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February 21, 2025

हिमाचल का वो मंदिर- जहां स्थापित माता की मूर्ति का पाताल में है एक पैर

 मंदिर में चोरी करने वाले हो जाते हैं अंधे

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Hateshwari Mata Temple

शिमला। हिमाचल प्रदेश को श्रद्धा और भक्ति की धरती कहा जाता है, यहां के लोगों की देवी-देवताओं में अटूट आस्था है। हर गांव का अपना एक स्थानीय देवता या देवी होती है, जिन्हें लोग केवल पूजनीय नहीं बल्कि अपने परिवार का अभिन्न अंग मानते हैं। ये धार्मिक परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी लोग पूरी निष्ठा से इनका पालन करते आ रहे हैं।

देवी-देवता निभाते हैं अहम भूमिका

हिमाचल में देवी-देवता केवल मंदिरों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। किसी भी बड़े निर्णय, उत्सव या धार्मिक आयोजन से पहले देवताओं की अनुमति ली जाती है। विवाह, घर निर्माण, कृषि कार्य और अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर देवताओं से आशीर्वाद लेना आवश्यक माना जाता है।

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मार्गदर्शक करते हैं देवी-देवता

हिमाचल के लोग अपने देवी-देवताओं को केवल पूजने तक सीमित नहीं रखते, बल्कि उन्हें अपने रक्षक और मार्गदर्शक के रूप में भी देखते हैं। यहां की एक विशिष्ट परंपरा देव पालकी यात्रा है, जिसमें गांव के देवता की पालकी को भक्तों द्वारा कंधों पर उठाकर यात्रा करवाई जाती है।

चोरी करने वाले होते हैं अंधे

आज हम आपको हिमाचल के एक ऐसे देवी मंदिर के बारे में बताएंगे- जहां पर चोरी करने वाले अंधे हो जाते हैं। इस मंदिर में स्थापित माता की मूर्ति को चुराने की कोशिश ने नेपाल के राजा ने भी की थी। इस मंदिर का इतिहास पांडवों से जुड़ा हुआ है।

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पाताल लोक में है मूर्ति का पैर

हम बात कर रहे हैं शिमला के हाटकोटी में विराजित महिषासुर मर्दनी माता हाटेश्वरी जी की। जिनकी मूर्ती का एक पैर पाताल लोक में है और दूसरे पैर पर बंधा हुआ है एक चमत्कारी चुरू - जिसमें रखे प्रसाद को चाहे जितना भी बांटा जाए मगर वो खत्म नहीं होता।

 

जंजीर से बांधा है घड़ा

वहीं, इस घड़े को जंजीर से इसलिए बांधा जाता है- क्योंकि ये घड़ा खुद ही यहां से भागने की कोशिश करता है और पब्बर नदी में उफान आने पर इस घड़े से सीटी की आवाज सुनाई पड़ती है। वहीं, आज तक कोई भी ये नहीं लगा पाया है कि माता की ये मूर्ति कौन से धातु से बनी है और ना ही कोई ये जान पाया है कि माता की मूर्ति का पैर पाताल में कहां तक जाता है।

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दो बहनों ने लिया सन्यास

माता की उत्पत्ति से जुड़ी कथा के अनुसार, एक बार दो ब्राह्मण बहनें सन्यास लेकर भ्रमण को निकलीं और उन्होंने संकल्प लिया कि वे गांवों में जाकर लोगों के दुख-दर्द सुनकर उसका निवारण करेंगी। फिर इन्हीं दो बहनों में से एक बहन हाटकोटी गांव पहुंची और एक खेत में ध्यान करते हुए लुप्त हो गईं और उनके बैठने के स्थान पर एक पत्थर की प्रतिमा प्रकट हो गई।

पांडवों ने बनवाया था मंदिर

वहीं, जब जुब्बल के राजा को इस चमत्कारी घटना का पता चला तो वे तुरंत उस स्थान पर पहुंचे और वहां माता हाटेश्वरी के मंदिर का निर्माण करवाया- वहीं, कुछ लोग ये कहते हैं कि सबसे पहले पांडवों ने ये मंदिर बनवाया था।

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