#धर्म
January 20, 2025
हिमाचल की वो देवी मां - जिन्हें स्वीकार नहीं रथ, भक्तों के कांधे पर बैठ करती हैं सफर
देवी-देवता भी पहुंचे हैं देवी मां के दरबार
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शिमला। हिमाचल प्रदेश एक ऐसी भूमि है- जहां प्रकृति और आस्था का अद्वितीय मिलन होता है। यहां के हर गांव, हर पहाड़ी में देवी-देवताओं की शक्तियों का वास है। हिमाचल की घाटियां, उसकी ऊंची पहाड़ियां, हर स्थान पर देवी-देवताओं का आशीर्वाद बसा हुआ है। यहां हर पर्व, हर उत्सव, हर पूजा एक अद्वितीय अनुभव है- जो भक्तों को जीवन के सच्चे उद्देश्य की ओर अग्रसर करता है।
देवी-देवता इस भूमि को जीवन की शक्ति, शांति और संतुलन प्रदान करते हैं, जिससे हिमाचल एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव बन जाता है। आज के अपने इस लेख में हम आपको बताएंगे हिमाचल की एक ऐसी देवी मां के बारे में- जिन्हें रथ स्वीकार नहीं है।
देवी मां आज भी भक्तों के कांधे पर बैठ कर सफर करती हैं। देवी मां के दरबार सिर्फ भक्त ही नहीं देवी-देवता भी पहुंचते हैं। देवी मां के दरबार में ढाई साल में 34 देवी-देवताओं की हाजिरी लग चुकी है।
हम बात कर रहे हैं पुरानी मंडी की माता जग जननी की- जिनका मुख्य मोहरा पत्थर का बना है और वो केवल साल में एक बार भाद्र महीने में उनकी जाख पर बाहर निकलता है।
माता रानी के कारदार बताते हैं कि माता के साथ चलने वाले रामपाल देवता को मां ने युद्ध में हराया था और बाद में अपना बजीर बना लिया। कहते हैं कि माता जग जननी को बारिश बिल्कुल भी पसंद नहीं है। देव भारथा के अनुसार वो कहतीं हैं कि- गाशा पानी रोकी बैठी। ऐसे में माता रानी जब भी अपने दरबार से बाहर आती हैं तो 100% बारिश का पूर्वानुमान होने के बाद भी बारिश नहीं होती।
मान्यता के अनुसार, माता जग जननी का छत्र हमेशा टेढ़ा ही बनता है। फिर जब कोई प्रलय आने वाली हो या माता को क्रोध आता है तो ये छत्र स्वयं ही खंडित हो जाता है।
देवी मां लक्ष्मी का स्वरूप कही जाने वाली माता जग जननी अपने भक्तों को कर्ज से मुक्ति दिलवाती हैं। हमेशा ही सोने-चांदी का श्रृंगार पहनने वाली माता एक बार जिस वस्त्र को धारण कर लेती हैं-उसे दोबारा नहीं पहनती।
वहीं, मां जग जननी की बात ही निराली है। मां जग जननी पुरानी मंडी की इकलौती ऐसी देवी हैं जो देवता पराशर के सरनाहुली मेले में जाती है। इतना ही नहीं जब सभी देवता माघ साजा में स्वर्ग की ओर जाते हैं तो माता रानी स्वर्ग से लौट रही होतीं हैं।