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March 5, 2025

हिमाचल के वो देवता साहिब- जो भूंडा और शांत महायज्ञ में नहीं होते विराजित

बद्रीनाथ धाम में भी अपनी शक्तियों का प्रदर्शन कर चुके हैं देवता साहिब

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Devta Sahib Narayan

शिमला। देवभूमि हिमाचल के लोग देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। यह आस्था केवल धार्मिक विश्वास तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके संपूर्ण जीवन और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। प्रदेश के हर गांव और क्षेत्र का अपना एक प्रमुख इष्ट देवता या देवी होती है, जिनकी नियमित रूप से पूजा-अर्चना की जाती है।

मार्गदर्शक हैं देवी-देवता

लोग अपने इष्ट देवता को परिवार का अभिन्न अंग मानते हैं और किसी भी शुभ कार्य, संकट या निर्णय के समय उनकी सलाह लेना आवश्यक समझते हैं। कई स्थानों पर देवता की पालकी को उठाकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘देव परंपरा’ कहा जाता है। हिमाचल के लोगों के लिए देवी-देवता केवल आराध्य नहीं, बल्कि जीवन की शक्ति और मार्गदर्शक हैं, जो उन्हें हर परिस्थिति में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।

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महायज्ञ में नहीं होते विराजित

आज के अपने इस लेख में हम आपको हिमाचल के एक ऐसे देवता साहिब के बारे में बताएंगे- जो भूंडा और शांत महायज्ञ में विराजित नहीं होते हैं। ये देवता साहिब उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम में भी अपनी शक्तियों का प्रदर्शन कर चुके हैं।

 

सात्विक देवता ने धारण किया है तामसिक लांकड़ा वीर

इन देवता जी की विदाई में बद्रीनाथ धाम के मुख्य पुजारी ने सोने का छत्र दिया था। हम बात कर रहे हैं रोहडू नावर में विराजने वाले न्याय प्रिय देवता नारायण जी की- जो वीरनू घोड़ी के 11 गांवों के मालिक हैं और पूर्ण सात्विक होने के बावजूद अपने रथ पर तामसिक लांकड़ा वीर को धारण कर रखा है।

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तने से अलग चमत्कारी पेड़

देवता नारायण जी के उत्त्पत्ति से जुड़ी कहानी बताती है कि रोहडू के नरैण गांव में दयार का एक ऐसा चमत्कारी पेड़ हुआ करता था- जिसके तने में ही अलग से 12 पेड़ लगे थे। ऐसे में जब एक स्थानीय महिला- इन पेड़ों को काटने पहुंची- तो कुल्हाड़ी लगाते ही उस पेड़ में से दूध और खून एकसाथ निकलने लगा।

दो फाड़ हुआ पेड़, पास पड़ा था मोहरा

ऐसे में महिला फौरन वहां से भागी और गांव वालों को इस बारे में बताया। मगर जब गांव वाले पेड़ के पास पहुंचे तो उन्होंने पाया कि वो चमत्कारी पेड़ अपने आप ही दो फाड़ हो चुका है और पेड़ के पास ही एक आप रूपी मोहरा पड़ा है।

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मोहरों को चुराने की कोशिश

लोग बताते हैं कि देवता जी के इस चमत्कार को देखने के बाद उस पूरे क्षेत्र के लोगों ने उन्हें अपना आराध्य स्वीकार कर लिया था। बता दें कि देवता नारायण जी के इन मुहरों को दो बार चुराने के प्रयास भी किए गए हैं- मगर वो कुछ ही दिनों में वापस मंदिर लौट आते हैं।

 

इस बारे में देवता अपने देव बखान में कहते हैं- सौरगा छुटो, कुपड़ी फुटो- उखली कुटो-  कुदियां धौं- दिल्ली तोई मेरे मुरो डोओ- मेरो सोत तोई भी ना गालुओ यानी स्वर्ग से आया हूं , देवरानाला में अवतरित हुआ हूं- मेरे शत्रु ने मुझे भट्टी में पिघलाने और उखली में कूटने की कोशिश की - दिल्ली तक मेरे मोहरे को ले जाया गया- फिर भी मेरी शक्तियों का अंत ना कर सके।

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