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April 24, 2025

पाकिस्तान ने तोड़ा 53 साल पुराना शिमला समझौता- क्या होगा भारत का अगला कदम; जानिए

पहलगाम घटना के बाद पीएम मोदी ने निलंबित की सिंधु जल संधि

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Pakistan Shimla agreement

शिमला। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने जिस तरह से गैर-मुस्लिम पर्यटकों को निशाना बनाया, उसने पूरे देश को झकझोर दिया है।इस नृशंस हमले के बाद भारत सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए एक बड़ा फैसला लिया है।  जिसके बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ 1960 में हुई सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। बता दे कि इसके बाद पाकिस्तान ने शिमला समझौता रद्द कर दिया है।

शिमला समझौता रद्द

बता दें कि भारत के इस कड़े कदम के बाद सुबह से ही पाकिस्तान की मीडिया और सत्ता प्रतिष्ठान में घबराहट साफ दिखी। जिसके बाद पाकिस्तान ने 1972 के शिमला समझौते को तोड़ दिया । लेकिन क्या वाकई पाकिस्तान कभी उस समझौते का पालन करता आया है?

क्या है शिमला समझौता और पाकिस्तान ने इसे कब माना?  

भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता 2 जुलाई 1972 को हुआ था। इसे भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने साइन किया था। यह समझौता 1971 के युद्ध के बाद हुआ था जिसमें पाकिस्तान को करारी हार का सामना करना पड़ा और बांग्लादेश नामक नया देश अस्तित्व में आया। भारत ने उस युद्ध में 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बनाया था जिन्हें इसी समझौते के तहत वापस किया गया था।

 

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शिमला समझौते का मूल उद्देश्य था कि दोनों देश आपसी विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से और द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से हल करेंगे। कोई भी देश तीसरे पक्ष की मध्यस्थता नहीं मानेगा और नियंत्रण रेखा का उल्लंघन नहीं करेगा। लेकिन पाकिस्तान ने कभी भी इन शर्तों को गंभीरता से नहीं लिया।

अब तोड़ी वही संधि, जिसे कभी निभाया ही नहीं गया  

पाकिस्तान की तरफ से जब-जब भारत ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया, उसने जवाब में गोली और बारूद दिया। 1999 का कारगिल युद्ध, 2001 का संसद हमला, 2008 का मुंबई हमला, 2016 का उरी हमला, 2019 का पुलवामा हमला और अब 2025 का पहलगाम हमला — हर बार पाकिस्तान ने यही साबित किया कि वह शिमला समझौते के किसी भी बिंदु को मान्यता नहीं देता। अब अगर पाकिस्तान शिमला समझौता तोड़ दिया है, तो वह दरअसल उसी बात को दोहरा रहा है जो वह पहले से करता आया है। 

 

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CCS मीटिंग में ऐतिहासिक फैसला 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCS) की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को सस्पेंड किया जाए। यह वह संधि है जिसके तहत तीन पूर्वी नदियों का पानी भारत को और तीन पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान को मिलता रहा है। लेकिन अब भारत ने पहली बार यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि अगर पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया, तो उसे पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसना पड़ सकता है।

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शिमला समझौता टूटने से क्या होगा

अगर पाकिस्तान ने आधिकारिक रूप से शिमला समझौते को तोड़ दिया है - इससे भारत को ही रणनीतिक आजादी मिलती है। तब भारत कश्मीर विवाद या अन्य मसलों पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ज्यादा खुलकर बात कर सकता है और तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकारने या खारिज करने का अधिकार भी उसके पास रहेगा। दूसरी ओर, पाकिस्तान की यह हरकत उसे और ज्यादा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग कर सकती है।

नई दिल्ली का स्पष्ट संदेश: अब ‘एक्शन’ होगा, ‘रेक्शन’ नहीं 

मोदी सरकार का यह निर्णय दर्शाता है कि भारत अब आतंकवाद और आतंक को शह देने वाले देशों के खिलाफ बेहद ठोस नीति अपनाने जा रहा है। पाकिस्तान को यह समझना होगा कि अब भारत केवल प्रतिक्रिया देने वाला देश नहीं रहा, बल्कि अब वह पहले कदम उठाने वाला राष्ट्र बन चुका है।

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भारत ने जब पानी को हथियार बनाने की बात की है, तो यह साफ संदेश है कि अब किसी भी मोर्चे पर नरमी नहीं बरती जाएगी। आने वाले समय में पाकिस्तान के साथ व्यापार, कूटनीतिक और सामाजिक संबंधों पर भी असर पड़ सकता है।

पानी से लेकर परिपाटी तक, अब भारत नहीं झुकेगा  

भारत और पाकिस्तान के बीच हुए समझौते तब तक ही चलते हैं जब दोनों पक्ष उन्हें निभाने के लिए प्रतिबद्ध हों। पाकिस्तान ने न तो सिंधु जल संधि का सम्मान किया, न ही शिमला समझौते का। अब जब भारत इन संधियों पर पुनर्विचार कर रहा है, तो यह न केवल उसका अधिकार है, बल्कि यह समय की मांग भी है। आने वाले समय में भारत अपनी नीति, अपने हितों और अपने नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए ही हर निर्णय लेगा — और यही राष्ट्र की सच्ची नीति होनी चाहिए।

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