#धर्म
January 18, 2025
हिमाचल के वो देवता महाराज- जिन्होंने एक तीर में जीत लिए थे 35 गांव
देव 3 साल में चुनते हैं एक बच्चा और फिर मनाते हैं शोक
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शिमला। देवभूमि कहलाए जाने वाले हिमाचल की धार्मिक आस्था इसे विशेष बनाती है। हिमालय की इन पवित्र वादियों में ऐसा विश्वास है कि यहां का हर कण देवी-देवताओं की उपस्थिति से पवित्र है। ये देवता न केवल मंदिरों और पूजास्थलों में पूजे जाते हैं, बल्कि हर पर्वत, झरने और जंगल को उनका निवास स्थान माना जाता है।
यहां के लोग देवी-देवताओं को अपनी संस्कृति और परंपराओं का आधार मानते हैं। हर गांव का अपना एक देवता होता है, जिसे "ग्राम देवता" कहा जाता है। इन देवताओं की प्रतिष्ठा इतनी गहरी है कि उनके सम्मान में विशेष समारोह और मेले आयोजित किए जाते हैं। लोग अपनी समस्याओं के समाधान और जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों में देवताओं का मार्गदर्शन लेते हैं।
आज हम बात करेंगे उन देवता महाराज की- जिन्होंने एक तीर में 35 गांव जीत लिए थे। ये देव हर तीन साल में एक बच्चा चुनते हैं और फिर शोक मनाते हैं। हम बात कर रहे हैं किन्नौर से लेकर बुशहर, रोहडू तक में अपना आधिपत्य स्थापित करने वाले देव जाबल नारायण की।
लगभग 1000 वर्ष पूर्व किन्नौर के रामणी गांव से रोहड़ू के जिगाह वैली में अपना अधिपत्य स्थापित करने वाले शक्ति देवता जेठू नारायण को बुशहर राजवंश का विपदा हारक माना जाता है।
देवता जेठू नारायण ने एक धनुष प्रतिस्पर्धा में रोहड़ू की जिगाह वैली के 35 गांवों को जीता था। इन देवता साहिब की सबसे विशेष बात ये है कि वे कभी द्वार के नीचे से मंदिर में प्रवेश नहीं करते बल्कि छत के रास्ते अंदर जाते हैं।
वहीं, लगभग 500 साल पहले एक मां-बेटी की खेत में हुई मौत से आहत होकर जाबल नारायण ने माणा नाम से शोक रखा। जिसे आज भी हर 3 साल पर मनाया जाता है। माणा के दौरान गांव में कोई बाहर का व्यक्ति नहीं आता और ना ही गांव में कोई जश्न होता है।
माणा में देवता द्वारा एक से पांच साल तक के बच्चे को चुना जाता है- जिसे गाणा कहते हैं। फिर गाणे यानी उस बच्चे को सफेद कपड़े पहनाए जाते हैं और पूरे क्षेत्र के दौरे पर ले जाया जाता है। इस दौरान उसकी हर बात मानी जाती है।
इस दौरान बच्चे के सिर पर लगे सफेद कपड़े का खुलना भी काफी अशुभ माना जाता है। किसी विशेष स्थान पर उस बच्चे के हंसने का अर्थ ये निकाला जाता है कि ये क्षेत्र और राजपरिवार के लिए खुशी की बात है।