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July 20, 2025
सावन का दूसरा सोमवार : हिमाचल का ऐसा चमत्कारी मंदिर, जहां दिन में तीन बार रंग बदलता है शिवलिंग
आशीर्वाद लेने दिन भर लगा रहता है भक्तों का तांता
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मंडी। सावन माह शुरू होते ही शिव मंदिरों में अकसर आशीर्वाद लेने वाले भक्तों का आना-जाना बढ़ जाता है। विशेषकर सोमवार के दिन तो भक्तों की भीड़ उमड़ी रहती है। आज पवित्र सावन माह के दूसरे सोमवार को अल-सुबह से ही जिला मंडी के पांगणा गांव में स्थित शिव मंदिर में काफी भीड़ उमड़ रही है और लोग महादेव का आशीर्वाद लेने के लिए दूर-दराज से पहुंच रहे हैं। इस मंदिर की एक खास विशेषता है कि, यहां मौजूद शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है।
मंदिर पुजारी बताते हैं कि, सुबह आरती केसमय शिवलिंग का रंग हल्का रक्त (लाल) होता है। दोपहर पूर्ण रक्त वर्ण का हो जाता है और शाम के समय यह कृष्ण वर्ण (काला) में बदल जाता है।
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मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा- अर्चना करने से हर मुराद पूरी होती है। ये प्राचीन हिंदू मंदिर अपनी अनोखी घटना के लिए प्रसिद्ध है। यहां स्थापित शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है। मंदिर के पुजारी भूपेंद्र शर्मा ने बताया कि शिवलिंग दिन के विभिन्न पहरों में अपना वर्ण (रंग)बदलता है।
वहीं, इस मंदिर से जुड़ी एक रोचक कथा भी है। कहते हैं, इस शिवद्वाला का निर्माण लगभग 200 वर्ष पूर्व चरखड़ी गांव के एक प्रसिद्ध व्यवसायी धनिया ने करवाया था। धनिया का व्यापार शिमला से दिल्ली तक फैला हुआ था और वे अपार धन-संपत्ति के स्वामी थे, किंतु उन्हें संतान सुख की कमी खल रही थी।
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उन्होंने इस मंदिर में भगवान शिव से संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना की और उनकी मनोकामना पूर्ण हुई। कृतज्ञ धनिया ने शिवद्वाला का भव्य पुनर्निर्माण करवाया, जिसके बाद उनके वंश का विस्तार हुआ और सुख-समृद्धि कई पीढ़ियों तक बनी रही।
शिवद्वाला में कई महत्वपूर्ण धार्मिक परंपराएं निभाई जाती हैं। महाशिवरात्रि के दिन धनिया के परिजन पांगणा के इस मंदिर में शिव के पार्थिव विग्रह "चंदो" को बनाकर लाते हैं, धनिया के परिवार के सदस्य उस दिन पूजन-अनुष्ठान के लिए धनराशि और पूजा सामग्री भी प्रदान करते हैं, रविवार देर रात 12 बजे ही श्रद्धालु पहुंचने लगते हैं, सोमवार सुबह से दिनभर श्रद्धालु इस साल भी भगवान शिव का जलाभिषेक कर सकेंगे।
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उधर, जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष बताते हैं कि, अकाल की स्थिति में वर्षा के लिए यहां एक अनूठी प्रथा, गड्डू ढालने का पालन किया जाता है। इस अनुष्ठान में मंदिर के पास की शिव बावड़ी से लोटों में जल लाकर तब तक शिवलिंग पर निरंतर अभिषेक किया जाता है, जब तक अभिषिक्त जल की धारा समीप स्थित शिकारी देवी की चरण गंगा तक नहीं पहुंच जाती।