#धर्म
January 16, 2025
हिमाचल के वो देवता साहब- जो सतलुज के तल से निकाल लाते हैं सूखी रेत
सदियों से जल रहा अखंड धूना
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शिमला। देवभूमि कहलाए जाने वाले हिमाचल प्रदेश के कण-कण में देवी-देवताओं का वास है। हिमाचल के लोग देवी-देवताओं को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा मानते हैं। देवी-देवताओं के प्रति लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि वे अपने दैनिक जीवन के हर छोटे-बड़े निर्णय में उन्हें शामिल करते हैं।
यहां हर गांव का अपना देवता है- जिन्हें विशेष पूजा-अर्चना के माध्यम से सम्मानित किया जाता है। हिमाचल की संस्कृति और परंपराएं इस धार्मिक आस्था में रची-बसी हैं, जो इसे एक अनोखा और पवित्र स्थान बनाती हैं। लोगों की देवी-देवताओं से अनोखी आस्था जुड़ी हुई है।
आज के अपने इस लेख में हम बात करेंगे हिमाचल के उन देवता साहब की जो सतलुज के तल से सूखी रेत निकालकर ले आते हैं। इन देवता साहिब का अखंड धूना सदियों से जल रहा है, लेकिन उसकी राख कहां जाती है- इस बारे में किसी को कुछ पता नहीं है। हम बात कर रहे हैं देवता साहिब मूल माहूंनाग की- जिनकी शक्तियों के आगे औरंगजेब भी नतमस्तक हो गया था।
बताया जाता है कि महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने छलपूर्वक कर्ण का वध तो किया, लेकिन अर्जुन की आत्मा ग्लानी से भर गई और उन्होंने कर्ण के शव का अंतिम संस्कार ततापानी के पास सतलुज किनारे किया। माना जाता है कि उसी चिता की आग से एक नाग देवता प्रकट हुए, जिन्हें हम आज दानवीर कर्ण के अवतार मूल माहूंनाग के रूप में पूजते हैं।
वहीं, जब एक बार जब सुकेत के राजा श्याम सेन को औरंगजेब ने दिल्ली में कैद कर लिया था- तो राजा ने अपनी मुक्ति के लिए देवता साहिब को याद किया। इसी दौरान देवता मधुमक्खी रूप में राजा के सामने प्रकट हुए। फिर राजा ने देवता मूल से वादा किया कि अगर वो छूट जाएगा तो अपना आधा राज्य उन्हें दे देगा। तभी थोड़ी ही देर में औरंगजेब ने जेल में बंद राजा को शतरंज खेलने का प्रस्ताव भेजा और कहा कि अगर तुम जीते, तो तुम्हें आजाद कर दिया जाएगा।
ऐसे में राजा मूल महुंनाग के आशीर्वाद से वो बाजी जीत गए और जब आजाद होने के बाद उन्होंने देवता साहिब को अपना आधा राज्य देना चाहा- तो देवता जी ने बहुत थोड़ी सी जमीन ली।
आपको बता दें कि करसोग के बखारी कोठी में मौजूद देवता साहिब के मंदिर में एक अखंड धूना भी है-जिसकी राख को कभी नहीं निकाला गया है। इतना ही नहीं किसी को ये भी मालूम नहीं है कि ये राख कहां जाती है। इस अखंड धूने की राख का रहस्य आज भी बरकरार है।