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July 20, 2025

हिमाचल : सेब उगाना बना घाटे का सौदा, पैकिंग और तुड़ान में ही निचुड़ गया मुनाफा- पेटी का खर्च बढ़ा

पेकिंग-परिवहन पर खर्च हो रहे लाखों, लागत भी नहीं निकल रही

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Apple Farmers Himachal

शिमला। हिमाचल प्रदेश के सेब बागवानों के सामने इस सीजन में गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। राज्य में तैयार हो रही समर क्वीन, रेड गोल्डन और टाइडमैन जैसी सेब की किस्में इतनी कम कीमत पर बिक रही हैं कि बागवानों को अपनी लागत तक निकालनी मुश्किल हो रही है। बढ़ती उत्पादन लागत, महंगी पैकिंग और श्रमिकों की ऊंची दिहाड़ी ने स्थिति को और अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया है।

लागत बढ़ी, मुनाफा नहीं

बागवानों के अनुसार, सेब उत्पादन अब पहले जैसा लाभकारी नहीं रहा। एक पेटी सेब को तुड़ाई से लेकर मंडी तक पहुंचाने की कुल लागत 500 से 700 रुपये तक बैठ रही है। इसमें फलों की तुड़ाई, खेत से पैकिंग मशीन तक ढुलाई, ग्रेडिंग, पैकिंग, कार्टन और ट्रे की कीमतें और उसके बाद मंडियों तक ट्रांसपोर्टेशन का खर्च भी शामिल है।

 

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ऐसे में जब बाजार में इन किस्मों की कीमत ही 500-600 रुपये प्रति पेटी मिल रही है, तो बागवानों के लिए न लाभ बचता है, न ही लागत का पूरा वसूल हो पाता है।

पैकिंग के रेट भी उफान पर

इस साल पैकिंग का खर्च भी बागवानों के लिए सिरदर्द बन गया है। ठियोग क्षेत्र के पैकिंग मशीन मालिक सोनू शर्मा ने बताया कि वह पिछले कुछ वर्षों से 220 रुपये प्रति पेटी के हिसाब से चार्ज ले रहे हैं। हालांकि कई क्षेत्रों में यह रेट बढ़ाकर 230 रुपये तक कर दिया गया है।

 

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कोटखाई के बागवान तारा दत्त बताते हैं कि पिछले वर्ष उन्होंने प्रति पेटी 200 रुपये दिए थे, लेकिन इस बार उनसे 220 रुपये मांगे जा रहे हैं। हालांकि, इस रकम में कार्टन, ट्रे, ग्रेडिंग और मशीन का खर्च शामिल होता है, जबकि बागवान को अपनी क्रेट में ही सेब वहां तक पहुंचाना होता है।

दवाइयों, स्प्रे और मजदूरी रेट भी बढ़े

सेब उत्पादन केवल पैकिंग और ढुलाई तक सीमित नहीं है। हर 15 से 20 दिनों में बगीचों में फफूंदनाशकों और पोषक तत्वों का छिड़काव करना पड़ता है। 200 लीटर दवा के एक छिड़काव पर 1200 से 2000 रुपये का खर्च आ जाता है। और यह दवा 40 से 50 पेड़ों में ही खत्म हो जाती है। पूरी सीजन में कई बार यह छिड़काव करना होता है।

 

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पिछले साल भराई मजदूरों को जहां 800 रुपये प्रतिदिन मिल रहे थे, वहीं इस बार यह दिहाड़ी बढ़ाकर 850 रुपये कर दी गई है। संतराम नामक एक भराई मजदूर ने बताया कि यह बढ़ोतरी जरूरी थी, क्योंकि खर्चे बढ़े हैं, लेकिन बागवानों पर यह बोझ और अधिक हो गया है।

ओलों से दागी हुई फसल

एक ओर जहां लागत बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी ओर प्राकृतिक आपदाओं ने सेब उत्पादकों को और नुकसान पहुंचाया है। इस बार कई क्षेत्रों में ओलों के कारण सेब दागदार हो गया है, जिसकी वजह से बाजार में इनकी कीमत और भी कम लग रही है। ऐसे फल मंडियों में औने-पौने दामों में बिक रहे हैं।

 

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साथ ही इस बार कार्टन की कीमत 60 से 65 रुपये तक पहुंच चुकी है, जबकि ट्रे का एक बंडल 600 से 700 रुपये तक मिल रहा है। हाफ बॉक्स की कीमत 40 से 45 रुपये के बीच है। जब पूरी एक पेटी की सामग्री और उसकी पैकिंग पर ही इतना खर्च हो रहा हो, तो साफ है कि बागवानों के लिए यह सीजन घाटे का सौदा बनता जा रहा है।

यह कहना है बागवानों का

कई अनुभवी बागवानों का कहना है कि अब सरकार को सेब उत्पादन की लागत और बिक्री मूल्य के बीच बढ़ते अंतर को गंभीरता से लेना होगा। यदि समय रहते नीति नहीं बदली गई और बागवानों को राहत नहीं मिली, तो आने वाले वर्षों में सेब उत्पादन में गिरावट आ सकती है। साथ ही, पहाड़ी क्षेत्रों में आर्थिक असंतुलन भी बढ़ेगा।
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