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September 5, 2025
विक्रमादित्य के विभाग PWD पर हाईकोर्ट सख्त, ठेकेदार के लंबित भुगतान को तीन सप्ताह की दी मोहलत
ठेकेदार के बकाया भुगतान पर हाईकोर्ट ने PWD को दी मोहलत
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शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार के मंत्री विक्रमादित्य सिंह के लोक निर्माण विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए है। हाईकोर्ट ने लोक निर्माण विभाग द्वारा ठेकेदार को लंबित भुगतान ना किए जाने को अत्यंत गंभीर बताया है। कोर्ट ने विभाग को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि तीन सप्ताह के भीतर ठेकेदार को 31ण्10 लाख रुपये की राशि का भुगतान किया जाए, अन्यथा अगली सुनवाई में विभाग के मुख्य अभियंता को व्यक्तिगत रूप से अदालत में हाजिर रहना होगा।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायमूर्ति रंजन शर्मा की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता अरुण आजाद की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। कोर्ट ने इस मामले में लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह के अधीनस्थ विभाग के रवैये को अत्यंत चिंताजनक बताते हुए कहा कि यह प्रशासनिक लापरवाही की पराकाष्ठा है।
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याचिकाकर्ता अरुण आजाद ने अदालत को बताया कि उसने विभाग को अनुबंध के अनुसार निर्माण कार्य पूरा कर सौंप दिया, लेकिन भुगतान नहीं किया गया। इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह रही कि बाद में वही कार्य किसी अन्य ठेकेदार को सौंप दिया गया। इस पर हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि बिना पूर्व ठेकेदार को भुगतान किए कार्य को दोबारा किसी अन्य को सौंप देना न केवल अनुचित है, बल्कि यह विभागीय मनमानी का प्रमाण भी है।
लोक निर्माण विभाग की ओर से दाखिल हलफनामे में बताया गया कि 7 जुलाई को ठेकेदार के बकाया बिल की जांच के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया गया है, जिसकी रिपोर्ट प्रधान सचिव ;वित्तद्ध को सौंपी जाएगी। कोर्ट ने इस पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह कार्रवाई ष्घोड़ा भाग जाने के बाद अस्तबल का दरवाज़ा बंद करनेष् जैसी है। अदालत ने साफ किया कि इस तरह की समिति केवल जांच की प्रक्रिया को लंबित करने और दोषियों को बचाने का माध्यम बन रही है।
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कोर्ट ने आदेश दिया कि अगली सुनवाई की तिथि पर विभाग द्वारा ठेकेदार को 31.10 लाख रुपये की राशि डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से दी जाए। यदि भुगतान नहीं किया गया तो मंडी ज़ोन के मुख्य अभियंता को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होना होगा।
हाईकोर्ट ने विक्रमादित्य सिंह के नेतृत्व वाले लोक निर्माण विभाग पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि इस तरह की लापरवाही से न केवल ठेकेदारों का भरोसा टूटता है, बल्कि शासन की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े होते हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह केवल एक वित्तीय लेनदेन का मामला नहीं, बल्कि न्याय और जवाबदेही की मूल भावना से जुड़ा हुआ विषय है।
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अदालत ने यह संकेत भी दिए कि यदि विभाग ने इस आदेश का अनुपालन नहीं किया तो अगली सुनवाई में और अधिक कठोर रुख अपनाया जाएगा। कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच पूरी करने और दोषियों को सजा दिलाने के भी निर्देश दिए।