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December 25, 2025

पंचायत चुनाव पर फिर घमासान: आयोग को मंजूर नहीं CM सुक्खू का सचिव; हाईकोर्ट से की अपील

चुनाव आयोग ने सुरजीत को नहीं किया रिलीव, गज्जू को नहीं दी ज्वाइनिंग

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शिमला। हिमाचल प्रदेश में पंचायतीराज चुनावों की प्रक्रिया शुरू होते ही सुक्खू सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग के बीच टकराव की जो लकीर खिंची थी, वह अब और गहरी होती नजर आ रही है। इतिहास में शायद यह पहला मौका है, जब पंचायत चुनावों को लेकर सरकार और संवैधानिक चुनाव आयोग बार.बार आमने.सामने आ रहे हों। कभी चुनाव समय पर करवाने को लेकर मतभेद उभरे, तो कभी पंचायतों के पुनर्गठन और पुनर्सीमांकन को लेकर तल्खी बढ़ी। दोनों के बीच का टकराव अब न्यायिक मोर्चे तक पहुंच गया है। अब राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव के तबादले ने इस टकराव को एक नए मोड़ पर ला खड़ा किया है।

सचिव के तबादले से बढ़ा विवाद

दरअसल हिमाचल प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार ने 18 दिसंबर को राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव सुरजीत राठौर का तबादला करते हुए मुख्यमंत्री के अतिरिक्त सचिव हरीश गज्जू को आयोग का नया सचिव नियुक्त करने के आदेश जारी किए। सरकार का मानना है कि यह एक सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया है, लेकिन राज्य निर्वाचन आयोग को सुक्खू सरकार का यह फैसला रास नहीं आया और उन्होने इस फैसले पर कड़ा रुख अपनाया है। 

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हाई कोर्ट पहुंचा सचिव विवाद

राज्य निर्वाचन आयोग ने आयोग के सचिव सुरजीत सिंह को हटाने और उनकी जगह मुख्यमंत्री के अतिरिक्त सचिव डॉ. हरीश गज्जू को अतिरिक्त कार्यभार सौंपने के सरकार के फैसले को हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में चुनौती दी है। आयोग का कहना है कि यह फैसला उस समय लिया गया है, जब पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव सिर पर हैं और इससे चुनावी प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।

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उल्लेखनीय है कि पंचायत चुनाव में हो रही देरी को लेकर पहले से ही एक याचिका हाई कोर्ट में लंबित है, जिसकी सुनवाई 30 दिसंबर को होनी है। अब सचिव के तबादले का मामला भी अदालत के समक्ष पहुंच गया है।

आयोग ने उठाया स्वतंत्रता का सवाल

राज्य निर्वाचन आयोग ने इस पूरे घटनाक्रम के बीच मुख्य सचिव को पत्र लिखकर स्पष्ट किया है कि आयोग को एक स्वतंत्र सचिव की आवश्यकता है। आयोग का तर्क है कि डॉ हरीश गज्जू मुख्यमंत्री कार्यालय से जुड़े हुए हैं और उन्हें सेवाविस्तार भी दिया गया है, ऐसे में आयोग की संवैधानिक स्वतंत्रता पर सवाल खड़े हो सकते हैं। आयोग ने यह भी कहा है कि यदि आवश्यक हो तो किसी अन्य स्वतंत्र अधिकारी की तैनाती की जा सकती है। 

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बता दें कि राज्य चुनाव आयोग ने न तो मौजूदा सचिव सुरजीत राठौर को उनके पद से रिलीव किया और न ही नए नियुक्त सचिव हरीश गज्जू की ज्वाइनिंग स्वीकार की। इससे सरकार और आयोग के बीच तनातनी खुलकर सामने आ गई है।

क्या बोले मुख्य सचिव

वहीं इस मामले में मुख्य सचिव संजय गुप्ता का कहना है कि सचिव के तबादले के बाद रिलीव न होने का मामला मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाया गया है। सरकार का पक्ष है कि पंचायतीराज संस्थाओं का कार्यकाल जनवरी के अंत में समाप्त हो रहा है। सुरजीत सिंह को पंचायत चुनाव कराने का पर्याप्त अनुभव है, जबकि नए सचिव को आयोग की कार्यप्रणाली समझने में समय लग सकता है। वहीं, आयोग का मत है कि जब चुनाव प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, तब प्रशासनिक बदलाव से बचना चाहिए।

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चुनाव तक यथास्थिति की मांग

राज्य निर्वाचन आयोग ने अदालत में यह भी मांग की है कि चुनावी प्रक्रिया पूरी होने तक सचिव पद पर कोई बदलाव न किया जाए। आयोग ने सेवाविस्तार और अतिरिक्त कार्यभार वाले अधिकारी की बजाय सुरजीत सिंह को ही सचिव बनाए रखने की पैरवी की है। सूत्रों के अनुसार इसी कारण अब तक सुरजीत सिंह को औपचारिक रूप से रिलीव नहीं किया गया है।

अप्रैल तक खिसक सकते हैं चुनाव

सूत्रों के अनुसार हिमाचल प्रदेश में पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव अप्रैल तक टल सकते हैं। पंचायतों के पुनर्सीमांकन, पुनर्गठन और नई मतदाता सूचियां तैयार करने में कम से कम दो महीने का समय लग सकता है। चूंकि मौजूदा पंचायतों का कार्यकाल जनवरी में समाप्त हो रहा है, ऐसे में अंतरिम अवधि के लिए सरकार को पंचायतों में प्रशासक नियुक्त करने पड़ सकते हैं।

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बता दें कि इससे पहले राज्य चुनाव आयोग द्वारा आदर्श चुनाव आचार संहिता का एक क्लॉज लागू कर पंचायतों के पुनर्गठन पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद सुक्खू सरकार अभी कुछ दिन पहले ही नई पंचायतों के पुनर्गठन की अधिसूचना जारी कर दी है। जिसके बाद भी सरकार और चुनाव आयोग के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है।

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