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August 3, 2025

आपदा ने छीना रास्ता- सरकार ने फेरी नजरें, मलाणा के लोगों ने खुद पुल बनाने का लिया फैसला

पूरा गांव बाहरी दुनिया से कट गया

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Malana Bridge

शिमला। हिमाचल प्रदेश के दुर्गम और ऐतिहासिक गांव मलाणा में इन दिनों फिर एक बार वो जज्बा देखने को मिल रहा है, जो आपदा में भी हिम्मत नहीं हारता। बारिश के चलते गांव को जोड़ने वाला एकमात्र लकड़ी का पुल बह गया, जिससे पूरा गांव बाहरी दुनिया से कट गया।

आपदा में नहीं हारी हिम्मत

ऐसे में मलाणा के लोगों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि जब मदद के नाम पर प्रशासन का हाथ न हो, तब आत्मनिर्भरता और एकजुटता ही असली रास्ता है। शनिवार सुबह जैसे ही मौसम ने राहत दी, मलाणा के ग्रामीणों ने बिना समय गंवाए नाले के दोनों ओर डंगे डालने और नया पुल बनाने का काम शुरू कर दिया

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कठिन राहें, फिर भी नहीं झुकी हिम्मत

मलाणा गांव में लगभग 4700 की आबादी रहती है और यह क्षेत्र पांच वार्डों में बंटा है। गांव का प्रमुख रास्ता जरी होते हुए आता है, जो अब पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका है। अब गांव में प्रवेश का एकमात्र विकल्प चंद्रखनी दर्रे से होकर लगभग 6-7 घंटे का पैदल सफर तय कर पहुंचना है, जिससे राशन और जरूरी सामान लाना एक बड़ा संघर्ष बन गया है।

गांव नहीं लौट पाए रहे लोग

ग्रामीण मोती राम ने बताया कि गांव के कई लोग उपरी जोत में भेड़-बकरियां चराने गए हुए हैं और अब रास्ते टूटने के बाद उनका वापस आना भी टेढ़ी खीर हो गया है। कई लोग जरी और भुंतर की ओर राशन की खरीदारी करने गए थे, वे भी गांव लौट नहीं पा रहे।

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पिछले साल भी आई थी आपदा

गौरतलब है कि 1 अगस्त 2024 को भी मलाणा गांव का पुल बारिश में बह गया था। उस समय भी ग्रामीणों ने जंगल से पेड़ काटकर लकड़ी का अस्थायी पुल बनाया था और खुद ही उसके दोनों ओर सुरक्षा के लिए रेलिंग भी लगाई थी। लेकिन प्रशासन ने पूरे एक साल में स्थायी पुल निर्माण के लिए कोई कदम नहीं उठाया।

मेले की तैयारियों पर भी पड़ा असर

इस बार फिर वही कहानी दोहराई गई- पुल बहा, रास्ता टूटा, और सरकार-प्रशासन नदारद। नतीजा, ग्रामीणों को एक बार फिर खुद ही मैदान में उतरना पड़ा। दरअसल, मलाणा गांव में हर साल 14-15 अगस्त को देवता जमदग्नि का बड़ा मेला आयोजित होता है, जो न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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कैसे होगा सब?

इस बार भी पुल के टूटने और राशन आपूर्ति बाधित होने के कारण मेला आयोजन पर संकट मंडराने लगा है। ग्रामीणों को इस बार भी त्योहार के लिए आवश्यक सामग्री चंद्रखनी दर्रे से होकर लानी पड़ सकती है, जो समय, श्रम और संसाधनों की भारी मांग करता है।

स्वास्थ्य सुविधाओं पर भी खतरा

ग्रामीण परस राम ने चिंता जताई कि गांव में कई बुजुर्ग, बीमार और गर्भवती महिलाएं हैं। अब पुल नहीं होने की स्थिति में एम्बुलेंस पहुंचना तो दूर, स्वास्थ्य कर्मी तक गांव नहीं आ सकते। नाले में बहाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है। ऐसे में उसे पार करना जोखिम भरा हो गया है।

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हेलीकॉप्टर वादा भी बना मजाक

पिछले साल प्रशासन ने गांव में राशन पहुंचाने के लिए हेलीकॉप्टर सेवा की बात की थी। ग्रामीणों ने इसके लिए जंगल में पेड़ काटकर हेलीपैड तक तैयार कर दिया, लेकिन घने जंगल और स्थान की अनुकूलता न होने से हेलीकॉप्टर गांव में नहीं उतर पाया। बाद में राशन दूर एक जगह गिराया गया, जिसे लाने में लोगों को घंटों जंगल में भटकना पड़ा। कई परिवारों तक राशन पहुंच ही नहीं पाया।

3Km पैदल चलकर आए ग्रामीण

शनिवार को जब ग्रामीणों ने पुल बनाना शुरू किया, तो मलाणा गांव के लुदर नामक व्यक्ति ने उस मुश्किल रास्ते का वीडियो साझा किया, जिसमें दिखाया गया कि कैसे लोग डैम से होकर नीचे उतरकर लगभग 3 किमी अतिरिक्त पैदल सफर तय करके पुल निर्माण स्थल तक पहुंचे। कई लोगों ने पत्थर ढोए, लकड़ियां उठाईं, गीत गुनगुनाए और मिलकर मजदूरी, निर्माण और हौंसले का अद्भुत दृश्य पेश किया।

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प्रशासन और मलाणा प्रोजेक्ट कंपनी पर सवाल

मोती राम और अन्य ग्रामीणों ने प्रशासन और मलाणा हाइड्रो प्रोजेक्ट कंपनी पर आरोप लगाए कि आपदा के समय न तो प्रशासन ने कोई मदद पहुंचाई और न ही कंपनी ने अपने दायित्वों का निर्वहन किया। जबकि इन दोनों संस्थाओं की जिम्मेदारी थी कि गांव के संपर्क मार्ग और बुनियादी सुविधाओं की बहाली तत्काल की जाती।

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