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February 14, 2025
हिमाचल की इस ऐतिहासिक इमारत में सरकारी गाड़ियों की नो एंट्री, आखिर क्यों ?
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज संस्थान के अंदर नहीं जाने दी जा रही गाड़ियां
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शिमला। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में अंग्रेजों के समय बने एक ऐतिहासिक भवन में प्रदेश सरकार की गाड़ियों की एंट्री पर ही रोक लगा दी गई है। यहां तक कि हिमाचल पुलिस की गाड़ियों को भी इस भवन के गेट से आगे नहीं जाने दिया जा रहा है। यह ऐतिहासिक भवन कोई और नहीं बल्कि शिमला में स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज का संस्थान है।
अब सवाल यह उठ रहा है कि इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज प्रशासन ने ऐसा क्यों किया, जिसका जवाब कोई भी देने को तैयार नहीं है। इस मामले में संस्थान प्रशासन से बात करने का जब प्रयास किया गया, तो अधिकारी ने बात करने से इंकार कर दिया। वहीं इस मामले में एसपी शिमला संजीव गांधी ने भी चुपी साध ली है।
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बता दें कि बुधवार को बालूगंज चौक के साथ इस संस्थान के गेट पर एक सरकारी गाड़ी आई थी। जिसे गेट पर तैनात सुरक्षाकर्मी ने गेट ही नहीं खोला। सुरक्षा कर्मी का कहना था कि उन्हें आदेश मिले हैं कि संस्थान के अंदर संस्थान के अधिकारियों और कर्मचारियों के अलावा अन्य किसी भी वाहन को प्रवेश ना दिया जाए।
उसी दिन बुधवार शाम को जब बालूगंज पुलिस थाना की गाड़ी वहां पर पहुंची तो सुरक्षा कर्मी ने उसे भी अंदर नहीं जाने दिया। इस दौरान पुलिस कर्मियों और गेट पर तैनात सुरक्षा कर्मियों के बीच काफी देर तक बहसबाजी भी हुई। अंत में पुलिस कर्मियों को वापस लौटना पड़ा।
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सरकारी गाड़ियों को संस्थान के अंदर आने से रोकने पर जब संस्थान के सचिव मेहर चंद नेगी से बात करने का प्रयास किया गया, तो उन्होंने ना बात की और मिलने से भी इंकार कर दिया। वहीं दूसरी तरफ पुलिस की गाड़ी को गेट से वापस भेजने को लेकर एसपी शिमला संजीव गांधी से बात की तो उन्होंने भी चुपी साध ली।
ऐसे में अब सवाल यह उठ रहा है कि जब यह संस्थान सैलानियों के लिए दिन और समय के अनुसार खुला रहता है, तो सरकारी वाहनों को इसके अंदर जाने से क्यों रोका जा रहा है। संस्थान की ओर से क्यों इस तरह के निर्देश जारी किए गए हैं। जिसका जवाब ना तो संस्थान के अधिकारी दे रहे हैं, और ना ही पुलिस के आला अफसर।
बता दें कि शिमला में स्थित भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान की ये ऐतिहासिक इमारत अंग्रेजों के जमाने की है। इसकी इमारत इंडो.गॉथिक शैली में डिज़ाइन की गई है। आजादी से पहले यह वॉयसरॉय का निवास स्थान होता था। इस भवन में 1884-1888 तक भारत के वाइसराय लॉर्ड डफरीन रहे थे और इसे वाइसरीगल लॉज कहा जाता था।
आजादी के बाद इसे राष्ट्रपति का निवास स्थान बनाया गया। साल 1964 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णनन ने इसे शोध के लिए समर्पित कर दिया था। 1964 में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने यहां शोध संस्थान स्थापित किया और इस संस्थान ने 20 अक्टूबर 1965 से काम करना शुरू कर दिया था।
बताया जाता है कि इस भवन में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई ऐतिहासिक निर्णय लिए गए थे। 1945 में शिमला सम्मेलन यहीं आयोजित किया गया था। भारत से पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान को बनाने का निर्णय भी वर्ष 1947 में इसी इमारत में हुआ था।