#धर्म
March 23, 2025
हिमाचल के वो देवता महाराज- जिनका सिर्फ एक ही पेड़ से बनाया गया है पूरा मंदिर
इकलौते ऐसे देव- जिन्हें देवी तुन्गेश्वरी के दरबार में भी मिलता है प्रवेश
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शिमला। देवभूमि हिमाचल को देवी-देवताओं की भूमि कहा जाता है। यहां की धरती पर देवी-देवताओं की असीम कृपा मानी जाती है। हिमालय की गोद में बसे इस राज्य की हर घाटी, हर गांव और हर पहाड़ किसी न किसी धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है। यहां के हर गांव का अपना एक स्थानीय देवता होता है, जिसे वे अपने परिवार के सदस्य की तरह मान-सम्मान देते हैं।
मान्यता है कि हिमाचल की पवित्र भूमि पर स्वयं देवी-देवता वास करते है। यहां की अनूठी देव परंपरा में देवी-देवताओं को पालकी में बैठाकर यात्रा निकाली जाती है, जिसे लोग भक्ति और श्रद्धा के साथ कंधों पर उठाते हैं। हिमाचल में देवता केवल मंदिरों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि किसी भी सामाजिक, सांस्कृतिक या प्रशासनिक निर्णय में भी उनकी अनुमति लेना आवश्यक माना जाता है।
आज के अपने इस लेख में हम बात करेंगे हिमाचल के एक ऐसे देवता महाराज की- जिनका पूरा मंदिर सिर्फ एक पेड़ से बनाया गया है। यह अकेले ऐसे देव हैं- जिन्हें देवी तुन्गेश्वरी के दरबार में प्रवेश मिलता है।
हम बात कर रहे हैं भगवान श्री गणपति के स्वरुप- आदि श्री महागणपति महाराज देव चंडोही जी की- जिनके बारे में कहते हैं कि : चंडोही री लाग, गोष्ठु री आग। यानी - शांत स्वभाव के इन देवता महाराज को जब भी कोई परखने की चेष्ठा करता है, तो उसे कुष्ठ रोग हो जाता है।
मंडी के भटवाड़ी गांव में विराजने वाले- देव चंडोही जी की उत्पति कथा के अनुसार, एक बार जब देव पराशर अपने पवित्र सरोवर के पास तप में लीन थे- तब दानवों ने उनकी तपस्या को भंग करने का प्रयास किया। जिसके बाद पराशर ऋषि ने देव गणपति का आह्वान किया- जो ओड़ीधार की पहाड़ी पर प्रकट हुए और दैत्यों का संहार कर डाला।
बाद में मदेंनी खानदान के ब्राह्मणों को देवता जी मोहरा इस स्थान से प्राप्त हुआ। जहां आज भी आप कटोरी के आकार का गड्ढा देख सकते हैं- जो कभी नहीं भर पाया।
बताते हैं कि मंडी के राजा ने देवता साहिब के इस चमत्कारी मंदिर को ध्वस्त करने का प्रयास किया था मंदिर के एक सतम्भ को आधा काट भी दिया था। मगर तभी मंदिर की दीवारों पर बने सांपों ने जीव रूप ले लिया और राजा को डंसने लगे।
फिर बहुत माफी मांगने पर देव महागणपति ने राजा को क्षमा किया और अपने गुर को आदेश देकर उन सांपो को उन्हीं दीवारों में कील की मदद से चुनवा दिया। आज भी आप देवता जी के मंदिर में कटा हुआ स्तंभ और सर्पों पर कील ठोंकने के प्रमाण साफ़ देख सकते हैं।