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September 15, 2025

हिमाचल की इन देवी मां को बहुत प्यारे हैं बच्चे, रोता देख छोड़ दिया था अपना अधिपत्य

माता को कहा गया है सीता स्वरूपा

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Himachal Devi Devta

कुल्लू। हमारे हिमाचल की इन माता रानी ने "ना रे हत्या जी हुई मातला का ना मानु मैं जूठा ना सूथक ना पाथक" शब्द बोलने के बाद अपना अधिपत्य छोड़ दिया था। जिस तरह से मिथिला देश में सीता मइया जमीन से प्रगटी थीं। बिलकुल उसी तरह हमारे हिमाचल में इन देवी मां की उत्पत्ति हुई थी। इसी वजह से इन्हें सीता स्वरूपा भी कहा गया है और उनकी डआउडी में स्वयं भगवान श्री राम आज भी विराजित हैं।

श्री नातली नाग जी भी विराजित 

ये माता रानी निरमंड के पुजारली में विराजमान देवी साहिबा सरमासनी जी हैं। माता के रथ में उनके साथ 7 भराड़ियों में से एक मां सुनेरी जी और 11 गढ़ 24 चख 10 फटी के मालिक राम स्वरूप श्री नातली नाग जी भी विराजित होते हैं। 

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नातली नाग जी चलते हैं आगे 

सीता स्वरूपा देवी मां सरमासनी, राम स्वरूप श्री नातली नाग जी के बिना कहीं नहीं जातीं और नातली नाग जी भी हमेशा उनसे आगे चलते हैं। 12 गांव की देवी मां सरमासनी जी की उत्पत्ति की कथा बताती है कि उनका मूल मुख शाड़ी नाम की जगह पर खेत में हल चलाते हुए मातला गांव के एक किसान को मिला था।

मोहरे पर चोट का भी निशान 

हल की चोट से उनके मोहरे पर चोट का भी निशान बना हुआ है। कहते हैं, इसके बाद किसान माता के मुख को घर ले गया और अनाज के बर्तन में रखा लेकिन धीरे-धीरे उस मोहरे ने अपनी दिव्य शक्तियां दिखाना शुरू कर दीं।

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शक्ति को देवी मानकर पूजा 

जब गांव वालों को हो रहे चमत्कारों की बात पता चली, तो तय किया गया कि इस शक्ति को देवी मानकर पूजा जाएगा। 12 साल तक माता का वहीं पूजन हुआ - फिर एक दिन बच्चे माता के साथ खेलने लगे, उन्हें भूख लगी तो जो खाना मिला, वो खाने लगे और माता को भी वही जूठा खिला दिया।

बच्चों के दुख में छोड़ा अधिपत्य

जब बड़े पहुंचे तो उन्होंने बच्चों को डांटा जिसपर बच्चे रोने लगे। माता जी ये देख इतनी दुखी हुईं कि अपना अधिपत्य ही छोड़ दिया। इसके बाद माता चढ़ाकोट होते हुए मां अम्बिका के पास गईं। माँ अम्बिका के कहने पर सुनेर गाँव पहुंचीं।

माता से की रह जाने की विनती

कुछ वर्षों बाद उन्हें पुजारली गाँव के नीचे किरणऊ का पुष्प दिखा - वहीँ रुकने का निश्चय किया। गाँव वालों को जब माता की शक्ति का एहसास हुआ, तो विनती की गई कि वे यहीं रहें।

माता ने कन्या रूप में किया निर्माण

माता ने आदेश दिया, और चींटियों के दिखाए नक्शे पर मंदिर बना - कहा जाता है कि उसका आधा निर्माण स्वयं माता ने कन्या रूप में किया था। और तब से आज तक, माता सरमासनी जी पुजारली में अखंड ज्योति रूप में यहीं विराजती हैं।

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