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September 22, 2025

हिमाचल के वो देवता महाराज- जिनके लिए अपने मंदिरों के कपाट खुद खोल देते हैं दूसरे देवता

सबसे पहले मानसरोवर में प्रकट हुए थे देवता साहिब

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Himachal Devi Devta

शिमला। हिमाचल में एक देवता महाराज ऐसे हैं जिनके आने पर दूसरे देवता खुद अपने मंदिरों के कपाट खोल देते हैं। ये देवता साहिब एक 'हाँ' के जवाब से प्रकट हुए थे। अगर इन्हें क्रोध आ जाए तो 'कांटे चरवा' देते हैं। 

कुल्लू, मंडी, शिमला तक अधिपत्य 

ये जहां भी जाते हैं, इनके साथ 18 नगार चलते हैं। ये देवता महाराज कुल्लू, मंडी, शिमला तक अपना अधिपत्य रखते हैं। ये फतहपुर गढ़, तीन बढ़ और तीन कोठियों के अधिपति-गढ़पति देवता शंचुल महादेव जी हैं।

 

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शांगढ़ को बनाया अपनी तपोस्थली

कहा जाता है कि शंचुल महादेव सबसे पहले मानसरोवर में प्रकट हुए थे। फिर शांगढ़ को अपनी तपोस्थली बनाया। वहीं, थीणि के जंगलों में एक दिन गूगल धूप निकाल रहे व्यक्ति को एक धीमी, दिव्य आवाज़ सुनाई दी-“क्या मैं आऊं?”

एक हां से प्रकट हुए थे देवता साहिब

थोड़ा घबराकर उसने ‘हाँ’ कहा… और बस, उसी हाँ से देवता जी प्रकट हुए। पिंडी स्वरूप में उसके किल्टे में विराजमान हो गए और फिर बछूट गांव पहुंचकर अपना आधिपत्य स्थापित किया। आज भी इनकी मूल पिंडी ‘पिंडी देहुरे’ में स्थित है।

 

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मंडयाली महिलाओं ने किया उपहास

एक बार जब ये गाड़ागुशैनी मेले में गए, तो 60 मंडयाली महिलाओं ने उपहास किया। महादेव जी ने ‘कप्पू भरौरा’ शक्ति से सबको कांटे चरवा दिए। तब से इनकी नाराज़गी से सब डरते हैं। गढ़पति महादेव की आज्ञा के बिना कोई देवता फतहपुर गढ़ में प्रवेश नहीं करता, न ही वहां देव कार्य कर सकता है।

खुद-ब-खुद खुल गए मंदिर के कपाट

कहते हैं, जब ये कोटगढ़-कुमारसेन पहुंचे तो कोटेश्वर महादेव मंदिर के कपाट खुद-ब-खुद खुल गए। हर साल ये फतहपुर गढ़ जाकर शक्तियां अर्जित करते हैं। हर तीसरे साल फ़राउत यानी तीन बढ़ और अपनी हार की परिक्रमा करते हैं। 

 

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भक्तों की मनोकामना करते हैं पूरी

हर 18-20 साल में शांगढ़, शैशर, शिकारी माता और जोगी पत्थर की यात्रा पर हजारों हरियानों के साथ निकलते हैं। सावन, वैशाख और माघ-ये तीन तिथियां इनके प्रमुख देव उत्सव मानी जाती हैं, जब महादेव जी अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं।

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