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October 19, 2025

Diwali 2025: इस दिवाली 100 साल बाद बन रहा महालक्ष्मी योग, इस शुभ मुहूर्त में करें मां लक्ष्मी पूजन

दिवाली 2025 में कल इस शुभ मुहूर्त में करें मां लक्ष्मी की पूजा

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Diwali 2025: कार्तिक अमावस्या के शुभ अवसर पर हर वर्ष दीपावली का पावन त्योहार मनाया जाता है। इस बार दीपों का यह पर्व 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा। मान्यता है कि दीपावली की रात मां लक्ष्मी स्वयं पृथ्वी पर आती हैं और अपने श्रद्धालु भक्तों को धन, समृद्धि और सुख-शांति का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

 

देशभर में 20अक्टूबर को मनाए जाने वाले दिवाली‑त्योहार की तैयारी हिमाचल की पावन धरती पर धूमधाम से चल रही है। देवभूमि हिमाचल के पर्वतीय गांवों में मां लक्ष्मी की अर्चना और दीपों की रोशनी के बीच ये पर्व अपनत्व और उल्लास का प्रतीक बन गया है। यह स्वर्णिम अवसर जहां एक ओर घर‑घर दीपों से जगमगा उठते हैं, वहीं धार्मिक विधि‑विधान के तहत मां लक्ष्मी का आह्वान भी किया जा रहा है।

 

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कब होगी लक्ष्मी माता की पूजा

प्रख्यात आचार्य ने बताया कि इस वर्ष कार्तिक अमावस्या’ की तिथि दो दिन (20 व 21 अक्टूबर) में बनी है। 20 अक्टूबर को दोपहर 3 बजे 44 मिनट से अमावस्या आरंभ होगी और 21 अक्टूबर की शाम 5 बजे 55 मिनट को समाप्त। शनिवार‑रविवार की इस अवधि में विशेष मुहूर्तों के द्वारा पूजा‑अर्चना करने का विधान है।

शुभ मुहूर्त एवं विधि‑विधान

प्रदोष काल: 20 अक्टूबर शाम 5 बजकर 46 मिनट से रात 8 बजकर 18  मिनट तक।

वृषभ काल: रात 7  बजकर  8 मिनट से रात 9 बजकर  3 मिनट तक।

अभिजीत मुहूर्त: 21 अक्टूबर प्रातः 11 बजकर  43  मिनट से 12 बजकर 28 मिनट तक।

अमृत काल: दोपहर 1 बजकर 40 मिनट से 3  बजकर  26 मिनट तक।

 

इन मुहूर्तों में मां लक्ष्मी एवं भगवान कुबेर की पूजा‑अर्चना करने से धन‑समृद्धि, परिवार की खुशहाली और आशीर्वाद प्राप्त होने की मान्यता है।

 

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देवभूमि में उत्सव की रंगत

हिमाचल प्रदेश के चारों ओर पर्वतीय घाटियों, गलियों और नगर‑विकास क्षेत्रों में दिवाली की तैयारियाँ पूरे उत्साह से चल रही हैं। स्‍थानीय निवासियों ने घरों की सफाई की है, दीयों‑मोटियों ने सजावट पाई है, मंदिरों में पूजा‑सामग्री उपलब्ध करवाई जा रही है। राज्य शासन भी इस पर्व को सुरक्षित एवं उल्लासपूर्वक मनाने के लिए तैयारियों में जुटा है।

क्यों विशेष है इस दिवाली की पूजा?

आचार्य विजय ने समझाया कि अमावस्या तिथि पर रात्रि में विशेष पूजा के पीछे पौराणिक मान्यता है कि इस दिन माँ लक्ष्मी समुद्र मंथन के पश्चात क्षीरसागर से प्रकट हुई थीं। यही कारण है कि इस दिन को माता लक्ष्मी का जन्म दिवस माना गया है और पूजन‑अर्चना के साथ साथ दीपदान एवं साधना का महत्व बढ़ जाता है।

 

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मंत्र‑वाचन एवं आराधना का विधान

विधि‑विधान के अनुसार, पूजा‑स्थल को स्वच्छ व सुशोभित करना, गणेश जी की स्थापना करना, लक्ष्मी एवं कुबेर का स्थान सुनिश्चित करना, दीपदान करना, उचित मुहूर्त में पूजन करना और अंत में प्रसाद व मोदक वितरण करना शुभ रहता है। आचार्य ने यह भी कहा कि इस पर्व में साधना‑मंत्र तथा निशीथकाल (रात गहरे समय) का विशेष महत्व है — ऐसे समय मां की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।

शुभकामनाए एवं सावधानी

दिवाली की इस पावन बेला पर राज्य में उत्तराधिकारी तथा सुरक्षा परिषद ने लोगों से अपील की है कि वे आग‑सुरक्षा, आर्थिक विवेक व पर्यावरण‑सचेतना के साथ त्योहार मनाएँ। हिमाचल में पर्वतीय इलाकों में विशेष रूप से जल स्रोत, विद्युत् व्यवस्था तथा नकदी एवं सौंदर्य को सुरक्षित रखने हेतु सतर्कता बरतने का आग्रह किया गया है।


इस वर्ष की दिवाली निश्चित रूप से हिमाचल में सिर्फ दीपावली नहीं, बल्कि समृद्धि, परिवार‑बंधन, धार्मिक आस्था और पर्वतीय सांस्कृतिक धरोहर का संगम है। जब माता लक्ष्मी की कृपा हेतु पूर्ण मुहूर्त में विधिपूर्वक पूजा‑अर्चना की जाती है, तभी इस देवी‑आराधना का सार और भी गहरा होता है। हिमाचलवासियों को इस पारंपरिक पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ — आपकी दिवाली मंगलमय हो।

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