#धर्म

March 6, 2025

हिमाचल के वो देवता साहिब- जो श्मशान में होते हैं विराजित, शिव के रूद्र रूप में होती है पूजा

सदियों से पूजा करता आ रहा अयोध्या का एक परिवार

शेयर करें:

Kuineri Mahadev Ji

शिमला। देवभूमि हिमाचल प्रदेश में देवी-देवताओं की आराधना जीवन का अभिन्न हिस्सा है। यहां के लोग ईश्वर को केवल मंदिरों तक सीमित नहीं रखते, बल्कि उन्हें अपने परिवार का सदस्य मानते हैं। प्रत्येक गांव और क्षेत्र की अपनी एक प्रमुख देवी या देवता होती है, जिन्हें ग्रामीण समाज का रक्षक माना जाता है। इन देवताओं की नियमित पूजा-अर्चना की जाती है और विशेष अवसरों पर बड़े आयोजन होते हैं।

देवी-देवताओं को माना जाता है जीवंत

लोग किसी भी शुभ कार्य, विवाह, नामकरण संस्कार या नए घर में प्रवेश से पहले अपने इष्ट देवता का आशीर्वाद लेना अनिवार्य समझते हैं। यहां की अनूठी ‘देव परंपरा’ के अनुसार, देवी-देवताओं को जीवंत माना जाता है। कई स्थानों पर देवताओं की पालकी उठाई जाती है और विशेष अनुष्ठानों के दौरान भक्तों पर उनकी कृपा दृष्टि मानी जाती है।

यह भी पढ़ें : हिमाचल के वो देवता साहिब- जो भूंडा और शांत महायज्ञ में नहीं होते विराजित

आज के अपने इस लेख में हम हिमाचल के एक ऐसे देवता साहिब के बारे में बताएंगे- जो श्मशान में विराजित होते हैं। इन देवता साहिब की पहचान शिव शंकर के वैरागी, विराट और रूद्र स्वरुप में होती है।

देववाणी में क्या कहते हैं देवता

ये देवता अपनी देववाणी में कहते हैं- शेले ठाण्डदो नी, धुपे जामदो नी, होछे का चिलदो नी, बड़े का डरदो नी।। नई लांदो नी, पराणी छाडदो नी।। एं आसा देओ कुंईरीएं बोल।। यानी जिन्हें सर्दी मे ठंड महसूस नहीं  होती, जिन्हें  धूप में  गर्मी का आभास नहीं होता, छोटों से चिढ़ते नहीं और खुद को बड़ा समझने वालों से डरते नहीं।। बहुत सारे नियम बनाते नहीं हैं, लेकिन पुराने देव संस्कृति के जो रीति-रिवाज है उन्हें छोड़ते भी नहीं।। ये हमारे श्री गाड़ा गड़ाही कुंईरी महादेव जी के बोल हैं।

यह भी पढ़ें : हिमाचल के वो देवता साहिब- जिनके एक हथोड़े से निकली थीं नमक की खदानें

सदियों से पूजा का जिम्मा संभाल रहा परिवार

हम बात कर रहे हैं गाड़ा गड़ाही, वेदव्यास श्री कुंईरी महादेव जी की- जो तीन गढ़ों और 9 हार पर रखते हैं अपना अधिपत्य। भगवान रघुनाथ की पूजा के लिए अयोध्या से आए 2 पुजारी भाइयों में से एक का परिवार सदियों से इनकी पूजा का जिम्मा संभाल रहा है।

 

 

बता दें कि कुल्लू के कुंइर गांव में कुंईरी महादेव जी रथ रूप में विराजित हैं- जहां इन्हें शिव के रौद्र रूप में पूजा जाता है। वहीं, देवता जी की उत्पति के मूल स्थान-  जलोड़ी झरोनू में इन्हें केंदू नाग रूप में पूजते हैं- जहां वो गज रूप में विराजित हैं।

यह भी पढ़ें : हिमाचल के वो देवता साहब- जो सिर्फ एक रुपए और पत्थर से करते हैं बीमारियों का इलाज

देवता ने करवा दी बारिश

पुराने लोग बताते हैं कि जब शांगरी रियासत में अकाल और सूखा पड़ा था- तो राजा हीरा सिंह ने देवता कुंईरी महादेव जी को द्लाश मेले में आमंत्रित किया और अपने साम्राज्य बचाने की गुहार लगाई। ऐसे में देवता जी ने देवी माता धूमरी की मदद से वहां बिझी बादली यानी बारिश करवाकर सूखे को समाप्त करवाया, जिसके बाद राजा ने देवता साहब के गुर को सिक्के, देवता जी को सूरज पंखा, छत्री यानी जतरोली और आनी राज दरबार में बेला के नजदीक बैठने के लिए स्थान भेंट किया था।

साल में लगते हैं 9 मेले

इन देवता साहिब के साल में कुल 9 मेले होते हैं- जिसमें सबसे खास होता है- 12 से 18 साल बाद होने वाला जतराला। इस दौरान देव 3 महीने तक अपने क्षेत्र में भ्रमण करते हैं- जहां देव परंपरा से जुड़ी कई सारे रस्में निभाई जाती हैं।

पेज पर वापस जाने के लिए यहां क्लिक करें

ट्रेंडिंग न्यूज़
LAUGH CLUB
संबंधित आलेख