#धर्म

October 27, 2025

हिमाचल के इस गांव में सदियों से चारपाई पर नहीं सोते लोग, जानें वजह

आज भी इस परंपरा में नहीं कोई बदलाव

शेयर करें:

Himachal News

मंडी। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में एक ऐसा गांव हैं जहां के लोग चारपाई पर नहीं सोते। ये परंपरा सदियों से चली आ रही है और आजतक इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया। ये गांव पर्वतीय वादियो में बसा है जो पूर्व सुकेत रियासत में आता है। इस गांव की पहचान सिर्फ इसकी प्राकृतिक सुंदरता से नहीं बल्कि यहां स्थित मां कामाक्षा मंदिर की दिव्यता और रहस्यमयी परंपराओं से भी है।

चारपाई पर सोएंगे तो होगा कष्ट

मंडी जिले का काओ गांव ऐसी जगह है जहां के लोग चारपाई पर नहीं सोते हैं। यहां के लोगों का विश्वास है कि अगर वो चारपाई पर सोएंगे तो देवी के श्राप से उन्हें कष्ट हो सकता है। गौरतलब है कि सदियों से चली आ रही इस परंपरा में कोई बदलाव नहीं हुआ है। 

 

यह भी पढ़ें: बठिंडा कोर्ट में पेश हुई हिमाचल की सांसद कंगना रनौत, मांगी माफी; बोली- हर माता मेरे लिए पूजनीय

सिर्फ मां के लिए बिछता है बिस्तर

इस जगह में सिर्फ मां कामाक्षा के लिए ही मंदिर में शयनकक्ष में बिस्तर बिछाया जाता है। पुजारी रात को देवी के विश्राम हेतु बिस्तर सजाते हैं और जब कपाट खुलते हैं तो बिस्तर पर पड़ी सलवटें इस बात का संकेत मानी जाती हैं कि देवी वास्तव में वहां विश्राम करती हैं। 

मंदिर तंत्र साधना का सर्वोच्च पीठ 

साहित्यकार मानते हैं कि ये मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि तंत्र साधना का सर्वोच्च पीठ माना जाता है। सतयुग से ही ये स्थान तांत्रिक सिद्धियों का केंद्र रहा है और हिमाचल के सभी शक्ति पीठों में इसका स्थान सबसे ऊपर है।

 

यह भी पढ़ें: हिमाचल में व्यवस्था पतन ! सिरमौर के बाद अब बिलासपुर में बीच सड़क खड़े पोल उठा रहे कई सवाल

किसी ने नहीं किए महामुद्रा दर्शन 

गौरतलब है कि देवी की महामुद्रा के दर्शन आज तक किसी ने नहीं किए। कहते हैं कि महामुद्रा के बाहर देवी महिषासुर मर्दिनी के रूप में निवास करती हैं। मंदिर में एक छोटा सा छेद है जिसे मोरी कहा जाता है। इस मार्ग से भक्त देवी महाकाली को धूप अर्पित करते हैं।

भगवान परशुराम ने की स्थापना

कहा जाता है कि इस सिद्ध स्थल की स्थापना स्वयं भगवान परशुराम ने की थी। जब भगवान परशुराम ने अपनी माता रेणुका का वध किया तो उन्होंने इसी स्थान पर मां कामाक्षा की कठोर तपस्या कर अपने पापों का प्रायश्चित किया।

 

यह भी पढ़ें: अपनों का विरोध दरकिनार कर सीएम सुक्खू अब इस ऑफिस को शिमला से धर्मशाला कर रहे शिफ्ट

भगवान परशुराम की मूर्ति प्रतिष्ठित 

मंदिर के गुफानुमा कक्ष में आज भी भगवान परशुराम की साढ़े तीन से चार फुट ऊंची मूर्ति प्रतिष्ठित है। ये मंदिर परशुराम द्वारा स्थापित पांच प्रमुख पीठों काओ, ममेल, नगर, निरथ और निरमंड में से एक है।

मशालों की रोशनी में नगाड़ों की गूंज 

काओ गांव की सांस्कृतिक पहचान आठी का मेला और रात्रिफेर उत्सव से भी जुड़ी हुई है। ये पर्व हर वर्ष श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। मशालों की रोशनी में नगाड़ों की गूंज के बीच भक्त नंगे पांव जोगन पीढ़ा होकर दिग्बंधन रूपी नृत्य करते हैं। 

 

यह भी पढ़ें: हिमाचल में शुरू हो रही 'बिजली मित्र' भर्ती, सुक्खू सरकार ने बढ़ा दिया मानदेय; जानें कितना मिलेगा

वातावरण रहस्यमयी व आस्था से भरा 

ये दृश्य श्रद्धा और भक्ति का अनोखा संगम प्रस्तुत करता है। रात्रिफेर के दौरान गांव का वातावरण रहस्यमयी और आस्था से भरा होता है। मशालों की लपटों के बीच देवी का जयकारा गूंजता है और पूरा काओ गांव दिव्यता में डूब जाता है।

सांसारिक बंधनों से मिलती है मुक्ति

मां कामाक्षा को सुकेत रियासत के सेन वंशज शासकों की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है। राजा-महाराजाओं के समय से लेकर आज तक यह परंपरा जारी है। भक्तों का विश्वास है कि मां की सच्चे मन से पूजा करने से सांसारिक बंधनों से मुक्ति मिलती है और जीवन में शांति व समृद्धि भी प्राप्त होती है। 

ट्रेंडिंग न्यूज़
LAUGH CLUB
संबंधित आलेख