ इंसानों की नहीं, उनकी आस्था की भी सुरक्षा की जाए। आदि ब्रह्मा मंदिर को संरक्षण दिया जाए, ताकि ये विरासत अगली पीढ़ियों तक जीवित रह सके।
हालात जितने भयावह हैं, गांव वालों की उम्मीद उतनी ही मजबूत है। वे चाहते हैं कि सरकार, प्रशासन और समाज मिलकर इस गांव को एक बार फिर खड़ा करें। एक बुजुर्ग कहते हैं, हमने बहुत कुछ खो दिया है, पर उम्मीद नहीं छोड़ी। अगर साथ मिले तो मातला फिर से बस सकता है। मातला गांव की यह त्रासदी सिर्फ एक गांव की नहीं, हिमाचल की उन सैकड़ों बस्तियों की चेतावनी है जो पहाड़ों की गोद में बसी हैं। अगर आज ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो कल यह तबाही और गांवों को लील सकती है।