#धर्म
February 20, 2025
हिमाचल की वो देवी मां- जिन्हें कहा जाता है सोने की महारानी
देवी मां के दरबार में पूरी होती है संतान प्राप्ति की मुराद
शेयर करें:
शिमला। देवभूमि हिमाचल के लोगों की देवी-देवताओं में गहरी आस्था है। हर गांव का अपना एक स्थानीय देवता या देवी होती है, जिन्हें यहां के निवासी अपने परिवार के सदस्य की तरह मानते हैं। इन देवताओं की मान्यताएं और परंपराएं पीढ़ियों से चली आ रही हैं, और लोग पूरी श्रद्धा से उनका पालन करते हैं।
हिमाचल की विशेषता यह है कि यहां देवी-देवता केवल मंदिरों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे समाज के हर पहलू से जुड़े होते हैं। किसी भी शुभ कार्य, पर्व, या बड़े निर्णय से पहले देवी-देवताओं की राय ली जाती है। देवताओं की उपस्थिति सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी अनिवार्य मानी जाती है। हिमाचल के लोग अपने देवी-देवताओं को न केवल पूजनीय बल्कि अपने संरक्षक के रूप में भी देखते हैं।
आज के अपने इस लेख में हम आपको हिमाचल की एक ऐसी देवी मां के बारे में बताएंगे- जिनके दरबार में संतान प्राप्ति की मुराद पूरी होती है। इन देवी मां को धन-विद्या और संतान की देवी कहा जाता है।
यह देवी मां देव पराशर ऋषि की पुत्री भी हैं। इन देवी मां को सोने की महारानी भी कहा जाता है। हम बात कर रहे हैं दुर्गा स्वरूपा माता निशु पड़ासरी जी की- जिन्होंने मंडी राजा के कहने पर त्याग दिए थे स्वर्ण आभूषण।
कथा बताती है कि हमेशा ही सोने का श्रृंगार करने वाली ये माता रानी जब एक बार स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित होकर अपने लाव लश्कर के साथ मंडी शिवरात्री में पहुंची- तो मंडी राजा सूरज सेन ने माता के सोना पहनने पर रोक लगा दी। राजा के आग्रह पर माता रानी ने सोने का त्याग कर दिया। तब से लेकर आज तक वो सिर्फ चांदी पहनकर ही मंडी आती हैं।
जनश्रुतियों की मानें तो मंडी के निशु क्षेत्र में विराजने वाली देवी मां पड़ासरी जी ने सबसे पहले अपनी कार का जिम्मा पंडितों के एक परिवार को सौंपा था। मगर जब इन पंडितों ने माता रानी को अपने वश में करने का प्रयास किया, तो माता रानी का कोप उनपर ऐसा फूटा कि उन पंडितों का पूरा खानदान की समाप्त हो गया।
जनश्रुतियों की मानें तो माता पड़ासरी ने अपनी सवारी यानी एक शेर के द्वारा दुष्ट पंडितों के परिवारों का विनाश किया था। देव पराशर ऋषि की पुत्री होने और दुष्टों को परास्त करने के कारण इन माता का नाम पड़ासरी पड़ा था- जिसे लोग परासरी भी कहते हैं। साल में इन माता के तीन मेले मनाए जाते हैं- जिसमें एक मेला पराशर ऋषि जी के सरनाहुली मेले से ठीक 3 दिन बाद शुरू होता है जिसे निशु नहुली कहते हैं।