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January 16, 2025
हिमाचल : मां ब्रजेशव्री देवी की पिंडी को 25 क्विंटल मक्खन से किया गया लेप, जानें मान्यता
लोगों में बांटा जाता है ये मक्खन
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कांगड़ा। देवभूमि हिमाचल के मशहूर शक्तिपीठ मां बज्रेश्वरी देवी की पिंडी को मक्खन की लेप के साथ सजाया गया है। माता की खूबसूरत और अद्भुत पिंडी को देखने के लिए सैंकड़ों लोगों की भीड़ उमड़ रही है। यह घृत मंडल अगले एक हफ्ते तक ऐसे ही माता की पिंडी पर सजा रहेगा।
मां बज्रेश्वरी देवी की पिंडी को 25 क्विंटल मक्खन से लेप किया गया है। इस मक्खन को 30 क्विंटल देसी घी से तैयार किया गया है। हफ्ते के बाद मक्खन प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को बांट दिया जाएगा। मान्यता है कि माता श्री बज्रेश्वरी देवी की पिंडी पर चढ़ाया गया मक्खन चरम रोग और जोड़ों की दर्द को ठीक करता है। इस मक्खन को खाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
आपको बता दें कि हर साल माता की प्रतिमा को मक्खन से सजाया जाता है। मक्खन से लेप करने के बाद सूखे मेवे और फलों से माता का श्रृंगार किया जाता है। सर्दियों के इस मौसम में देसी घी को 101 बार ठंडे पानी में रगड़-रगड़ कर धोकर उससे मक्खन तैयार किया जाता है। देसी घी से मक्खन तैयार करने की प्रक्रिया एक हफ्ता पहले ही पूरी हो जाती है।
मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर मंदिर के पुजारियों द्वारा बज्रेश्वरी माता की पिंडी पर घृत मंडल सजाने का काम शुरू किया गया था। माता की पिंडी के दर्शन करने के लिए मंदिर में भक्तों की काफी भीड़ उमड़ रही है।
मान्यता के अनुसार, जालंधर दैत्य का वध करते समय माता के शरीर पर कई घाव हो गए थे। ऐसे में देवी-देवताओं ने माता के घावों को ठीक करने के लिए उनके शरीर पर घृत का लेप किया था। मान्यता है कि इस घी को देवी-देवताओं ने 101 बार शीतल जल में धोया था और इसका मक्खन तैयार किया था। इसके बाद इस मक्खन को माता के घावों पर लगाया था। तब से लेकर आज तक ये प्रक्रिया चलती आ रही है और मां की पिंडी को मक्खन का लेप किया जा रहा है।
कथाओं के अनुसार, देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उन्होंने भगवान शिव और देवी सती को यज्ञ में नहीं बुलाया। देवी सती ने इसे बहुत अपमान समझा और उन्होंने उसी हवन कुंज में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
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भगवान शिव देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड के चक्कर लगा रहे थे। इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था और उनके अंग धरती पर जगह-जगह गिरे। जहां-जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे वहां एक शक्तिपीठ बन गया। उसमें से मां सती का बायां वक्षस्थल इस स्थान पर गिरा था- जिसे मां बज्रेश्वरी या कांगड़ा माई के नाम से पूजा जाता है।