#धर्म
February 3, 2025
हिमाचल के वो देवता साहिब- जिनके मूल स्थान पर नहीं जाता कोई दूसरा देवरथ
नीला पड़ जाता है इन देवता साहिब का रंग
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शिमला। देवभूमि हिमाचल केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां के लोगों की देवी-देवताओं में अटूट आस्था भी इस राज्य को विशेष बनाती है। यहां के हर गांव, हर क्षेत्र में देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना एक परंपरा के रूप में देखी जाती है। लोगों का विश्वास है कि ये देवता न केवल उनकी रक्षा करते हैं, बल्कि उनके जीवन को सुख, समृद्धि और शांति से भी भरते हैं।
हिमाचल में यह मान्यता है कि हर गांव और हर क्षेत्र का अपना एक अलग ग्राम देवता होता है, जिसकी पूरे गांव के लोग श्रद्धा से पूजा करते हैं। हिमाचल में विभिन्न धार्मिक पर्व और मेले आयोजित किए जाते हैं, जिनमें देवी-देवताओं को पालकियों में बैठाकर श्रद्धालुओं के बीच लाया जाता है।
हिमाचल के लोग अपने देवी-देवताओं को केवल पूजा के रूप में नहीं देखते, बल्कि वे न्याय के प्रतीक भी माने जाते हैं। किसी भी विवाद या परेशानी के समय लोग देवताओं की शरण में जाते हैं और देव पंडितों के माध्यम से समाधान प्राप्त करते हैं।
आज के अपने इस लेख में हम आपको हिमाचल के एक ऐसे देवता साहिब के बारे में बताएंगे- जिनके मूल स्थान पर कोई दूसरा देवरथ नहीं जाता है। इतना ही नहीं अपने भक्तों की बामारियां सोख लेने से इन देवता साहिब का रंग नीला भी पड़ जाता है।
यह देवता साहिब स्वयं में काल भैरव का रूप हैं। इनकी खुद की गंगा पूरे 100 फीट की उंचाई से बहती है। हम बात करे रहे हैं 3 पंचायतों और 20 गांवों के आराध्य श्री भरयाडू महादेव की- जिनका आधिपत्य कुल्लू की तीर्थान वैली और मंडी की बालीचौकी में है। जहां कोई बीमारी या महामारी फैलने पर ये देवता सभी गावों में पूरे 8 दिन का दौरा करते हैं।
कथा के अनुसार, एक बार मंडी के कुछ लोग लकड़ियां लेने देवता साहिब के मूल स्थान तक पहुंच गए- जहां इन लोगों ने देवता साहिब का चमत्कार देखा। फिर वहां से लौटते वक्त- इन्हीं में से एक शख्स की जेब से एक त्रिशूल बरामद हुआ। फिर जब देवक्रिया से छानबीन हुई तो पता चला कि देवता स्वयं ही उनके साथ आना चाहते हैं।
इसके बाद दो लड़कियों पर नक्काशी कर देवता के चिन्ह स्थापित किए और इन्हें दो स्थानों पर प्रतिष्ठित किया गया। जिनमें से एक स्थान- भरयाडू की भ्ल्यारी नाम से प्रसिद्द है।
जनश्रुति के अनुसार, एक बार कुछ लोगों ने अपने देवता को बड़ा बताया और उनका देवरथ श्री भरयाडू जी महादेव के मूल स्थान पर लेकर पहुंच गए। जहां तमाम देवालू, देवरथ सहित धरती में समा गए। फिर कई वर्षों बाद मिले समाहित देवता के मोहरे ने श्री भरयाडू महादेव जी की शक्तियों का बखान किया था। कुल्लू के भ्ल्यारी में मौजूद मूल स्थान पर जमीन से प्रगट हुआ शिवलिंग भी मौजूद है और मां गंगा भी-जहां आज भी देवता शक्तियां लेने जाते हैं।