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November 3, 2025

सैलरी मात्र ₹1500, ₹15 हजार में आते थे रेणुका के जूते- मां ने बेटी के सपनों के लिए उधार तक लिया

महज 3 साल की उम्र में खो दिए थे पिता

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Renuka Singh Thakur

शिमला। हिमाचल प्रदेश की रेणुका ठाकुर का नाम हर तरफ गूंज रहा है। हर टीवी स्क्रीन, हर न्यूज पोर्टल में रेणुका ही छाई हुईं हैं। हिमाचल में तो हर जगह सिर्फ उनकी ही बात हो रही है और हो भी क्यों ना, उन्होंने किया ही कुछ ऐसा है जिसकी जितनी तारीफ हो, उतनी कम है। रेणुका उस महिला टीम का अहम हिस्सा थीं जिसने पहली बार क्रिकेट विश्व कप अपने नाम किया। शिमला की रहने वालीं रेणुका सिंह ने तेज गेंदबाज के तौर पर अपना लोहा मनवाया। इस टीम का हिस्सा होना रेणुका और हिमाचल के लिए बहुत गौरवमयी बात है लेकिन क्या आप जानते हैं, एक समय था जब रेणुका की मां को उधार लेकर उनके लिए ₹15000 के जूते लेने पड़े थे जबकि उनकी सैलरी मात्र ₹1500 थी।

शिमला से शिखर का सफर

रेणुका ठाकुर के लिए शिमला से शिखर तक का सफर आसान नहीं था। उनके संघर्ष की कहानी काफी लंबी है। इसकी शुरूआत होती है तब से जब वे महज 3 साल की थीं। इस उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया था। उनकी मां सुनीता ने ही उन्हें और उनके भाई विनोद को पाला है।

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मां ने दिखाई बहुत हिम्मत

पति के गुजर जाने के बाद कोई भी औरत टूट सकती है लेकिन रेणुका की मां सुनीता ने पहाड़ जितनी हिम्मत दिखाई और ठान लिया था कि वे अपनी बेटी के सपने को पूरा करेंगी चाहे फिर कोई भी मुश्किल क्यों ना उनके सामने आए, वो हर मुश्किल से लड़ेंगी।

महीने में मिलते 1500 रुपये

साल 1999 में रेणुका के पिता केहर सिंह ठाकुर इस दुनिया से चले गए। तब रेणुका की मां सुनीता IPH विभाग में दैनिक भोगी (दिहाड़ी) के रूप में काम करती थीं जिसमें उन्हें ₹1500 महीने मिलते थे। इन्हीं पैसों से उन्हें दो बच्चों की परवरिश करनी थी जो काफी मुश्किल था।

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खुद कमी रख पाले 2 बच्चे

सुनीता ने रेणुका को कभी पैसों की तंगी के बारे में ज्यादा पता नहीं लगने दिया। सुनीता के मुताबिक रेणुका के जूते ही सिर्फ 15000 के आते थे लेकिन उन्होंने कभी कोई कमी नहीं रखी। वे खुद कमी में रहीं, सूखी रोटी खाकर गुजारा किया।

SDO से उधार लिए थे पैसे

सुनीता बताती हैं कि कई बार उन्होंने अपने विभाग के SDO से पैसे उधार लिए। वो कहती हैं कि ससुर और जेठ ने भी कई बार उनकी सहायता की। बता दें कि रेणुका का घर शिमला से 100 किलोमीटर दूर रोहड़ू के पारसा गांव में है। यहां के छोटे से मैदान से अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम पहुंचना बड़ी चुनौती थी।

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चाचा ने पहचानी थी प्रतिभा

महज 3-4 साल की उम्र में रेणुका कपड़े की बॉल और लकड़ी के बैट से अपने भाई विनोद और कजिन्स के साथ क्रिकेट खेलती थीं। रेणुका की मां सुनीता बतातीं हैं कि रेणुका के चाचा भूपिंदर ने सबसे पहले उनकी प्रतिभा को पहचाना। वे ही उन्हें धर्मशाला क्रिकेट अकेडमी लेकर गए।

पूरा किया पिता का सपना

भावुक होते हुए सुनीता कहती हैं कि रेणुका ने अपने पिता का सपना पूरा किया। वे आज जहां से भी उसे देख रहे हों, वे अपनी बेटी पर गर्व कर रहे होंगे। उसपर उसके पापा का आशीर्वाद हमेशा रहेगा। सुनीता ने हिमाचल सरकार से रेणुका को सरकारी नौकरी देने की मांग की है। 

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सरकार देगी 1 करोड़ रुपये

गौरतलब है मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने रेणुका से खुद बात की है व हिमाचल सरकार ने रेणुका को 1 करोड़ रुपये देने का ऐलान भी किया है। गौरतलब है कि भारतीय महिला टीम ने पहली बार क्रिकेट विश्व कप जीता है। मुंबई में फाइनल मुकाबले में टीम इंडिया ने दक्षिण अफ्रीका को हराकर कप अपने नाम किया। 

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