#धर्म
March 24, 2025
हिमाचल के इस इलाके में कभी नहीं बनता दाल-चावल, नाराज हो जाती हैं देवी मां
भेड़ों और शेरों को एक साथ चराती हैं देवी मां
शेयर करें:
शिमला। देवभूमि हिमाचल प्रदेश के लोगों की देवी-देवताओं से जुड़ी आस्था उनके सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। यहां के हर गांव का अपना इष्ट देवता या देवी होती है। हिमाचल के लोग अपने देवी-देवताओं को परिवार के सदस्य की तरह मानते हैं और हर खुशी या संकट के समय उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।
देवी-देवताओं के स्वागत के लिए निकाले जाने वाले जुलूस यहां की परंपरा का प्रतीक हैं। हिमाचल के लोगों की यह गहरी धार्मिक आस्था उन्हें न केवल एक-दूसरे से जोड़ती है, बल्कि उनकी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को भी संजोए रखती है। उनके लिए देवी-देवता केवल पूजा के प्रतीक नहीं, बल्कि उनके जीवन की शक्ति और प्रेरणा हैं।
आज के अपने इस लेख में हम आपको हिमाचल के ऐसे इलाके के बारे में बताएंगे- जहां कभी भी दाल-चावल नहीं बनता। इस इलाके में एक ऐसी शक्ति विराजती हैं- जिनके भक्त दाल-चावल को जूठा भोजन समझते हैं। उनका मनाना है कि दाल-चावल पकाने पर माता रानी क्रोधित हो जाती हैं और उनके इलाके पर आसमान से बिजली गिराती हैं।
हम बात कर रहे हैं माता नव दुर्गा जालपा देवी मां तुंगा जी की- जो भेड़ों और शेरों को एक साथ चराती हैं और क्रोध आने पर रौद्र रूप में आसमान से बिजली गिराती हैं। अपने शरीर पर भी कई बार कर चुकी हैं प्रहार और आज भी तुंगे री कंडी में विराजित होती हैं।
बताते हैं कि माता तुंगा जम्मू-कश्मीर से भेड़ पालकों संग हिमाचल आई थीं और फिर यहीं की होकर रह गईं।
कथा अनुसार, माता ने मंडी के ढंगसी नामक स्थान पर ब्राह्मणी का रूप धारण किया और भिक्षा मांगने लगीं। मगर जब गांव वाले माता रानी से सवाल जवाब करने लगे तो माता को ये पसंद नहीं आया और वो आगे बढ़कर देव पराशर ऋषि के पास पहुंची।
मगर देव पराशर का स्थान भी उन्हें अच्छा नहीं लगा और उन्होंने देव पराशर से अपने विराजित होने के लिए मंडी और सरंडी के साथ एक ऊंचा स्थान मांग लिया। इसलिए आज भी मंडी शिवरात्री की जाग में माता तुंगा के गुर चौथे नंबर पर देव खेल करते हैं और देव पराशर के आंगन में होने वाले किसी भी पर्व पर भी ऐसा ही होता है। वहीं, देवी मां तुंगा जी के मंदिर के बाहर एक गड्ढा बना हुआ है- जिसे जितना भी भरो वो खाली ही रहता है और लोग उसे मां काली का खप्पर मानते हैं।