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September 19, 2025

हिमाचल के वो देवता साहब- जिनके रथ पर सजता है सेहरा, मंदिर की रक्षा करते हैं कई देव

शरोघ में कोई नहीं पहनता सेहरा

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Himachal Devi Devta

शिमला हिमाचल में एक ऐसे देवता हैं जिनके मंदिर की रक्षा कई सारे देवता करते हैं। इनके रथ पर खूबसूरत सा सेहरा सजता है और इनके आंगन में स्वयं केदारनाथ से आईं भगवती मैया विराजती हैं।

दो क्षेत्रों के बीच भीषण संघर्ष

ये देवता साहिब कोटगढ़ के अधिष्ठाता-असहाय का सहारा-देवता महाराज चतुर्मुख मेलन जी हैं। इन्हें अपना अधिष्ठाता बनाने के लिए तीन हजार साल पहले दो क्षेत्रों के बीच भीषण संघर्ष हुआ था।

 

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काणा देवता लेते बच्चों की बलि

ये पूरी कहानी शुरू होती है खनेटी गांव से जहां काणा नामक देवता हर संक्रांति पर मासूम बच्चों की बलि लेते थे। ऐसे में चार बेटियों की बलि दे चुकी एक मां ने पांचवीं बेटी को बचाने की ठानी और खाचली नाग देवता के पास शरण ली।

ढह गया काणा देवता का मंदिर

देवता जी ने भरोसा दिया कि बलि का समय आये तो मुझे याद करना। फिर वो क्षण आया, मां ने पुकारा, आकाश गरजा, बिजली कड़की और काणा देवता का मंदिर ढह गया। फिर काणा देवता का राज समाप्त हुआ, बलि की परंपरा टूटी लेकिन अब सवाल था कि क्षेत्र का अधिष्ठाता कौन होगा ?

तीन देवताओं की ओर इशारा

ऐसे में खाचली नाग जी ने खुद अधिष्ठाता बनने से मना कर खड़ाहन के तीन देवताओं की ओर इशारा किया। इसके बाद खनेटी और सद्धोच के 18 लोग जाहू मेले में पहुंचे जहा तीनों भाई-जिषर, चतुर्मुख और इशर देवता अपने रथों में आए।

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चतुर्मुख देवता का रथ हल्का

मन में प्रार्थना हुई- “जो भी देवता अधिष्ठाता बनना चाहें, उनका रथ फूल-सा हल्का हो जाए और वो रथ भीड़ से दूर ले जाए।” तो चतुर्मुख देवता का रथ हल्का हो गया और बाकियों का भारी ही रहा।

दुश्मनों के आगे छा गई थी धुंध

मगर जैसे ही रथ को वहां ले जाया जाने लगा, खड़ाहन के लोगों ने इसका विरोध किया और उनके पीछे पड़ गए। कहते हैं, तब चतुर्मुख देवता ने ही अपने भक्तों की रक्षा की। दुश्मनों के आगे धुंध छा गई और उन्हें रास्ता दिखना बंद हो गया।

देवता जी ने जताई ठहरने की इच्छा

आखिर में रथ शतला और सकुंदी होते हुए मैलन पहुँचा-जहाँ देवता जी ने ठहरने की इच्छा जताई। बताते हैं उनके रथ पर सजा सेहरा देवता चतुर्मुख जी के छोटे भाई देवता जिषर जी पहना है, जो उन्हें शरोघ गाँव से उपहार में मिला था जिसे उन्होंने कभी नहीं उतारा।

 

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शरोघ में कोई नहीं पहनता सहेरा

वहीं, अब परंपरा ऐसी बन गई है कि शरोघ में कोई भी सेहरा नहीं पहनता-क्योंकि उनका सेहरा अब देवता जी के रथ पर सुशोभित है। वहीं, फाग के दिन इन देवता जी का रथ ढाई पग चला था- जिसके बाद से उन्हें फाग का राजा भी कहा जाता है

आंगन में मां भगवती का मंदिर

सबसे खास बात-आज से डेढ़ सौ साल पहले जब देवता जी केदारनाथ यात्रा से लौटे, तो माँ भगवती ने साथ चलने की इच्छा जताई थी। तभी से माँ भगवती का मंदिर भी देवता जी के आँगन में स्थापित है।

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