#धर्म
February 22, 2025
हिमाचल के वो देवता साहिब- जिनकी भक्तों के भोजन ग्रहण करने के बाद होती है पूजा
चिड़िया का रूप लेकर चीर दिया था भावा पास
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शिमला। देवभूमि हिमाचल के लोग देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। यहां के लोग अपने इष्ट देवता को परिवार का अभिन्न अंग मानते हैं और किसी भी शुभ कार्य, संकट या निर्णय के समय उनकी सलाह लेना आवश्यक समझते हैं। हिमाचल के लोगों के लिए देवी-देवता केवल आराध्य नहीं, बल्कि जीवन की शक्ति और मार्गदर्शक हैं, जो उन्हें हर परिस्थिति में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
प्रदेश के हर गांव और क्षेत्र का अपना एक प्रमुख इष्ट देवता या देवी होती है, जिनकी नियमित रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। कई स्थानों पर देवता की पालकी को उठाकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है।
आज के अपने इस लेख में हम आपको हिमाचल के एक ऐसे देवता साहिब के बारे में बताएंगे- जो दैत्यराज बाणासुर और देवी मां हिरमा की तीसरी संतान हैं। यह देवता साहिब खुद में एक ऐसी शक्ति हैं- जिन्होंने मोनाल चिड़िया का रूप लेकर भावा पास को चीर दिया था और इसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं।
हम बात कर रहे हैं किन्नौर के धर्म प्रिय देवता वांग महेश्वर जी की- जिनकी पूजा दिन में सिर्फ एक बार होती है। देवता साहिब सभी जीव-जंतुओं के खाना खा लेने के बाद ही सुबह का प्रसाद 10 बजे के बाद ग्रहण करते हैं।
जनश्रुतियों के अनुसार- किन्नौर के सुंगरा गांव की एक गुफा में असुर राज बाणासुर और देवी मां हिरमा की 7 संतानों ने जन्म लिया। आगे चलकर इनकी सबसे बड़ी संतान- यानी देवी मां चंडिका कोठी को सभी भाई-बहनों के बीच पाट बांटने की जिम्मेदारी मिली।
ऐसे में मां चंडिका जी ने अपने भाई वांग महेश्वर जी को कुल्लू-सराहन से लेकर भावा वैली तक का क्षेत्र दिया। मगर- जब देवता साहिब को अपना क्षेत्र कम लगा, तो उन्हें स्पीति का पिन वैली क्षेत्र भी दे दिया गया।
फिर जब एक बार देवता महेश्वर जी मोनाल चिड़िया के रूप में क्षेत्र के भ्रमण पर निकले, तो कुल्लू- रामपुर क्षेत्र का 15 बीश होते हुए- पिन घाटी तक पहुंच गए और तेलिंग पर्वत पर कई वर्षों तक तप किया। मगर जब उन्होंने उस स्थान से लौटना चाहा- तो चिड़िया के रूप में वांग खागो और भावा पास की ऊंचाई पर उड़ ना सके।
कहते हैं- इसके बाद देवता जी ने खागो पहाड़ को फाड़ कर यहां रास्ता बनाया और वो पहाड़ छोटा हो गया- जो आज भी बर्ड शेप में दिखता है। वहीं, देवता वांग महेश्वर जी भी इसी रास्ते से पिन वैली तक जाते हैं।