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December 15, 2025
हिमाचल के सरकारी स्कूलों में बच्चों की सेहत से खिलवाड़ : सब्जी के नाम पर परोसे जा रहे सिर्फ आलू
मिड डे मील में सिर्फ आलू परसोने वालों पर होगी सख्त कार्रवाई
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शिमला। हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में मिड-डे मील योजना को लेकर राज्य खाद्य आयोग ने कड़ा रुख अपनाया है। अब बच्चों को सब्जी के नाम पर केवल आलू परोसने पर संबंधित स्कूलों और अध्यापकों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
आयोग ने साफ किया है कि मिड-डे मील योजना का मकसद सिर्फ बच्चों का पेट भरना नहीं, बल्कि उन्हें संतुलित और पोषक आहार उपलब्ध कराकर कुपोषण से लड़ना है। राज्य खाद्य आयोग के संज्ञान में यह बात आई है कि प्रदेश के कई सरकारी स्कूलों में बच्चों को नियमित रूप से सब्जी के नाम पर केवल आलू की सब्जी दी जा रही है।
आयोग का मानना है कि इससे बच्चों को आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिल पा रहे हैं। आलू में स्टार्च की मात्रा अधिक होती है, जबकि प्रोटीन, विटामिन और खनिज तत्व सीमित मात्रा में पाए जाते हैं।
प्रदेश के सरकारी स्कूलों में नर्सरी से लेकर आठवीं कक्षा तक करीब साढ़े चार लाख बच्चों को प्रतिदिन मिड-डे मील उपलब्ध कराया जाता है। निर्धारित मानकों के अनुसार बच्चों के भोजन में हरी सब्जियां, दाल, दूध या अन्य प्रोटीन स्रोतों को शामिल करना अनिवार्य है, ताकि बच्चों को संतुलित पोषण मिल सके। आयोग ने स्पष्ट किया है कि इन मानकों से समझौता किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जाएगा।
पोषण विशेषज्ञों का कहना है कि चावल और आलू जैसे खाद्य पदार्थ बच्चों को त्वरित ऊर्जा तो देते हैं, लेकिन शारीरिक और मानसिक विकास के लिए जरूरी प्रोटीन, आयरन, विटामिन-ए और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति नहीं कर पाते। लंबे समय तक एकतरफा भोजन मिलने से बच्चों में कमजोरी, सीखने की क्षमता में कमी और रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने का खतरा बढ़ जाता है।
राज्य खाद्य आयोग को प्रदेश में कुपोषण से जुड़े आंकड़ों ने भी गंभीर चिंता में डाल दिया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार हिमाचल प्रदेश में पांच वर्ष से कम आयु के 28.4 प्रतिशत बच्चे बौनेपन का शिकार हैं। वहीं 11 प्रतिशत बच्चे लंबाई के अनुपात में कमजोर हैं और 25.5 प्रतिशत बच्चे कम वजन की श्रेणी में आते हैं। यानी प्रदेश में हर चौथा बच्चा उम्र के हिसाब से कम वजन का है।
राज्य खाद्य आयोग ने बच्चों के पोषण को लेकर एक और अहम कदम उठाने का निर्णय लिया है। आयोग ने ऐलान किया है कि अगले माह दिल्ली में होने वाली बैठक में केंद्र सरकार से यह मांग उठाई जाएगी कि स्कूलों की छुट्टियों के दौरान भी बच्चों को मिड-डे मील का राशन उपलब्ध कराया जाए। आयोग का मानना है कि छुट्टियों में कई गरीब और जरूरतमंद परिवारों के बच्चों को घर पर पर्याप्त और संतुलित भोजन नहीं मिल पाता, जिससे कुपोषण का खतरा और बढ़ जाता है।
राज्य खाद्य आयोग के अध्यक्ष डॉ. एस.पी. कत्याल ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि मिड-डे मील में बच्चों को तय मानकों के अनुसार हरी सब्जियां और पोषक आहार देना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि बच्चों को संपूर्ण पोषण देना केवल सरकार ही नहीं, बल्कि समाज की भी सामूहिक जिम्मेदारी है। यदि किसी स्कूल में आलू को ही सब्जी मानकर परोसा गया, तो संबंधित के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
मिड-डे मील योजना से जुड़े इस फैसले को बच्चों के स्वास्थ्य और भविष्य की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। अब देखना होगा कि स्कूल स्तर पर इन निर्देशों को कितनी गंभीरता से लागू किया जाता है और बच्चों की थाली वास्तव में कितनी पोषक बन पाती है।