#विविध
July 26, 2025
हिमाचल के जाबांज सिपाही ने करगिल में दी थी शहादत- अब बेटा भी फौज में, पत्नी गर्व से जी रही जीवन
शहादत के समय महज आठ साल का था शहीद का बड़ा बेटा
शेयर करें:
बिलासपुर। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले की मोरसिंघी पंचायत के गांव मसधान का नाम देश के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। यह वह भूमि है- जिसने कारगिल युद्ध के एक वीर योद्धा हवलदार राजकुमार वशिष्ठ को जन्म दिया, जिन्होंने 11 जुलाई 1999 को बटालिक सेक्टर में दुश्मनों से लोहा लेते हुए देश के लिए अपने प्राण न्योछावर किए।
आज उनकी शहादत को 26 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन उनके परिवार की देशभक्ति, गर्व और संकल्प आज भी हर देशवासी को प्रेरणा देता है। शहीद की पत्नी रक्षा देवी उस समय केवल एक गृहिणी नहीं थीं, बल्कि तीन छोटे-छोटे बेटों की मां थीं।
सबसे बड़ा बेटा राहुल उस वक्त महज आठ साल का था, रजत छह साल का और सबसे छोटा बेटा रॉबिन केवल चार साल का। पति की शहादत ने उनके जीवन को झकझोर तो जरूर दिया, पर उन्हें तोड़ नहीं सकी। उन्होंने उसी समय संकल्प लिया कि उनके बेटे भी एक दिन वर्दी पहनेंगे।
उनके मंझले बेटे रजत वशिष्ठ ने मां की आंखों के आंसुओं को ताकत बनाया और बचपन में ही सेना में जाने का निश्चय कर लिया। आज रजत जम्मू-कश्मीर की अग्रिम चौकी पर भारतीय सेना में तैनात हैं। यह केवल उनके परिवार के लिए ही नहीं, पूरे गांव और हिमाचल के लिए गर्व की बात है।
वहीं, अन्य दो बेटे राहुल और रॉबिन विभिन्न कारणों से सेना में नहीं जा सके। राहुल वर्तमान में पेट्रोल पंप चला रहे हैं जो सरकार ने शहादत के उपरांत परिवार को प्रदान किया था, जबकि रॉबिन निजी कंपनी में कार्यरत हैं।
राहुल वशिष्ठ का मानना है कि उनके शहीद पिता की याद को हमेशा जिंदा रखने के लिए गांव के स्कूल और टिक्कर-कसोलियां सड़क का नाम हवलदार राजकुमार वशिष्ठ के नाम पर रखा जाए, ताकि भावी पीढ़ी को देशभक्ति और बलिदान की प्रेरणा मिलती रहे। उन्होंने बताया कि पिता की शहादत के बाद परिवार संयुक्त था और चाचा-ताया ने कभी उन्हें कोई कमी महसूस नहीं होने दी। उनके एक चाचा हाल ही में सेना से सेवानिवृत्त हुए हैं।
देश की खातिर शहीद हुए हवलदार राजकुमार वशिष्ठ को मरणोपरांत ब्रेबेस्ट ऑफ द ब्रेव सम्मान से दिल्ली में सम्मानित किया गया। उनकी पत्नी रक्षा देवी ने तीनों बेटों के साथ मिलकर ये पुरस्कार लिया।
रक्षा देवी बताती हैं कि यह पल भले ही भावुक था, लेकिन उतना ही गौरवपूर्ण भी। यह सम्मान न केवल उनके पति की वीरता को बल्कि पूरे परिवार की देशभक्ति को भी सलाम करता है।शहीद राजकुमार वशिष्ठ की गाथा केवल बलिदान की नहीं, बल्कि संकल्प और संस्कारों की भी है। यह परिवार बताता है कि जब देशभक्ति रगों में बहती है, तो पीढ़ियां भी वीरता की मशाल बन जाती हैं।
आज भी रक्षा देवी पूरे गर्व से कहती हैं-"अब अपने नाती-पोतों को भी सेना में भेजूंगी, देशसेवा का यह रिश्ता टूटने नहीं दूंगी।" कारगिल विजय दिवस पर यह परिवार हर भारतीय को यह याद दिलाता है कि सच्ची श्रद्धांजलि केवल फूल चढ़ाने से नहीं, बल्कि उस बलिदान की भावना को जीने से दी जाती है।